
रिपोर्ट : शेलेन्द्र शेखर कग्रेती
नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने जजों द्वारा रिटायरमेंट के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करने या राजनीति में प्रवेश करने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में “न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना” विषय पर आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार की प्रथाएं न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करती हैं और इससे जनता का भरोसा कमजोर होता है।
सीजेआई गवई ने कहा, “यदि कोई जज रिटायरमेंट के तुरंत बाद किसी सरकारी पद पर नियुक्त होता है या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है, तो इससे यह धारणा बन सकती है कि उसके फैसले भविष्य की नियुक्तियों या राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रभावित थे।”
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि न्यायपालिका को केवल निष्पक्ष और स्वतंत्र ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे ऐसा दिखना भी चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बना रहे। उन्होंने कहा कि न्यायिक वैधता शक्ति से नहीं बल्कि विश्वसनीयता और नैतिकता से आती है।
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नैतिक चिंता: रिटायरमेंट के बाद जजों का तत्काल सरकारी पद स्वीकार करना हितों के टकराव का संकेत देता है।
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जनता का विश्वास: इस प्रकार की गतिविधियां न्यायपालिका में जनता के भरोसे को कमजोर करती हैं।
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राजनीतिक पद की दौड़: बेंच से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रश्न खड़े करता है।
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कॉलेजियम प्रणाली पर टिप्पणी: आलोचना के बावजूद कॉलेजियम प्रणाली को बनाए रखने की बात, लेकिन सुधार की आवश्यकता को भी स्वीकार किया।
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पारदर्शिता पर बल: जजों की संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा, वर्चुअल सुनवाई, क्षेत्रीय भाषाओं में फैसले और केस डेटा का प्रकाशन जैसे कदम उठाए गए हैं।
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लाइवस्ट्रीमिंग पर चेतावनी: न्यायिक कार्यवाही की संदर्भ से बाहर रिपोर्टिंग से बचने की आवश्यकता बताई।
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न्यायिक कदाचार: सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई की है ताकि जनता का भरोसा बना रहे।
सीजेआई गवई ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका को आज के डिजिटल युग में अपनी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना अधिक सुलभ, उत्तरदायी और पारदर्शी बनना होगा। उन्होंने कहा, “यदि न्यायपालिका में जनता का विश्वास डगमगाता है, तो यह उनके अधिकारों के अंतिम रक्षक के रूप में इसकी संवैधानिक भूमिका को कमजोर कर सकता है।”
गोलमेज चर्चा में भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, इंग्लैंड और वेल्स की लेडी चीफ जस्टिस बैरोनेस कैर, लॉर्ड लेगट और वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव बनर्जी ने भी भाग लिया।
सीजेआई गवई का यह बयान केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि न्यायपालिका के आत्ममंथन का आह्वान है। यह वक्तव्य भारत में न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर नई बहस को जन्म दे सकता है, खासकर जब पूर्व जजों के राजनीतिक जुड़ाव और सरकारी पदों पर नियुक्तियों की घटनाएं चर्चा में रहती हैं।