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भूमध्य सागर में भारत-ग्रीस का पहला नौसैनिक युद्धाभ्यास सम्पन्न, अब बढ़ेगी तुर्की की बेचैनी

नई दिल्ली। भारत और ग्रीस के बीच पहली बार हुआ द्विपक्षीय नौसैनिक युद्धाभ्यास दोनों देशों के रक्षा संबंधों में मील का पत्थर साबित हुआ है। यह अभ्यास 13 से 18 सितंबर तक भूमध्य सागर में ग्रीस के सलामिस नौसैनिक अड्डे और समुद्री क्षेत्र में सम्पन्न हुआ। भारतीय नौसेना के अत्याधुनिक मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस त्रिकंद ने इसमें हिस्सा लिया।

यह अभ्यास न सिर्फ भारत और ग्रीस के बीच सहयोग का नया अध्याय है, बल्कि यह दक्षिण एशिया से यूरोप तक भारत की रणनीतिक पहुंच और समुद्री शक्ति को भी दर्शाता है। खास बात यह है कि भारत ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव लगातार बना हुआ है। ऐसे में विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह साझेदारी तुर्की के लिए असहज करने वाली साबित हो सकती है।


दो चरणों में हुआ अभ्यास: बंदरगाह और समुद्री युद्धाभ्यास

यह पहला द्विपक्षीय अभ्यास दो चरणों में सम्पन्न हुआ।

  • बंदरगाह चरण (13-17 सितंबर): इस दौरान जहाजों का परस्पर दौरा, पेशेवर संवाद, प्री-सेल कॉन्फ्रेंस और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।
    • ग्रीक फ्रिगेट एचएस थेमिस्टोक्लेस और आईएनएस त्रिकंद के अधिकारियों के बीच आपसी तालमेल बढ़ाने पर जोर रहा।
    • भारतीय राजदूत रुद्रेंद्र टंडन, ग्रीस नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी और उनके परिवार भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुए। इस अवसर पर भारत की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं का प्रदर्शन किया गया।
    • भारतीय दल ने एथेंस स्थित विश्व प्रसिद्ध एक्रोपोलिस का भ्रमण भी किया।
  • समुद्री चरण (17-18 सितंबर): समुद्र में दोनों नौसेनाओं ने कठिन और जटिल युद्धाभ्यास किए।
    • इसमें वीबीएसएस ऑपरेशन (विज़िट, बोर्ड, सर्च और सीज),
    • पनडुब्बी-रोधी अभ्यास,
    • समन्वित तोपों से फायरिंग,
    • क्रॉस-डेक हेलीकॉप्टर संचालन,
    • और समुद्र में ईंधन भराई (रेप्लेनिशमेंट) शामिल थे।
      इन अभ्यासों ने दोनों नौसेनाओं की इंटरऑपरेबिलिटी और प्रोफेशनल दक्षता को नई ऊंचाई दी।

भारत-ग्रीस रिश्तों में नई ऊर्जा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ग्रीस के प्रधानमंत्री कायरियाकोस मिट्सोटाकिस के बीच हाल के वर्षों में हुई मुलाकातों ने दोनों देशों के रिश्तों को नई मजबूती दी है।

  • रक्षा सहयोग, समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा साझेदारी और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स जैसे क्षेत्रों में भारत और ग्रीस समान दृष्टिकोण रखते हैं।
  • ग्रीस यूरोपीय संघ का हिस्सा होने के साथ-साथ पूर्वी भूमध्यसागर में सामरिक दृष्टि से बेहद अहम स्थान रखता है।
  • इस नौसैनिक अभ्यास ने साफ कर दिया है कि भारत अपने पारंपरिक इंडो-पैसिफिक दायरे से बाहर निकलकर यूरोप और भूमध्यसागर क्षेत्र में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

तुर्की के लिए बढ़ी चिंता

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-ग्रीस की यह सामरिक नज़दीकी तुर्की की परेशानी बढ़ा सकती है।

  • तुर्की लंबे समय से पाकिस्तान के पक्ष में कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा है और भारत का विरोध करता रहा है।
  • दूसरी ओर, ग्रीस और तुर्की के बीच समुद्री सीमाओं और साइप्रस को लेकर दशकों से तनाव है।
  • ऐसे में भारत और ग्रीस की बढ़ती साझेदारी को रणनीतिक संतुलन के रूप में देखा जा रहा है।
    कूटनीतिक हलकों में इसे भारत का “स्ट्रेटेजिक मैसेज” माना जा रहा है कि वह तुर्की जैसे विरोधी रुख रखने वाले देशों को जवाब देने के लिए नए सहयोगियों के साथ खड़ा हो सकता है।

रणनीतिक महत्व: इंडो-पैसिफिक से भूमध्यसागर तक भारत की पहुंच

भारत की नौसैनिक नीति अब केवल हिंद महासागर तक सीमित नहीं रह गई है।

  • पिछले कुछ वर्षों में भारतीय नौसेना ने फ्रांस, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडो-पैसिफिक देशों के साथ नियमित युद्धाभ्यास किए हैं।
  • ग्रीस के साथ यह पहला अभ्यास भारत की “स्ट्रेटेजिक एक्सपेंशन” का संकेत है।
  • इससे भारत की सी-लेन सिक्योरिटी, ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा और यूरोप के साथ रक्षा सहयोग को नई दिशा मिलेगी।

नौसैनिक अभ्यास की प्रमुख उपलब्धियां

इस द्विपक्षीय अभ्यास से कई बड़े लाभ सामने आए:

  1. दोनों नौसेनाओं की ऑपरेशनल इंटरऑपरेबिलिटी मजबूत हुई।
  2. पनडुब्बी-रोधी युद्धाभ्यास और वीबीएसएस जैसे ऑपरेशन से साझा समुद्री सुरक्षा क्षमता बढ़ी।
  3. सांस्कृतिक आदान-प्रदान और पेशेवर संवाद से दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग की नींव और गहरी हुई।
  4. यह अभ्यास भविष्य में संयुक्त आपदा प्रबंधन, एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन और मानवीय सहायता मिशनों में सहयोग का आधार बनेगा।

भारत-ग्रीस के बीच सम्पन्न पहला नौसैनिक युद्धाभ्यास सिर्फ एक सैन्य कवायद नहीं, बल्कि बदलते वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों का संकेत है। यह अभ्यास भारत की बढ़ती समुद्री शक्ति और रणनीतिक सोच को दर्शाता है, साथ ही यूरोप और भूमध्यसागर क्षेत्र में भारत की मजबूत मौजूदगी का संदेश भी देता है।
निस्संदेह, यह साझेदारी आने वाले समय में न केवल रक्षा सहयोग बल्कि आर्थिक, ऊर्जा और सामरिक मोर्चे पर भी नए अवसरों के द्वार खोलेगी।

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