
सीएम धामी ने नंदा राजजात यात्रा की तैयारी को लेकर ली बैठक
2026 व 2027 में उत्तराखण्ड में होंगे दो बड़े आयोजन
राजजात यात्रा के दौरान उच्च हिमालय में 280 किलोमीटर की दूरी की जाती है तय
देहरादून। उत्तराखंड में अगले दो सालों में दो बड़े धार्मिक आयोजन होने हैं। चारधाम यात्रा के साथ इन आयोजनों को लेकर धामी सरकार अभी से तैयारियों में जुट गई है। अगले साल यानी 2026 में विश्व की सबसे बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा नंदा राजजात यात्रा होगी। 2027 में हरिद्वार में अर्धकुंभ होना है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को राज्य सचिवालय में नंदा देवी राजजात यात्रा की तैयारियों की बैठक ली। सीएम ने राज्य सचिवालय में संबंधित अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। अब हम आपको बताते हैं कि विश्व की सबसे लंबी पैदल चलने वाली धार्मिक यात्रा क्या है। ये यात्रा कहां आयोजित की जाती है। उत्तराखंड की प्रसिद्ध नंदा देवी राजजात यात्रा हर 12 साल में आयोजित की जाती है। पिछली यात्रा 2014 में हुई थी। अब ये यात्रा 2026 में होनी है। नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड में देवी नंदा की एक धार्मिक यात्रा है। यह यात्रा चमोली जिले के कर्णप्रयाग के नौटी गांव से शुरू होती है। यात्रा का समापन रूपकुंड से आगे होमकुंड में होता है। इस धार्मिक यात्रा की कुल दूरी लगभग 280 किलोमीटर है।
नंदा राजजात यात्रा चमोली जिले के कर्णप्रयाग के पास नौटी गांव से शुरू होती है। पहले दिन यात्रा नौटी से इड़ा बधानी पहुंचती है। दूसरे दिन यात्रा इड़ा बधानी से नंदकेसरी तक पहुंचती है। दूसरे दिन नंदकेसरी में रात्रि विश्राम होता है। तीसरे दिन यात्रा नंदकेसरी से फल्दिया पहुंचती है। चौथे दिन फल्दिया से मुंडोली तक की यात्रा होती है। पांचवें दिन यात्रा मुंडोली से वान पहुंचती है।
6वें दिन नंदा राजजात यात्रा वान से बेदिनी बुग्याल पहुंचती है। 7वें दिन बेदिनी बुग्याल से यात्रा पाथर नाचौनी तक पहुंच जाती है। ये खड़ी चढ़ाई वाला मार्ग है। 8वें दिन पाथर नचौनी से भगवाबासा पहुंचकर रात्रि विश्राम होता है। यहां से उच्च हिमालय शुरू हो जाता है। 9वें दिन भगवाबासा से नंदा राजजात यात्रा रूपकुंड और यहां से शिला समुंदर तक पहुंचती है। रूपकुंड रहस्यों से भरा स्थान है। 10वें दिन शिला समुंदर से होमकुंड पहुंचकर यात्रा संपूर्ण होती है। 11वें दिन से 19वें दिन तक वापसी होती है। नंदा देवी राजजात यात्रा पौराणिक कथा पर आधारित है। ये कथा महाभारतकालीन है। पौराणिक कथानुसार भगवान विष्णु की बहन नंदा देवी का विवाह शाहसुर नामक राक्षस राजा से हुआ था। शाहसुर एक क्रूर और अत्याचारी शासक था। लोग उसके अत्याचारों से त्रस्त थे।
हर 12 साल में होती है नंदा राजजात यात्रा
देहरादून। नंदा देवी राजजात यात्रा का नेतृत्व चार सींग वाला मेढ़ा (चौसिंग्या खाड़ू) करता है। इसके साथ नंदा देवी मंदिर के रावल या मुख्य पुजारी होते हैं, जो देवी की चांदी की मूर्ति रखते हैं। इस यात्रा से जुड़ी नंदा देवी लोकजात यात्रा भी हर साल आयोजित की जाती है। नंदा देवी राजजात यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक परंपरा भी है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। इस यात्रा में शामिल होने लोग देश-विदेश से पहुंचते हैं। पूरे रास्ते मां नंदा से जुड़े भजन-कीर्तन करती मंडलियां थकान का एहसास नहीं होने देती हैं। ऐसी मान्यता है कि नंदा राजजात यात्रा क्षेत्र में समृद्धि और आशीर्वाद लाती है।
मां नंदा के प्रति आभार जताते हैं
देहरादून। नंदा देवी प्रजा की पीड़ा को सहन नहीं कर पाईं। उन्होंने भगवान विष्णु से मदद मांगी। नंदा देवी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने ऋषि का वेश धारा। ऋषि वेश धारी भगवान विष्णु ने शाहसुर को युद्ध की चुनौती दी। इस तरह शाहसुर का अंत हुआ। अब नंदा देवी ने प्रजा के लिये हिमालय में रहना शुरू कर दिया। इस तरह नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड के लोगों के लिए मां नंदा के प्रति उनकी सुरक्षा के लिए आभार व्यक्त करना है।