इलाहाबाद हाईकोर्ट को बड़ी सौगात: एक साथ मिले 24 नए जज, वकील और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति पर केंद्र की मुहर

नई दिल्ली। देश की न्याय व्यवस्था में लंबे समय से लंबित मामलों और न्यायाधीशों की कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक अहम कदम उठाया। सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए एक साथ 24 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी है। इन नियुक्तियों में 10 वकील और 14 न्यायिक अधिकारी शामिल हैं। यह कदम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की 2 सितंबर 2025 की सिफारिशों पर मुहर लगने के बाद उठाया गया है।
कॉलेजियम की सिफारिश और केंद्र की मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में 26 नामों की सिफारिश की थी, जिनमें 12 वकील और 14 न्यायिक अधिकारी शामिल थे। इनमें से 10 वकीलों और 14 न्यायिक अधिकारियों के नाम को मंजूरी दी गई है।
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह नियुक्ति न सिर्फ हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली को गति देगी बल्कि पेंडिंग मामलों की सुनवाई पर भी सकारात्मक असर डालेगी।
वकील से जज बने चेहरे
नियुक्त वकीलों में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में लम्बे समय तक प्रैक्टिस कर न्यायिक कार्यों में अपनी पहचान बनाई।
इनमें शामिल हैं:
- विवेक सारन
- विवेक कुमार सिंह
- गरिमा प्रसाद (सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील)
- सुधांशु चौहान
- अभधेश कुमार चौधरी (सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील)
- स्वरूपमा चतुर्वेदी (सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील)
- सिद्धार्थ नंदन
- कुणाल रवि सिंह
- इंद्रजीत शुक्ला
- सत्यवीर सिंह
गरिमा प्रसाद, स्वरूपमा चतुर्वेदी और अभधेश कुमार चौधरी जैसे नाम सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके वरिष्ठ अधिवक्ताओं में गिने जाते हैं। इनकी नियुक्ति को न्यायपालिका के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति
इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त किए गए 14 न्यायिक अधिकारी वो नाम हैं जिन्होंने लंबे समय तक निचली अदालतों में सेवा देते हुए न्यायिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये हैं:
- डॉ. अजय कुमार-II
- चवन प्रकाश
- दिवेश चंद्र सामंत
- प्रशांत मिश्रा-I
- तरुण सक्सेना
- राजीव भारती
- पद्म नारायण मिश्रा
- लक्ष्मी कांत शुक्ला
- जय प्रकाश तिवारी
- देवेंद्र सिंह-I
- संजीव कुमार
- वाणी रंजन अग्रवाल
- आचल सचदेव
- बबिता रानी
इन नियुक्तियों से हाईकोर्ट को ज़मीनी स्तर के प्रशासनिक और न्यायिक अनुभव से जुड़ी मजबूती मिलेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की पेंडेंसी और महत्व
इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट है। यहां लाखों मामलों की पेंडेंसी लंबे समय से चिंता का विषय रही है।
- 2025 तक हाईकोर्ट में 9 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं।
- जजों की कमी के कारण सुनवाई में देरी और न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं।
- एक साथ 24 जजों की नियुक्ति से न्यायिक कार्यों में तेजी आने की उम्मीद है।
कानून मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार लगातार कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्रवाई कर न्यायपालिका को मजबूत बनाने के प्रयास कर रही है।
कॉलेजियम बनाम केंद्र: प्रक्रिया और चुनौतियां
भारत में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति कोलेजियम सिस्टम के तहत होती है।
- कॉलेजियम नामों की सिफारिश करता है।
- केंद्र सरकार इन नामों की जांच कर अधिसूचना जारी करती है।
- कई बार सिफारिश और मंजूरी के बीच महीनों का अंतराल रहता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए भी कॉलेजियम ने 12 वकीलों और 14 न्यायिक अधिकारियों के नाम सुझाए थे, जिनमें से 10 वकीलों के नाम पर ही केंद्र ने सहमति जताई।
कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों ने इन नियुक्तियों का स्वागत किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को हमेशा से अधिक न्यायाधीशों की जरूरत रही है।
“एक साथ 24 नियुक्तियां न्यायपालिका के लिए ऐतिहासिक कदम है। इससे आम जनता को जल्दी न्याय मिलने में मदद मिलेगी।”
वहीं, लखनऊ बार एसोसिएशन ने भी इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे मामलों के निपटारे की गति बढ़ेगी और न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता मजबूत होगी।
भविष्य की राह
हालांकि 24 जजों की नियुक्ति बड़ी उपलब्धि है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह पर्याप्त नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्वीकृत जजों की कुल संख्या 160 है, जबकि कामकाज कई बार केवल 100 से भी कम जजों के सहारे चलता रहा है। ऐसे में आगे भी नियुक्तियों की आवश्यकता बनी रहेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट को एक साथ 24 नए जज मिलना ऐतिहासिक और सकारात्मक कदम है। यह न केवल जजों की कमी को पूरा करेगा बल्कि लाखों लंबित मामलों के निपटारे में भी मददगार साबित होगा। वकीलों और न्यायिक अधिकारियों, दोनों वर्गों से आए इन जजों से उम्मीद की जा रही है कि वे न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता को और ऊंचाइयों तक ले जाएंगे।
अब देखना यह होगा कि क्या इन नियुक्तियों से न्यायपालिका में पेंडेंसी का बोझ कम होगा और आम नागरिकों को समय पर न्याय मिल पाएगा।