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दिल्ली की हवा ‘जहरीली’ — लगातार 17वें दिन AQI 400 के पार, क्लाउड सीडिंग से मिली मामूली राहत

सांस लेना हो गया मुश्किल, प्रदूषण पर नियंत्रण को सरकार ने बढ़ाए कदम, विशेषज्ञ बोले — अब अल्पकालिक उपाय नहीं, दीर्घकालिक नीति की ज़रूरत

नई दिल्ली: दिवाली के एक हफ्ते बाद भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों की हवा में ज़हर घुला हुआ है। आसमान पर स्मॉग की मोटी परत अब शहर की पहचान बन चुकी है। गुरुवार को भी दिल्ली-एनसीआर के अधिकांश हिस्सों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के पार दर्ज किया गया, जो “बेहद खराब” श्रेणी में आता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, आनंद विहार में AQI 409, वजीरपुर में 394, अशोक विहार में 385, आईटीओ पर 365, जबकि आईजीआई एयरपोर्ट पर 316 दर्ज किया गया।
इसका मतलब यह है कि राजधानी के लोगों को लगातार 17वें दिन जहरीली हवा में सांस लेना पड़ रहा है।

हवा की रफ्तार बनी प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह

मौसम विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में हवा की दिशा और गति प्रदूषण नियंत्रण में अहम भूमिका निभाती है। फिलहाल हवा की रफ्तार 8 किलोमीटर प्रति घंटे से भी कम है, जिसके कारण प्रदूषक तत्व ऊपर नहीं उठ पा रहे।
आईआईटी-दिल्ली के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुनील दुबे बताते हैं, “जब हवा की गति धीमी होती है, तो धूल और धुएं के कण वायुमंडल में ऊपर नहीं जा पाते और सतह के करीब ही फंसे रहते हैं। इससे ‘स्मॉग’ की मोटी परत बन जाती है, जो सांस और आंखों के लिए बेहद खतरनाक होती है।”

इस स्थिति को और खराब बनाता है पराली का धुआं। सफर-इंडिया (SAFAR) की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हफ्ते दिल्ली की हवा में पराली प्रदूषण का योगदान करीब 32% तक पहुंच गया। यानी हर तीसरा प्रदूषण का कण, खेतों में जलती फसलों से निकल रहा धुआं है।

क्लाउड सीडिंग का प्रयोग — उम्मीद की एक किरण

प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार ने तकनीकी प्रयोगों की ओर कदम बढ़ाया है। हाल ही में मयूर विहार और बुराड़ी जैसे इलाकों में क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) का ट्रायल किया गया।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रयोग के बाद PM10 के स्तर में 41.9% तक की कमी दर्ज की गई और कुछ क्षेत्रों में AQI में स्पष्ट सुधार देखा गया।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “बादलों में नमी की कमी के बावजूद यह प्रयोग सफल रहा। हमारा लक्ष्य केवल क्लाउड सीडिंग पर निर्भर रहना नहीं है — हम सड़क धूल नियंत्रण, निर्माण स्थलों की मॉनिटरिंग, वाहन उत्सर्जन की जांच और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने 200 से अधिक टीमों को विभिन्न इलाकों में तैनात किया है जो एंटी-स्मॉग गन, मिस्ट स्प्रे और मोबाइल मॉनिटरिंग वैन की मदद से लगातार जांच कर रही हैं।

सड़कें, वाहन और धूल — दिल्ली की ‘घुटन’ के तीन बड़े कारण

पर्यावरणविद मानते हैं कि दिल्ली की मौजूदा स्थिति सिर्फ मौसम की वजह से नहीं है, बल्कि शहरी अव्यवस्था और नियोजन की कमी इसका मूल कारण है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की प्रमुख सुनीता नारायण कहती हैं, “दिल्ली में हर साल लाखों नए वाहन सड़कों पर उतरते हैं, लेकिन सड़कें वही पुरानी हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआं, खुले निर्माण स्थलों की धूल और औद्योगिक उत्सर्जन मिलकर यह जहरीला मिश्रण तैयार करते हैं। जब तक ट्रैफिक और कचरा प्रबंधन पर ठोस नीति नहीं बनती, तब तक क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकें केवल अस्थायी राहत ही दे सकती हैं।”

‘सांस लेना अब लक्ज़री हो गया’ — बाजार में प्यूरीफायर की मांग बढ़ी

वायु प्रदूषण का असर सीधे आम लोगों की जेब पर भी दिख रहा है। दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर में एयर प्यूरीफायर की बिक्री में 60% तक का उछाल दर्ज किया गया है।
केंद्रीय बाजार और लाजपत नगर के इलेक्ट्रॉनिक्स विक्रेताओं के अनुसार, “पिछले पांच दिनों में एयर प्यूरीफायर, मास्क और ह्यूमिडिफायर की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।” साउथ दिल्ली की निवासी नेहा भटनागर, जो दो छोटे बच्चों की मां हैं, कहती हैं, “अब तो लगता है साफ हवा भी खरीदनी पड़ रही है। बच्चे बार-बार बीमार हो रहे हैं, स्कूल में आउटडोर एक्टिविटीज़ बंद कर दी गई हैं।”

स्कूलों में आउटडोर गतिविधियां रुकीं, मास्क फिर लौटे

प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए कई स्कूलों ने खेल और प्रार्थना सभाओं जैसी बाहरी गतिविधियां अस्थायी रूप से बंद कर दी हैं। दिल्ली सरकार ने भी संकेत दिया है कि यदि वायु गुणवत्ता अगले 48 घंटों में नहीं सुधरती, तो GRAP-III (Graded Response Action Plan) के तहत स्कूल बंद करने जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है।

क्या आने वाले दिनों में राहत मिलेगी?

आईएमडी (IMD) के मुताबिक, अगले 2-3 दिनों तक हवा की दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला। हालांकि रविवार के बाद हल्की उत्तरी हवा चलने की संभावना जताई गई है, जो कुछ राहत दे सकती है। लेकिन अगर तापमान और गिरा, तो प्रदूषक तत्व और नीचे बैठ जाएंगे।
आईएमडी के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर.के. जेन कहते हैं, “फिलहाल स्थिति नाजुक है। प्रदूषण के स्तर में गिरावट के लिए हवा की गति 10 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक होनी चाहिए, तभी स्मॉग परत टूटेगी।”

विशेषज्ञों का सुझाव — दीर्घकालिक योजना ही समाधान

प्रदूषण नियंत्रण पर काम करने वाले संस्थान लगातार यह सुझाव दे रहे हैं कि दिल्ली और एनसीआर के राज्यों को मिलकर दीर्घकालिक नीतिगत ढांचा (Long-term Policy Framework) तैयार करना होगा।
टेरि (TERI) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मधुलिका जोशी का कहना है, “हमें हर साल नवंबर में स्मॉग से लड़ने के बजाय जुलाई से ही तैयारियां शुरू करनी चाहिए — जैसे कि पराली के विकल्पों को बढ़ावा देना, औद्योगिक उत्सर्जन का ऑडिट और सार्वजनिक परिवहन को और सुलभ बनाना।”

दिल्ली फिर से सांस के लिए जद्दोजहद में

फिलहाल राजधानी की हवा में मौजूद बारीक कण (PM2.5) विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से 12 गुना अधिक हैं। लोगों की आंखों में जलन, गले में खराश और सांस की तकलीफ जैसी शिकायतें बढ़ रही हैं। डॉक्टरों ने बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर कम निकलने की सलाह दी है। दिल्ली का यह हाल बताता है कि प्रदूषण अब सिर्फ मौसम की समस्या नहीं, बल्कि स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है — और जब तक नीतिगत स्तर पर ठोस, संयुक्त प्रयास नहीं किए जाते, तब तक दिल्ली की हवा में यह ज़हर यूं ही घुलता रहेगा।

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