
मथुरा/प्रयागराज: मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर चल रहे कानूनी विवाद में शुक्रवार का दिन निर्णायक साबित हो सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ — न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की अध्यक्षता में — इस विवादित मामले में अपना फैसला सुना सकती है। यह वही मामला है जिसमें हिंदू पक्ष ने शाही ईदगाह को “विवादित ढांचा” घोषित किए जाने की मांग की है।
हिंदू पक्ष की ओर से अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने याचिका दायर की थी और 5 मार्च 2025 को मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी ईदगाह मस्जिद को विवादित घोषित करने की प्रार्थना की थी। इस पर कोर्ट में बहस पूरी हो चुकी है और फैसला सुरक्षित रखा गया था, जो शुक्रवार को आने की संभावना है।
हिंदू पक्ष की प्रमुख दलीलें:
महेंद्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने अदालत में अपने तर्कों के समर्थन में कई ऐतिहासिक दस्तावेज और साहित्यिक स्रोत प्रस्तुत किए। इनमें मासिरे आलमगिरी और तत्कालीन मथुरा के ब्रिटिश कलेक्टर एफएस ग्राउस द्वारा लिखे गए विवरण शामिल हैं। उन्होंने कहा कि:
- ईदगाह मस्जिद को लेकर कोई सरकारी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है — न खसरा-खतौनी में इसका ज़िक्र है, न नगर निगम में रजिस्ट्रेशन, न ही टैक्स भुगतान।
- बिजली चोरी की एफआईआर ईदगाह प्रबंधन समिति के खिलाफ दर्ज हो चुकी है।
- ईमारत की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के प्रतीक चिह्न हैं, जो यह संकेत देते हैं कि यहां पूर्व में मंदिर था।
उनका यह भी कहना था कि औरंगजेब ने इस स्थान पर मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया, और इस बात को कई ऐतिहासिक यात्रियों और दस्तावेज़ों में भी उल्लेखित किया गया है।
बाबरी मस्जिद विवाद से तुलना
हिंदू पक्षकारों ने इस मामले की तुलना अयोध्या के बाबरी मस्जिद प्रकरण से की। उनका तर्क था कि जैसे अयोध्या में अदालत ने बाबरी ढांचे को विवादित घोषित कर निर्णय सुनाया, वैसे ही यहां भी पहले शाही ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ घोषित किया जाना जरूरी है।
महेंद्र प्रताप सिंह ने अदालत को यह भी बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने से जमीन की वास्तविक स्थिति स्पष्ट की जा सकती है।
क्या कहता है मुस्लिम पक्ष?
इस खबर में मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया या दलीलों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि, कानूनी प्रक्रिया में दोनों पक्षों को बराबर सुना गया है और अब कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय दिया जाना बाकी है।
क्या हो सकता है अगला कदम?
यदि कोर्ट शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करता है, तो यह मामला नई कानूनी और सामाजिक बहसों को जन्म दे सकता है। साथ ही, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से खुदाई या सर्वेक्षण जैसे आदेश भी पारित हो सकते हैं, जैसा अयोध्या मामले में हुआ था।
हालांकि, अंतिम निर्णय आने तक इस पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी।