देशफीचर्ड

मुफ्त अरबी कक्षाओं की आड़ में कट्टरपंथीकरण का मामला: NIA ने सात आरोपियों और एक सोसाइटी के खिलाफ दाखिल किया पूरक आरोपपत्र

नई दिल्ली: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने शुक्रवार को देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े एक गंभीर मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए सात आरोपियों और एक पंजीकृत सोसाइटी के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किया है। यह मामला मुफ्त अरबी कक्षाओं की आड़ में युवाओं को कथित तौर पर कट्टरपंथी बनाने और आतंकी गतिविधियों की ओर प्रेरित करने से जुड़ा है। जांच एजेंसी के अनुसार, यह नेटवर्क शैक्षणिक और धार्मिक शिक्षा के नाम पर युवाओं को चरमपंथी विचारधारा से जोड़ने की कोशिश कर रहा था।

एनआईए द्वारा दायर इस पूरक आरोपपत्र में कोवई अरबी एजुकेशनल एसोसिएशन (केएईए) नामक एक पंजीकृत संस्था को भी आरोपी बनाया गया है। एजेंसी का दावा है कि इस संस्था के माध्यम से विचारधारात्मक प्रचार, संदिग्ध फंडिंग और युवाओं की मानसिक तैयारी की जा रही थी।

2022 कोयंबटूर कार बम धमाके से जुड़ी कड़ियां

यह मामला अक्टूबर 2022 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुए कार बम धमाके की जांच के दौरान सामने आया था। उस धमाके ने पूरे देश में सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया था और इसके बाद से एनआईए ने इस घटना से जुड़े हर संभावित नेटवर्क और सहयोगी तंत्र की गहन जांच शुरू की थी।

एनआईए के अनुसार, जांच के दौरान सामने आया कि कुछ संगठित तत्व शैक्षणिक गतिविधियों की आड़ में युवाओं को कट्टरपंथी विचारधारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे थे। मुफ्त अरबी भाषा कक्षाओं और धार्मिक अध्ययन के नाम पर उन्हें धीरे-धीरे चरमपंथी सोच की ओर मोड़ा जा रहा था।

पहले ही चार आरोपियों के खिलाफ दाखिल हो चुका है आरोपपत्र

इस मामले में एनआईए पहले ही चार आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है। इनमें मद्रास अरबी कॉलेज के प्रिंसिपल जमील बाशा का नाम भी शामिल है, जिन्हें इस नेटवर्क का एक अहम कड़ी बताया गया था। एजेंसी का कहना है कि शुरुआती जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर आगे की जांच जारी रखी गई, जिसके बाद नए साक्ष्य और संदिग्ध गतिविधियां सामने आईं।

इन्हीं अतिरिक्त सबूतों के आधार पर अब सात और आरोपियों तथा एक पंजीकृत संस्था के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दायर किया गया है। एनआईए का कहना है कि यह कार्रवाई मामले की व्यापकता और संगठित स्वरूप को दर्शाती है।

शिक्षा की आड़ में विचारधारात्मक कट्टरता?

जांच एजेंसी के मुताबिक, आरोपियों ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए मुफ्त शिक्षा, भाषा प्रशिक्षण और धार्मिक अध्ययन का सहारा लिया। शुरुआती तौर पर यह गतिविधियां सामान्य और वैध प्रतीत होती थीं, लेकिन बाद में इन्हीं मंचों का उपयोग कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए किया गया।

एनआईए का दावा है कि कुछ युवाओं को वैचारिक रूप से इस हद तक प्रभावित किया गया कि वे हिंसक और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को सही ठहराने लगे। हालांकि एजेंसी ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी तथ्यों की पुष्टि अदालत में साक्ष्यों के आधार पर ही होगी।

केएईए की भूमिका पर जांच एजेंसियों की नजर

कोवई अरबी एजुकेशनल एसोसिएशन (केएईए) को इस मामले में आरोपी बनाए जाने को अहम माना जा रहा है। एनआईए के अनुसार, संस्था के माध्यम से गतिविधियों को वैध रूप देने की कोशिश की गई और इसका इस्तेमाल संगठित तरीके से युवाओं तक पहुंच बनाने के लिए किया गया।

जांच में यह भी देखा जा रहा है कि संस्था की फंडिंग, उसके संपर्क और उसके द्वारा संचालित कार्यक्रमों का वास्तविक उद्देश्य क्या था। एनआईए सूत्रों के मुताबिक, वित्तीय लेन-देन और डिजिटल संचार से जुड़े कई अहम साक्ष्य जुटाए गए हैं, जिन्हें अदालत के समक्ष पेश किया गया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील मामला

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल एक आपराधिक जांच तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधे जुड़ा हुआ है। शिक्षा और सामाजिक गतिविधियों की आड़ में यदि युवाओं को कट्टरपंथी बनाया जाता है, तो यह समाज के लिए दीर्घकालिक खतरा बन सकता है।

इसी कारण एनआईए इस मामले में बेहद सतर्कता और गंभीरता के साथ आगे बढ़ रही है। एजेंसी का कहना है कि उसका उद्देश्य केवल आरोपियों को सजा दिलाना नहीं, बल्कि ऐसे नेटवर्क को जड़ से खत्म करना है, जो देश की शांति और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

कानूनी प्रक्रिया और आगे की राह

पूरक आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद अब यह मामला अदालत में सुनवाई के अगले चरण में प्रवेश करेगा। आरोपियों को अपने बचाव में दलीलें रखने का पूरा अवसर मिलेगा, जबकि अभियोजन पक्ष साक्ष्यों और गवाहों के माध्यम से अपने आरोपों को साबित करने की कोशिश करेगा।

एनआईए अधिकारियों का कहना है कि जांच अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है और यदि आगे और कड़ियां सामने आती हैं, तो अतिरिक्त कार्रवाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

समाज और संस्थानों के लिए चेतावनी

यह मामला एक बार फिर इस बात की ओर ध्यान दिलाता है कि शिक्षा और सामाजिक संगठनों की गतिविधियों पर पारदर्शिता और निगरानी कितनी जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, किसी भी तरह की वैचारिक अतिवादिता को शुरुआती स्तर पर ही पहचानकर रोकना लोकतांत्रिक समाज की जिम्मेदारी है।

एनआईए की इस कार्रवाई को इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो यह संदेश देता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button