
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर 2025। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले केंद्र सरकार ने संसद की 24 स्थायी समितियों का गठन कर दिया है। इस बार समितियों की जिम्मेदारियों का बंटवारा दलगत ताकत और राजनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए किया गया है। कुल 24 समितियों में से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 11, कांग्रेस को 4, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 2, डीएमके को 2, समाजवादी पार्टी को 1, जनता दल (यूनाइटेड) को 1, एनसीपी (अजित पवार गुट) को 1, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को 1 और शिवसेना (शिंदे गुट) को 1 समिति की अध्यक्षता सौंपी गई है।
प्रमुख नेताओं को मिली जिम्मेदारी
गठित समितियों में कई चर्चित नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी गई है।
- कांग्रेस सांसद शशि थरूर विदेश मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष बने रहेंगे। यह समिति भारत की विदेश नीति, कूटनीतिक संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संसद को इनपुट देती है।
- बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी को जल संसाधन मंत्रालय से जुड़ी समिति की कमान दी गई है। उनका अनुभव और प्रशासनिक पकड़ इस समिति के कामकाज को मजबूती देने की उम्मीद जगाती है।
- टीएमसी सांसद डोला सेन को वाणिज्य से जुड़ी समिति की जिम्मेदारी मिली है, जबकि बीजेपी सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल गृह मामलों की समिति का नेतृत्व करेंगे।
- इसके अलावा, बैजंयत पांडा को Insolvency and Bankruptcy Code Select Committee का अध्यक्ष बनाया गया है।
- युवा सांसद तेजस्वी सूर्या को जनविश्वास विधेयक पर गठित सेलेक्ट कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह जिम्मेदारियाँ राजनीतिक अनुभव और युवा नेतृत्व, दोनों का संतुलन दर्शाती हैं।
कार्यकाल बढ़ाने पर विचार: सांसदों की चिंता
सरकार इस समय एक अहम प्रस्ताव पर विचार कर रही है — संसदीय स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर दो साल करने का।
वर्तमान में समितियों का कार्यकाल मात्र एक वर्ष का होता है। संसद से जुड़े सूत्रों के अनुसार, कई सांसदों ने सरकार और सदन के शीर्ष पदाधिकारियों से शिकायत की है कि एक साल का समय किसी भी गंभीर विषय पर गहन अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति सीपी राधाकृष्णन के साथ चर्चा के बाद इस संबंध में जल्द कोई ठोस निर्णय लिया जा सकता है।
समितियों का कार्य और महत्व
संसद की 24 विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों से जुड़े विषयों पर काम करती हैं।
- इनमें से 8 समितियों की अध्यक्षता राज्यसभा सदस्य करते हैं।
- जबकि 16 समितियों का नेतृत्व लोकसभा सदस्य संभालते हैं।
इनके अलावा, संसद में कई अन्य वित्तीय समितियाँ, तदर्थ समितियाँ और विशेष समितियाँ भी गठित होती हैं, जिनका दायित्व विधेयकों की समीक्षा, नीतियों पर सुझाव देना और सरकार की जवाबदेही तय करना होता है।
स्थायी समितियों का गठन हर साल सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में होता है। इसका निर्धारण इस बात से होता है कि समिति का औपचारिक गठन किस तारीख को हुआ है।
राजनीतिक संतुलन और गठबंधन की झलक
इस बार के बंटवारे से साफ है कि समितियों की जिम्मेदारी तय करते समय संसद में दलगत शक्ति के अनुपात को ध्यान में रखा गया है।
- बीजेपी को सबसे ज्यादा 11 समितियों की कमान मिली है, जो उसकी संख्याबल को दर्शाती है।
- विपक्ष की ओर से कांग्रेस को 4, टीएमसी और डीएमके को 2-2 समितियाँ मिली हैं।
- छोटे लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत दल जैसे समाजवादी पार्टी, जेडीयू, एनसीपी (अजित पवार गुट), टीडीपी और शिवसेना (शिंदे गुट) को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बंटवारा विभिन्न दलों को शामिल करने की संसद की परंपरा को कायम रखता है।
क्यों अहम है कार्यकाल बढ़ाना?
संसदीय विशेषज्ञों का कहना है कि एक साल का कार्यकाल समितियों की प्रभावशीलता को सीमित कर देता है। अक्सर समिति अपने कार्यकाल के शुरुआती महीनों में सिर्फ एजेंडा तय करने और प्राथमिक अध्ययन करने में व्यस्त रहती है। जब तक गहराई से काम शुरू होता है, तब तक कार्यकाल समाप्ति की ओर बढ़ जाता है।
यदि कार्यकाल दो साल का कर दिया जाता है तो –
- समितियों को लंबे समय तक गहन अध्ययन का अवसर मिलेगा।
- अंतरराष्ट्रीय विषयों पर विस्तृत परामर्श और रिपोर्टिंग संभव होगी।
- संसद को मजबूत और तथ्यात्मक रिपोर्टें मिलेंगी, जिससे नीतिगत फैसले अधिक सटीक होंगे।
समितियों का भविष्य और चुनौतियाँ
यद्यपि समितियों का गठन हर साल होता है, लेकिन उनकी रिपोर्टों का कार्यान्वयन सरकार की इच्छाशक्ति और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि समितियाँ संसद की जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने का सबसे बड़ा औजार हैं।
आगामी महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार कार्यकाल बढ़ाने के प्रस्ताव को लागू करती है या नहीं। अगर ऐसा हुआ, तो भारतीय संसदीय प्रणाली में यह एक बड़ा सुधार माना जाएगा।
संसद की 24 स्थायी समितियों का गठन राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी बाँटने और सरकार को जवाबदेह बनाने की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। इस बार के बंटवारे से सत्ता और विपक्ष, दोनों को संतुलित प्रतिनिधित्व मिला है।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार समितियों का कार्यकाल दो साल तक बढ़ाने का ऐतिहासिक फैसला लेती है। यदि ऐसा हुआ तो संसदीय समितियों की प्रभावशीलता, पारदर्शिता और गहनता और भी बढ़ जाएगी, जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।