नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद देहरादून की ओर से वर्ष 2018 से 2021 के बीच आयुर्वेद चिकित्सकों (बीएएमएस) की डिग्री आवंटन के नाम पर कथित फर्जीवाड़ा की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो से कराने के मामले में प्रदेश सरकार से 10 दिन में जवाब देने को कहा है। मध्य प्रदेश भोपाल निवासी सत्येन्द्र मिश्रा की ओर से दायर जनहित याचिका पर आज मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 से 2021 के बीच बीएएमएस चिकित्सकों की डिग्री आवंटन के नाम पर जबर्दस्त फर्जीवाड़ा हुआ है। लाखों रूपये की कीमत पर हजारों लोगों को फर्जी डिग्री आवंटित की गयी है। आशंका जताई गयी है कि लगभग 5000 फर्जी डिग्री आवंटित की गयी।
ये भी आरोप लगाया गया कि कोरोना महामारी के दौरान इन्हीं फर्जी चिकित्सकों ने प्रदेश के लाखों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया। याचिका में इस फर्जीवाड़ा के लिये इंडियन मेडिकल काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष दर्शन कुमार शर्मा पर ऊंगली उठायी गयी है और कहा गया है कि शर्मा ने अपने सहयोगी इमलाख खान के सहयोग से इस फर्जीवाड़ा को अंजाम दिया। यह भी आरोप है कि दर्शन कुमार शर्मा ने स्वयं फर्जी डिग्री के आधार इंडियन मेडिकल काउंसिल का अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जब यह फर्जीवाड़ा सामने आया तो वर्ष 2023 में मामले की जांच विशेष अनुसंधान दल (एसआईटी) को सौंपी गयी। आगे कहा गया कि आरोपी ने गिरफ्तारी से बचने के लिये फर्जी तरीके से देहरादून अदालत से जमानत भी प्राप्त कर ली। इस प्रकरण में अदालत को भी गुमराह किया गया। याचिका में जांच एजेंसी एसआईटी की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये है और सीबीआई जांच की मांग की गयी है। अंत में अदालत ने इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार से इस पूरे प्रकरण में 10 दिन में जवाब देने को कहा है।