
मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक और उनके ९ अधीनस्थों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू कर दी है। गिरफ्तारी करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहने पर इनके खिलाफ ये कार्रवाई की गई है। कार्यवाही शुरू करने वाले न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने रजिस्ट्री को अवमानना की कार्यवाही की संख्या और १० व्यक्तियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा डी के बसु मामले में पारित आदेशों के संदर्भ में अधिकारियों द्वारा की गई एक दीवानी अवमानना है, इसलिए अवमानना की कार्यवाही को इस न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जाता है।
आपको बता दें कि ये कार्यवाही अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता राजारथिनम को किया था गिरफ्तार करने को लेकर हुई थी एस राजारथिनम एक अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने विभिन्न अदालतों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में बड़ी संख्या में मामले चलाए। ३ नवंबर, २०१५ की आधी रात को जब वह पढ़ रहे थे और उनके परिवार के सदस्य सो रहे थे, तभी पुलिस जबरन उनके घर में घुसी और उन्हे बिना वजह बताए थाने ले गई। इसी दौरान उसकी पत्नी और बेटी के साथ मारपीट भी की गई। उन्हें एक वरिष्ठ वकील के माध्यम से मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जिन्होंने घायल अधिवक्ता के इलाज का आदेश दिया। उसके बाद अगले दिन उन्हें राजकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया।
उसके बाद उन्होंने पुलिस के खिलाफ उचित विभागीय कार्रवाई करने के लिए मद्रास हाई कोर्ट का भी रुख किया, जो उनकी गिरफ्तारी और पिटाई में शामिल थे। याचिका के लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सभी आवश्यक कार्रवाई बिना किसी चूक के शुरू की गई थी। डीजीपी और अधीनस्थ अधिकारी ने संबंधित पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया था और जांच पूरी हो गई थी। आरडीओ जांच का आदेश दिया गया था और रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, उसके बाद एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और जांच की गई थी और एक सप्ताह पहले इस साल ७ नवंबर को अंतिम रिपोर्ट दर्ज की गई थी।
न्यायाधीश ने कहा कि पिछले लगभग ५ वर्षों से विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में कोई प्रगति नहीं हुई है। तमिलनाडु पुलिस अधीनस्थ सेवा नियमों के तहत अब तक न ही नो चार्ज मेमो जारी किया गया और कोई अंतिम आदेश भी पारित नहीं किया गया है। केवल एक चेतावनी ज्ञापन जारी किया गया था। इस अदालत के समक्ष रखे गए अभिलेखों से पता चलता है कि पुलिस अधिकारियों का दृष्टिकोण ढुलमुल है और लंबे समय तक देरी से अनुचित लाभ लिया गया है और अब भी, शुरू की गई कार्रवाई कानून और लागू नियमों के अनुसार नहीं की गई है।