
पिथौरागढ़/धारचूला: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ एक बार फिर मानव–वन्यजीव संघर्ष की भयावह स्थिति का सामना कर रहा है। धारचूला के जयकोट गांव में शनिवार को तीन भालुओं ने एक 35 वर्षीय युवक पर अचानक हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। जिले के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में भालुओं और गुलदारों की बढ़ती सक्रियता ने ग्रामीणों का जीना मुश्किल कर दिया है। पिछले पखवाड़े में यह भालुओं के हमले की तीसरी घटना दर्ज की गई है, जबकि गुलदार के हमले भी लगातार बढ़ रहे हैं।
तीन भालुओं ने युवक को बेरहमी से नोचा, हेलीकॉप्टर से हल्द्वानी रेफर
प्राप्त जानकारी के अनुसार, घायल युवक नरेंद्र सिंह (35) किसी कार्य से पैदल रूंग गांव की ओर जा रहा था। दोपहर बाद लंकारी तोक के पास अचानक तीन भालू झाड़ियों से निकले और उस पर टूट पड़े।
हमले की तीव्रता इतनी अधिक थी कि नरेंद्र को बचाने में मजदूरों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। उसकी चीखें सुनकर आसपास काम कर रहे मजदूर मौके पर पहुंचे और लाठियों व पत्थरों की मदद से भालुओं को खदेड़कर किसी तरह उसे बाहर निकाला।
नरेंद्र के सिर, हाथ और कंधे पर गहरी चोटें आईं। पहले उसे स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, लेकिन परिवार की मांग और स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने तुरन्त हेलीकॉप्टर की व्यवस्था कर हल्द्वानी एसटीएच रेफर कराया।
एसडीएम जितेंद्र वर्मा ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि घायल की हालत गंभीर होने के कारण ही हेली सेवा उपलब्ध कराई गई।
डॉक्टरों ने बताया कि नरेंद्र को कई गहरे जख्म हैं और उसे आईसीयू में भर्ती कर लिया गया है, जहां उसकी हालत नाजुक बनी हुई है।
गुलदार के हमले से महिला घायल, लगातार बढ़ रहे हमलों ने गाँवों में दहशत फैलाई
धारचूला क्षेत्र में भालुओं के बाद अब गुलदार ने भी ग्रामीणों का सुकून छीन रखा है।
शनिवार को ही पौड़ी रेंज में एक महिला पर गुलदार ने हमला कर उसे घायल कर दिया। ग्रामीणों की मदद से उसे जिला अस्पताल पहुंचाया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि:
- गुलदार खेतों और घरों के पास शाम होते ही दिखाई देने लगे हैं,
- मवेशियों पर हमले लगातार बढ़े हैं,
- कई इलाकों में महिलाएं और बच्चे अकेले बाहर निकलने से डर रहे हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की प्रतिक्रिया धीमी है और गश्त बढ़ाने के बावजूद कोई ठोस समाधान सामने नहीं आ रहा।
पखवाड़े में तीसरी घटना, 7 दिन में जयकोट में दूसरा हमला—ग्रामीणों में गुस्सा और डर
जयकोट और आसपास के इलाकों में भालुओं की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। पिछले 14 दिनों में भालुओं द्वारा हमला करने की यह तीसरी घटना है।
विशेष रूप से जयकोट में सात दिन के भीतर यह दूसरा हमला है।
14 नवंबर को घास काटने गईं नारु देवी और मीना देवी पर भी भालू ने हमला किया था।
- नीरु देवी किसी तरह झाड़ियों में छिपकर जान बचाने में सफल हुईं,
- जबकि मीना देवी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं और अभी तक अस्पताल में उपचाराधीन हैं।
तीनों घटनाओं ने ग्रामीणों में भय का माहौल पैदा कर दिया है। गांवों की महिलाओं का कहना है कि अब वे अकेले जंगल की ओर जाना बंद कर चुकी हैं, जबकि पुरुष भी समूह में ही काम पर निकल रहे हैं।
ग्रामीणों की मांग: भालुओं को पकड़कर दूर भेजा जाए, पीड़ितों को मुआवजा मिले
घटना के बाद जयकोट, रूंग, लंकारी और आसपास के गांवों के लोगों ने वन विभाग से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि:
- क्षेत्र में वन्यजीवों की असामान्य गतिविधि बढ़ गई है,
- कई बार सूचना देने के बावजूद विभाग ने “केवल पेट्रोलिंग” तक ही सीमित कार्रवाई की है,
- लगातार हमलों के कारण लोग खेत–खलिहानों और जंगलों में काम करने से डर रहे हैं।
वन क्षेत्राधिकारी बालम सिंह अल्मिया ने बताया कि टीम को घटना स्थल के लिए भेज दिया गया है और पीड़ित परिवार को नियमानुसार मुआवजा उपलब्ध कराया जाएगा।
उन्होंने कहा कि वन विभाग इलाके में गश्त बढ़ाएगा और आवश्यकता पड़ने पर कैप्चर टीम तैनात की जाएगी।
थल के भट्टी गांव में भी भालुओं का आतंक—स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा पर सवाल
मानव–वन्यजीव संघर्ष केवल धारचूला तक सीमित नहीं है।
थल तहसील के भट्टी गांव में भी पिछले कई दिनों से भालुओं का आतंक बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि भालू अपने बच्चों के साथ सुबह और शाम आबादी वाले रास्तों पर घूम रहे हैं, खासकर वह रास्ता जिससे प्राथमिक विद्यालय के बच्चे रोज गुजरते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता उमेश पाठक ने कहा:
- “भालू गांव के बिल्कुल पास दिखाई दे रहे हैं। बच्चे और बुजुर्ग सबसे अधिक खतरे में हैं। यदि समय रहते कार्रवाई न की गई तो बड़े हादसे की आशंका है।”
वन क्षेत्राधिकारी बेरीनाग चंदा मेहरा ने कहा कि इलाके में पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है और ग्रामीणों को सतर्क रहने के निर्देश जारी किए गए हैं।
विशेषज्ञों की राय: बढ़ते संघर्ष के पीछे जंगलों का सिमटना और भोजन की कमी बड़ी वजह
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, पिथौरागढ़—चंपावत—बागेश्वर बेल्ट में मानव–वन्यजीव संघर्ष का बढ़ना नई बात नहीं है, लेकिन पिछले दो वर्षों में इन घटनाओं में 40–45% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- जंगलों में भोजन की कमी,
- मानव हस्तक्षेप,
- जल स्रोतों का सूखना,
- और लगातार सिमटती वन सीमाएं
जैसे कारण भालुओं और गुलदारों को मानव बस्तियों की ओर धकेल रहे हैं।
पहाड़ी जिले में डर गहराया, वन विभाग पर दबाव
पिथौरागढ़ के ग्रामीण इलाकों में वन्यजीवों की सक्रियता आम बात बन चुकी है, लेकिन लगातार बढ़ रहे हमलों ने स्थिति को गंभीर बनाया है। युवक नरेंद्र और अन्य घायलों की हालत को देखते हुए ग्रामीणों में गुस्सा है और वे वन विभाग से तत्काल, तेज और ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
सरकारी संस्थाओं के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है—
ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, वन्यजीवों को नियंत्रित करना और मानव–वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना।



