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हिमालय संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध धामी सरकार, अनुसंधान से लेकर आपदा प्रबंधन तक पहल

मुख्यमंत्री बोले – जलवायु और अनियंत्रित विकास सबसे बड़ा खतरा, सस्टेनेबल टूरिज्म और जनभागीदारी से ही मिलेगा समाधान

देहरादून:उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य सरकार हिमालय संरक्षण को लेकर पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है और यह केवल सरकार ही नहीं बल्कि हर नागरिक की साझा जिम्मेदारी है। वे मंगलवार को आईआरडीटी सभागार में आयोजित हिमालय दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय मात्र बर्फीली चोटियों का समूह नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का जीवन स्रोत है, जिसकी सुरक्षा भविष्य की पीढ़ियों के लिए अनिवार्य है।


हिमालय का महत्व: जीवन और संतुलन का आधार

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय की ऊँची चोटियां, विस्तृत ग्लेशियर, नदियाँ और जैव विविधता से भरपूर वन न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि यह पूरे भारत के लिए पर्यावरणीय संतुलन और जीवनदायिनी जलधारा उपलब्ध कराते हैं।

  • हिमालय से निकलने वाली नदियाँ करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती हैं।
  • यहां पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ आयुर्वेद का आधार हैं।
  • पर्वतीय नदियाँ खेती, बिजली उत्पादन और उद्योगों के लिए जीवनरेखा का काम करती हैं।

बढ़ते खतरे: जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि आज हिमालय गंभीर संकट का सामना कर रहा है।

  • जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
  • अनियंत्रित निर्माण और संसाधनों का अंधाधुंध दोहन संतुलन बिगाड़ रहा है।
  • अप्रत्याशित क्लाउड बर्स्ट, भूस्खलन और बढ़ती वर्षा की तीव्रता से आपदाएँ लगातार बढ़ रही हैं।

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में उत्तराखंड ने कई भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है, जिससे निपटने के लिए वैज्ञानिक संस्थानों और विशेषज्ञों के बीच समन्वय बेहद जरूरी है।


सरकार की पहल: अनुसंधान से लेकर आपदा प्रबंधन तक

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने बीते वर्ष ही हिमालय संरक्षण पर उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्णय लिया था। इस वर्ष नवंबर में राज्य में ‘विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन’ आयोजित किया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल होंगे।

हिमालय संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदम:

  • डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम से ग्लेशियर और जल स्रोतों पर नजर।
  • ग्लेशियर रिसर्च सेंटर की स्थापना।
  • जल स्रोत संरक्षण अभियान और जनभागीदारी कार्यक्रम
  • डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम से प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट, जिससे अब तक 72 टन कार्बन उत्सर्जन कम हुआ।

पर्यटन और पर्यावरण: सस्टेनेबल मॉडल की आवश्यकता

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि अनियंत्रित और असंवेदनशील पर्यटन हिमालय के लिए खतरा बन रहा है। इसलिए सरकार का लक्ष्य है कि पर्यटन को सस्टेनेबल टूरिज्म मॉडल पर आगे बढ़ाया जाए।

  • इससे रोजगार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
  • पर्यावरणीय संतुलन को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
  • धार्मिक और एडवेंचर पर्यटन को नई दिशा मिलेगी।

जनसहभागिता और स्थानीय समुदाय की भूमिका

मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि हिमालय की रक्षा केवल सरकार नहीं कर सकती, इसमें आम लोगों को भी योगदान देना होगा।

  • हिमालयी समुदाय का पारंपरिक ज्ञान और जीवनशैली हमें सिखाते हैं कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में कैसे जिया जाए।
  • छोटे-छोटे प्रयास जैसे पानी बचाना, पेड़ लगाना और प्लास्टिक का कम उपयोग करना हिमालय संरक्षण की बड़ी दिशा बन सकते हैं।

उन्होंने घोषणा की कि अब हर वर्ष 2 से 9 सितंबर तक ‘हिमालय जनजागरूकता सप्ताह’ मनाया जाएगा।


विशेषज्ञों की राय

इस अवसर पर पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि इस वर्ष पूरे हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं की आवृत्ति बढ़ गई है। मानसून अब डराने लगा है और हमें हिमालय संरक्षण के लिए नई रणनीति बनानी होगी।

समारोह में विधायक किशोर उपाध्याय, मेयर सौरभ थपलियाल, दर्जाधारी मधु भट्ट, महानिदेशक यूकॉस्ट प्रो. दुर्गेश पंत और अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद रहे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का स्पष्ट संदेश है कि हिमालय संरक्षण राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। उनकी सरकार नीति, तकनीक और जनभागीदारी के जरिए इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। यदि स्थानीय समुदाय और आम नागरिक भी इसमें सहयोग दें, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हिमालय को संरक्षित रखा जा सकता है।

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