
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2025: देश में तेजी से बढ़ते साइबर अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों के बीच प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) ने एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत 100 करोड़ रुपये से अधिक के साइबर फ्रॉड से जुड़ी जांच में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है।
ईडी की सूरत सब-जोनल ऑफिस की टीम ने इन आरोपियों को गिरफ्तार किया है। जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है, उनके नाम हैं — मकबुल अब्दुल रहमान डॉक्टर, काशिफ मकबुल डॉक्टर, महेश मफतलाल देसाई और ओम राजेंद्र पंड्या। एजेंसी ने आरोपियों के खिलाफ वित्तीय धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा और हवाला के जरिये अपराध की रकम छिपाने के साक्ष्य मिलने के बाद यह कार्रवाई की।
कैसे काम करता था साइबर फ्रॉड का नेटवर्क
जांच एजेंसी के अनुसार, यह गिरोह अत्याधुनिक डिजिटल तकनीक और सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से लोगों को ठगता था। आरोपियों ने कई तरीकों का इस्तेमाल किया, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
- फर्जी “डिजिटल अरेस्ट” नोटिस: पीड़ितों को यह बताया जाता था कि वे किसी आपराधिक जांच में शामिल हैं और यदि तुरंत जुर्माना या पेनल्टी नहीं चुकाई तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा।
- फॉरेक्स ट्रेडिंग फ्रॉड: आरोपियों ने ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स के नाम पर निवेशकों को भारी मुनाफे का झांसा दिया और फिर निवेश की गई रकम गायब कर दी।
- फर्जी सुप्रीम कोर्ट और ईडी के नोटिस: लोगों के ईमेल और मोबाइल नंबर पर फर्जी नोटिस भेजे जाते थे, जिनमें कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर पैसे वसूले जाते थे।
ईडी ने बताया कि इस गिरोह ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी फैले नेटवर्क के जरिये लोगों को निशाना बनाया। प्राथमिक जांच में सामने आया कि 100 करोड़ रुपये से अधिक की राशि विभिन्न खातों में ट्रांसफर कर उसे क्रिप्टोकरेंसी में बदल दिया गया, ताकि ट्रांजैक्शन का पता लगाना मुश्किल हो जाए।
क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग का खुलासा
एजेंसी के अनुसार, आरोपी अपराध की रकम (Proceeds of Crime) को USDT (Tether) जैसी क्रिप्टोकरेंसी में बदलकर हवाला नेटवर्क के जरिए विदेश भेजते थे।
इसके लिए उन्होंने फर्जी नामों से बैंक खाते और प्री-एक्टिवेटेड सिम कार्ड्स का इस्तेमाल किया। इन खातों का उपयोग साइबर फ्रॉड से जुटाई गई रकम को विभिन्न लेयर्स में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता था, जिससे जांच एजेंसियों को स्रोत तक पहुंचने में मुश्किल हो।
जांच में यह भी सामने आया कि कई बैंक खातों में एक ही मोबाइल नंबर और IP एड्रेस से ट्रांजैक्शन किए गए, जिससे एक बड़ा सिंडिकेट-आधारित नेटवर्क होने की संभावना जताई जा रही है।
ईडी की त्वरित कार्रवाई, अदालत ने दी पांच दिन की कस्टडी
प्रवर्तन निदेशालय ने इन चारों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद अहमदाबाद की विशेष पीएमएलए अदालत में पेश किया, जहाँ अदालत ने उन्हें 5 दिन की ईडी कस्टडी में भेज दिया। ईडी का कहना है कि पूछताछ के दौरान आरोपियों से अन्य सहयोगियों और विदेशी नेटवर्क से जुड़े कई महत्वपूर्ण खुलासे होने की उम्मीद है।
एजेंसी अब यह जांच कर रही है कि अपराध की रकम किन देशों में ट्रांसफर की गई और क्या इसके तार किसी अंतरराष्ट्रीय साइबर फ्रॉड सिंडिकेट से जुड़े हैं।
‘डिजिटल अरेस्ट’ का नया जाल: साइबर ठगी का खतरनाक रुझान
ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपी “डिजिटल अरेस्ट” नामक नई साइबर ठगी का इस्तेमाल कर रहे थे। इसमें अपराधी पीड़ित के फोन या कंप्यूटर को रिमोटली लॉक कर देते हैं और खुद को कानून प्रवर्तन एजेंसी का अधिकारी बताकर वीडियो कॉल पर धमकी देते हैं।
वे कहते हैं कि यदि पीड़ित तुरंत “जुर्माना” नहीं भरेगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। इस मनोवैज्ञानिक दबाव में कई लोग बड़ी रकम ट्रांसफर कर देते हैं।
यह तकनीक विशेष रूप से उन लोगों को निशाना बनाती है जो कानून से डरते हैं या तकनीकी रूप से कम जानकार हैं। ईडी ने इसे “नए युग का डिजिटल जबरन वसूली तंत्र” बताया है।
ईडी और अन्य एजेंसियां कर रहीं समन्वित कार्रवाई
इस मामले में ईडी ने अब राज्य पुलिस साइबर सेल, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और विदेश मंत्रालय (MEA) से भी समन्वय शुरू कर दिया है।
प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि यह मामला केवल वित्तीय अपराध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा से जुड़ा एक गंभीर मामला है।
सूत्रों के अनुसार, एजेंसी ने अब तक 30 से अधिक बैंक खातों को फ्रीज किया है और डिजिटल वॉलेट्स की जांच भी जारी है। कई खातों में करोड़ों रुपये के ट्रांजैक्शन का पता चला है जो “शेल कंपनियों” के नाम पर खोले गए थे।
ईडी का संदेश – साइबर फ्रॉड पर सख्त कार्रवाई जारी रहेगी
ईडी के अधिकारियों ने कहा कि यह कार्रवाई उन दर्जनों मामलों में से एक है जिनमें देशभर में आम नागरिकों को डिजिटल माध्यमों से ठगा जा रहा है।
एजेंसी का कहना है कि इस तरह के साइबर अपराध, न केवल वित्तीय प्रणाली को कमजोर करते हैं, बल्कि साइबर सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ईडी आने वाले समय में क्रिप्टोकरेंसी आधारित धोखाधड़ी और ऑनलाइन ठगी के खिलाफ और भी बड़े स्तर पर अभियान चलाएगी। इस दिशा में बैंकों और टेलीकॉम ऑपरेटरों के साथ भी समन्वय किया जा रहा है ताकि ऐसे नेटवर्क की पहचान जल्द की जा सके।”
देश में बढ़ते साइबर अपराधों पर चिंता
गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत में बीते तीन वर्षों में साइबर अपराध के मामलों में लगभग 65% की वृद्धि दर्ज की गई है।
इनमें से अधिकांश मामलों में डिजिटल पेमेंट फ्रॉड, निवेश धोखाधड़ी और फर्जी कॉल सेंटर शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डीपफेक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से साइबर अपराधियों के तौर-तरीके और भी उन्नत हो रहे हैं।
सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (http://www.cybercrime.gov.in) को मजबूत करने, और साइबर फॉरेंसिक यूनिट्स की क्षमता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं।
ईडी की यह कार्रवाई न केवल 100 करोड़ रुपये से अधिक के बड़े साइबर फ्रॉड नेटवर्क को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि डिजिटल वित्तीय अपराध अब कितनी तेजी से विकसित हो रहे हैं। एजेंसी का यह कदम संदेश देता है कि साइबर अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल किसी भी व्यक्ति या नेटवर्क को बख्शा नहीं जाएगा।