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अब दिल्ली की अशुद्ध हवा को शुद्ध करेगी IIT कानपुर की ‘आर्टिफिशियल रेन’ टेक्नोलॉजी

वैज्ञानिकों ने शुरू किया विशेष मिशन — अगले तीन दिनों में दिल्ली की हवा को किया जाएगा प्रदूषण-मुक्त करने का प्रयास

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर: देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर प्रदूषण के खतरनाक स्तर से जूझ रही है। आसमान में धुंध की मोटी परत छाई है और वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई इलाकों में 450 के पार पहुंच गया है, जो ‘गंभीर श्रेणी’ में आता है। इस बीच राहत की उम्मीद लेकर आई है IIT कानपुर की वैज्ञानिक टीम, जिसने ‘आर्टिफिशियल रेन’ यानी कृत्रिम वर्षा का नया प्रयोग तैयार किया है।

यह टीम दिल्ली सरकार और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के सहयोग से अगले तीन दिनों के भीतर इस मिशन को अंजाम देने जा रही है।


धुंध और स्मॉग से परेशान दिल्ली

हर साल अक्टूबर-नवंबर के दौरान दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण स्तर खतरनाक सीमा पार कर जाता है।
इस वर्ष भी हालात बेहद चिंताजनक हैं — सफदरजंग, आनंद विहार, द्वारका, वज़ीरपुर और गाज़ियाबाद में AQI 480 से ऊपर दर्ज किया गया।
स्मॉग की परत इतनी घनी है कि विज़िबिलिटी 500 मीटर से भी कम रह गई।
स्कूलों में अवकाश बढ़ा दिए गए हैं, निर्माण गतिविधियों पर रोक लगी है और ‘ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP)’ का चौथा चरण लागू कर दिया गया है।


IIT कानपुर की तकनीक कैसे करेगी काम

IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने बताया कि कृत्रिम वर्षा के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ (Cloud Seeding) तकनीक अपनाई जाएगी।
इस तकनीक में सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), सोडियम क्लोराइड (NaCl) और पोटेशियम आयोडाइड (KI) जैसे तत्वों का मिश्रण तैयार किया जाता है।

यह मिश्रण एक विशेष टर्बोप्रॉप एयरक्राफ्ट में भरा जाएगा, जो बादलों की सतह पर जाकर इन कणों को स्प्रे करेगा।
इन रासायनिक कणों से बादलों में संघनन (condensation) बढ़ेगा और कृत्रिम वर्षा शुरू होगी।
बारिश के पानी के साथ प्रदूषक कण जमीन पर बैठ जाते हैं, जिससे हवा अस्थायी रूप से शुद्ध हो जाती है।

IIT कानपुर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मनीष शर्मा ने बताया —

“हमने पिछले पांच सालों में इस तकनीक पर कई प्रयोग किए हैं। अब दिल्ली में इसे व्यावहारिक रूप से लागू करने की तैयारी पूरी है। मौसम विभाग से अनुमति मिलते ही मिशन शुरू होगा।”


मौसम की स्थिति अनुकूल

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अगले 72 घंटों में उत्तर भारत में नमी और बादल बनने की संभावना है, जो इस प्रयोग के लिए आदर्श स्थिति है।
IMD के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर. के. जैन ने कहा —

“क्लाउड सीडिंग तभी प्रभावी होती है जब आकाश में पर्याप्त नमी और बादलों की मात्रा हो। दिल्ली और आसपास के इलाकों में यह स्थिति सोमवार से बुधवार के बीच अनुकूल रहेगी।”

टीम ने बताया कि फिलहाल दो विमानों की मदद से यह प्रयोग किया जाएगा।
पहला विमान केमिकल स्प्रे करेगा और दूसरा विमान ऊँचाई पर जाकर एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग करेगा, ताकि प्रभाव का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सके।


केंद्रीय मंत्रालय की मंजूरी

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना को ‘राष्ट्रीय क्लीन एयर मिशन (NCAP)’ के तहत मंजूरी दी है।
दिल्ली सरकार भी इस प्रोजेक्ट की सह-वित्तपोषक है।
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा —

“दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए हर संभव विकल्प अपनाया जा रहा है। IIT कानपुर की टीम के साथ मिलकर हम यह ऐतिहासिक प्रयोग शुरू कर रहे हैं। अगर परिणाम सकारात्मक रहे, तो इसे पूरे एनसीआर में लागू किया जाएगा।”


क्या है आर्टिफिशियल रेन का इतिहास

‘क्लाउड सीडिंग’ तकनीक नई नहीं है।
दुनिया के कई देश — जैसे चीन, इज़राइल, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) — वर्षों से इसे सूखा राहत या प्रदूषण नियंत्रण के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत में 2018 और 2019 में भी पुणे, हैदराबाद और बेंगलुरु में सीमित पैमाने पर यह प्रयोग सफल रहा था।

IIT कानपुर की टीम ने 2018 में दिल्ली-एनसीआर में भी इसका एक परीक्षण किया था, लेकिन उस समय पर्याप्त बादल न होने के कारण प्रक्रिया अधूरी रह गई थी।
इस बार, मौसम की स्थिति बेहतर है और उपकरण भी आधुनिक बनाए गए हैं।


विशेषज्ञों की राय — “अस्थायी राहत, लेकिन कारगर उपाय”

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि कृत्रिम वर्षा से हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5, PM10) अस्थायी रूप से नीचे बैठ जाएंगे, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।
हालांकि, यह कोई स्थायी समाधान नहीं है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा —

“आर्टिफिशियल रेन प्रदूषण के स्तर को तुरंत घटा सकती है, लेकिन असली समाधान स्रोत नियंत्रण है — जैसे पराली जलाना, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक धुआं।”

उन्होंने कहा कि सरकार को समानांतर रूप से क्लीन एनर्जी और कृषि प्रबंधन नीतियों पर भी फोकस करना होगा।


दिल्ली-NCR के लोग कर रहे उम्मीद

राजधानी में लगातार बिगड़ती हवा से परेशान लोग इस तकनीक को लेकर उत्साहित हैं।
द्वारका निवासी राधा सिंह कहती हैं —

“हर साल हम अपने बच्चों को मास्क पहनाकर स्कूल भेजते हैं। अगर कृत्रिम बारिश से थोड़ी भी राहत मिलती है, तो यह बड़ा कदम होगा।”

वहीं कारोबारी अमित बंसल का कहना है —

“दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं रही। यह पहल देर से सही, लेकिन जरुरी है।”


चुनौतियाँ और सीमाएँ

IIT कानपुर की टीम ने यह भी स्वीकार किया कि इस प्रक्रिया में कई तकनीकी चुनौतियाँ हैं —

  • मौसम का सहयोग जरूरी है, वरना बारिश नहीं होगी।
  • प्रक्रिया महंगी है; एक बार के क्लाउड सीडिंग में लगभग ₹70–₹80 लाख का खर्च आता है।
  • बारिश के प्रभाव सीमित समय तक ही रहता है, लगभग 48–72 घंटे तक।

फिर भी वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के साथ-साथ लखनऊ, पटना और कोलकाता जैसे प्रदूषण-प्रभावित शहरों में भी लागू किया जा सकता है।


स्वच्छ हवा की ओर एक तकनीकी कदम

दिल्ली की जहरीली हवा को शुद्ध करने के इस प्रयास ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। IIT कानपुर की यह परियोजना न केवल तकनीकी दृष्टि से अहम है, बल्कि यह भारत में ‘क्लाइमेट इंजीनियरिंग’ की दिशा में भी एक बड़ा प्रयोग साबित हो सकती है।

यदि कृत्रिम वर्षा से हवा में सुधार आता है, तो यह आने वाले वर्षों में भारत की शहरी प्रदूषण नीति का अभिन्न हिस्सा बन सकता है। फिलहाल, दिल्लीवासी आसमान की ओर देख रहे हैं — उम्मीद में कि अगली बारिश, चाहे कृत्रिम ही क्यों न हो, सांसों में राहत लेकर आए।

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