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बिहार में राजनीतिक भूचाल: एनडीए की प्रचंड बढ़त, महागठबंधन 36 पर सिमटा — बीजेपी–जदयू में सबसे बड़ी पार्टी बनने की होड़ तेज

121 और 122 सीटों पर रिकॉर्ड मतदान के बाद मतगणना ने दिखाया स्पष्ट रुझान; बाहुबली सीटों, पीके की जनसुराज और एआईएमआईएम पर भी देशभर की नजरें

पटना/नई दिल्ली: बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए मंगलवार सुबह आठ बजे से शुरू हुई मतगणना ने प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदलने की ओर संकेत दे दिए हैं। दोपहर 1:30 बजे तक सामने आए रुझानों के अनुसार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने सत्ता में वापसी की लगभग सुनिश्चित स्थिति बना ली है, जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन (एमजीबी) ऐतिहासिक गिरावट की ओर बढ़ता दिख रहा है।

मतदान के दोनों चरणों में बिहार की जनता ने ऐतिहासिक उत्साह दिखाया—

  • पहले चरण की 121 सीटों पर 65%
  • दूसरे चरण की 122 सीटों पर रिकॉर्ड 67% मतदान

इतिहास गवाह है कि अधिक मतदान अक्सर सत्ता परिवर्तन या निर्णायक जनादेश की ओर संकेत देता है। रुझानों ने इसे पूरी तरह साबित कर दिया है।


एनडीए की सुनामी: 201 सीटों पर बढ़त, बीजेपी–जदयू की आंतरिक प्रतिस्पर्धा तेज

दोपहर 1:30 बजे जारी रुझानों के मुताबिक, एनडीए 243 में से 201 सीटों पर आगे है, जो गठबंधन की अब तक की सबसे बड़ी जीतों में से एक हो सकती है। इसमें सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि बीजेपी और जदयू दोनों ही सर्वाधिक सीटें पाने की दौड़ में कंधे से कंधा मिलाते दिख रहे हैं।

रुझानों में स्थिति इस प्रकार:

  • भारतीय जनता पार्टी (BJP): 91 सीटों पर आगे
  • जनता दल यूनाइटेड (JDU): 84 सीटों पर आगे
  • अन्य एनडीए सहयोगी दल: 26 सीटों पर बढ़त

एनडीए के इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मतदाता ने न केवल सरकार में विश्वास जताया है बल्कि गठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे नीतीश कुमार को फिर से मजबूत समर्थन दिया है।


महागठबंधन की स्थिति बदतर: 78 सीटों का नुकसान, सिर्फ 36 सीटों पर बढ़त

पिछले चुनाव में तेजस्वी यादव की पार्टी राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन इस बार माहौल बिल्कुल उलट गया है।

मौजूदा रुझान:

  • महागठबंधन कुल: 36 सीटों पर आगे
  • राजद (RJD): सिर्फ 27 सीटों पर आगे
  • कांग्रेस और वामदल मिलाकर 9 सीटों पर आगे

यह गिरावट महागठबंधन के लिए बड़ा झटका है, खासकर तब जब तेजस्वी यादव इस चुनाव में रोजगार, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आक्रामक अभियान चला रहे थे।


मोकामा, बड़हिया, आरा और मुंगेर जैसी सीटों पर ‘बाहुबली फैक्टर’ का असर

बिहार में चुनावी राजनीति लंबे समय से बाहुबली नेताओं और उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों के बिना अधूरी मानी जाती है।
इस चुनाव में भी देशभर की निगाहें कुछ प्रमुख सीटों पर टिकी रहीं:

मोकामा (अनंत सिंह का प्रभाव क्षेत्र):

यह सीट राजनीतिक और क्रिमिनल फैक्टर के लिए हमेशा चर्चा में रहती है। रुझान बता रहे हैं कि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी यह सीट निर्णायक मोड़ पर है और मतदाताओं ने “इमेज बनाम प्रभाव” के बीच दिलचस्प चयन किया है।

बख्तियारपुर, आरा और मुंगेर जैसे क्षेत्र:

इन इलाकों में स्थानीय समीकरण, जातीय संतुलन और बाहुबल की पुरानी परंपराएं अब भी चुनावी हवा बदलने की क्षमता रखती हैं।


प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी पर देशभर की नजर — क्या ‘पीके फैक्टर’ से बदलेगा सियासी समीकरण?

चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की जनसुराज पार्टी इस चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी है।
उनके “जनसुराज पदयात्रा”, “जमीनी राजनीति” और “100 वॉलंटियर मॉडल” ने नई राजनीतिक बहस छेड़ी।

हालांकि परिणामों के लिहाज से अभी जनसुराज कोई बड़े आंकड़े नहीं दिखा रही, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि

  • कई सीटों पर पीके की मौजूदगी ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया,
  • और कुछ सीटों पर महागठबंधन या एनडीए के वोटों में सेंध का प्रभाव दिख रहा है।

भविष्य में यह पार्टी बिहार की राजनीति का महत्वपूर्ण किरदार बन सकती है।


AIMIM की चुनौती सीमित, लेकिन सीमांचल में असर बरकरार

हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का असर
मुख्यतः सीमांचल के किशनगंज, कटिहार और अररिया बेल्ट में देखा जाता रहा है।
इस बार AIMIM कुछ सीटों पर बेहतर प्रदर्शन कर रही है, लेकिन राज्य स्तर पर बड़ा बदलाव फिलहाल रुझानों में नहीं दिख रहा।


बीजेपी–जदयू के बीच सबसे बड़ी पार्टी का खिताब कौन?

इस चुनाव का एक बेहद दिलचस्प पहलू यह है कि बीजेपी और जदयू दोनों ही 80 से अधिक सीटों के आंकड़े छूते दिख रहे हैं।

संभावित स्थिति:

  • यदि बीजेपी 90+ सीटें पाती है, तो वह अब तक की सबसे बड़ी पार्टी बनेगी।
  • अगर जदयू भी 80–85 सीटों तक पहुंचती है, तो दो बड़े पार्टियों वाला गठबंधन बिहार के सियासी गणित को नया रूप देगा।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, “सरकार तो एनडीए की ही बनेगी, सवाल सिर्फ इतना है कि ‘सबसे बड़ी पार्टी कौन?’


रुझान स्पष्ट — अब सरकार बनाने का रास्ता साफ

दोपहर तक आए रुझानों ने लगभग यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनने जा रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस जीत को अपनी ‘अनुभव और सुशासन’ की राजनीति की जीत बताएंगे, जबकि बीजेपी इसे मोदी–शाह के नेतृत्व और संगठन की जीत के रूप में पेश करने की तैयारी में है।

दूसरी ओर, महागठबंधन के लिए यह चुनाव बड़ी समीक्षा और आत्ममंथन का अवसर लेकर आया है।


आगे क्या? आधिकारिक परिणाम शाम तक

चुनाव आयोग के अनुसार, पूरे राज्य में सभी 243 मतगणना केंद्रों पर तीन स्तर की सुरक्षा, सीसीटीवी मॉनिटरिंग,और उम्मीदवारों तथा उनके एजेंटों की मौजूदगी में परिणाम प्रक्रिया जारी है। अधिकारिक परिणाम देर शाम तक जारी होने की संभावना है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के प्रारंभिक रुझानों ने एक बार फिर राज्य की राजनीति में बड़ा मोड़ ला दिया है।
एनडीए की अभूतपूर्व बढ़त, बीजेपी और जदयू की संयुक्त शक्ति, महागठबंधन की गिरावट, और नई राजनीतिक ताकतों (जनसुराज और AIMIM) की भूमिका—इन सबने मिलकर यह चुनाव बेहद रोचक बना दिया है।

अंतिम नतीजे चाहे जो हों, यह स्पष्ट है कि
बिहार ने इस बार स्थिरता, संगठन और नेतृत्व पर भरोसा जताया है।

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