Dehradun: “दून की धड़कन” फिर हुई चालू — जिला प्रशासन ने घंटाघर की घड़ी को फिर से दी जीवनधारा

देहरादून, 8 नवंबर 2025: देहरादून की पहचान — “घंटाघर”, जिसे शहर की घड़कन कहा जाता है, एक बार फिर अपनी असली लय में लौट आया है। लंबे समय से बार-बार खराब हो रही घंटाघर की घड़ी अब पूरी तरह दुरुस्त हो गई है। जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर की धड़कन को दोबारा चालू करने का बीड़ा उठाया और विशेषज्ञ तकनीकी टीम से इसका “उपचार” कराया।
जिलाधिकारी सविन बंसल के निर्देश पर यह कार्य चेन्नई की प्रसिद्ध विशेषज्ञ फर्म ‘इंडियन क्लॉक्स’ को सौंपा गया, जिसने आधुनिक तकनीक की मदद से घंटाघर की घड़ी की मरम्मत की। कंपनी के इंजीनियरों ने घंटाघर की घड़ी की सटीकता और आवाज़ को बनाए रखने के लिए इसके जीपीएस यूनिट, लाउडस्पीकर, बैल सिस्टम और वायरिंग को पूरी तरह बदल दिया। अब घंटाघर की सुइयाँ फिर से समय की सही रफ्तार बता रही हैं और हर घंटे शहरवासियों के कानों में इसकी टंकार गूंज रही है।
घंटाघर की “धड़कन” अब फिर से तेज़
जिलाधिकारी सविन बंसल ने बताया कि पिछले कुछ महीनों से घंटाघर की घड़ी समय गलत दिखा रही थी और कई बार सुइयाँ पूरी तरह रुक भी जाती थीं। शहरवासियों की शिकायतों के बाद प्रशासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए विशेषज्ञ तकनीकी सहायता ली।
“देहरादून का घंटाघर केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि शहर की पहचान और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। यह हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाली कड़ी है। इसलिए इसका समय पर चलना, शहर की लय के साथ चलना ज़रूरी है,” — जिलाधिकारी सविन बंसल ने कहा।
उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने मरम्मत कार्य के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराई और पूरे कार्य को गुणवत्ता मानकों के अनुसार पूर्ण कराया गया।
चेन्नई की विशेषज्ञ टीम ने किया तकनीकी पुनर्जीवन
विशेषज्ञ इंजीनियरों की टीम ने घंटाघर की घड़ी की बारीकी से जांच की। टीम ने पाया कि घड़ी की मुख्य वायरिंग पुरानी और जंग लगी हुई थी, जिससे सिग्नल ट्रांसमिशन बाधित हो रहा था। साथ ही जीपीएस यूनिट पुराना पड़ चुका था, जिससे समय का समन्वय बिगड़ गया था।
टीम ने
- नई वायरिंग लगाई,
- आधुनिक जीपीएस सिस्टम जोड़ा,
- लाउडस्पीकर और घंटी की बेल को नए सिरे से इंस्टॉल किया।
अब घंटाघर की चारों दिशाओं में स्थापित घड़ियाँ एक साथ सटीक समय बता रही हैं। हर घंटे गूंजने वाली इसकी टंकार फिर से दून की हवा में वही पुरानी पहचान ले आई है।
प्रशासन की पहल से सजीव हुआ दून का गौरव
घंटाघर न केवल देहरादून का प्रतीक चिन्ह है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर भी माना जाता है। इसका इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा है और वर्षों से यह “समय का प्रहरी” बनकर खड़ा है।
पिछले वर्षों में जिला प्रशासन ने घंटाघर का सौंदर्यीकरण कार्य भी कराया था, जिसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनता को समर्पित किया था। अब इस तकनीकी पुनर्जीवन के साथ घंटाघर का आकर्षण और महत्ता दोनों ही बढ़ गए हैं।
शहरवासियों की भावनाओं से जुड़ा प्रतीक
देहरादून के लोगों के लिए घंटाघर सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि “दून की धड़कन” है।
जब इसकी सुइयाँ चलती हैं और घंटियाँ बजती हैं, तो लोगों को समय के साथ-साथ अपने शहर की जीवंतता का एहसास होता है।
एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा —
“हमने बचपन से घंटाघर की आवाज़ सुनी है। जब यह बंद हो गया था, तो लगता था जैसे शहर की धड़कन थम गई है। अब जब यह फिर से चल पड़ा है, तो पूरे दून में नई ऊर्जा लौट आई है।”
घंटाघर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
देहरादून का प्रसिद्ध घंटाघर (क्लॉक टॉवर) 1940 के दशक में बनाया गया था और इसे ‘बालाजी वॉच टॉवर’ भी कहा जाता था। यह छह मुख वाला अनोखा टॉवर है, जिसकी हर दिशा में घड़ी लगी है — जो शहर के हर कोने को समय बताती है।
घंटाघर ने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर राज्य गठन तक, हर ऐतिहासिक पल को साक्षी के रूप में देखा है। अब जिला प्रशासन की इस पहल से यह प्रतीक फिर से अपने गौरव और पहचान के साथ चमक रहा है।
“घंटाघर की धड़कन के साथ चल रहा है अब दून”
जिला प्रशासन का कहना है कि आने वाले समय में शहर की अन्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए भी इसी प्रकार की पहलें की जाएंगी।
जिलाधिकारी ने बताया कि शहरवासियों के सुझावों और सहयोग से देहरादून को “स्मार्ट सिटी” ही नहीं, बल्कि “संवेदनशील सिटी” बनाने का लक्ष्य रखा गया है — जहां परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चलें।



