मालेगांव ब्लास्ट केस: कोर्ट से बरी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी आरोपियों को हाई कोर्ट का नोटिस
पीड़ित परिवारों ने विशेष एनआईए कोर्ट के फैसले को दी चुनौती | हाई कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत सभी को 6 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश, हाई कोर्ट की सख्ती: सभी आरोपियों को भेजा नोटिस

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी किए गए सभी सात आरोपियों और एनआईए को नोटिस जारी किया है। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य आरोपियों को छह हफ्तों में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखड की बेंच के समक्ष हुई।
पीठ ने साफ किया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी पक्षों से लिखित जवाब अनिवार्य है। साथ ही कोर्ट ने एनआईए से भी पूछा है कि उसने बरी करने के फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी।
पीड़ित परिवारों की अपील पर सुनवाई
दरअसल, इस केस में मृतकों के परिजनों ने विशेष एनआईए कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। उनका कहना है कि जांच एजेंसी ने तकनीकी खामियों और साक्ष्यों की कमी का हवाला देकर केस को कमजोर कर दिया।
याचिका में कहा गया है कि “सिर्फ जांच में गड़बड़ी या साक्ष्यों की कमी के आधार पर आतंकवादी गतिविधियों जैसे गंभीर अपराधों में आरोपियों को बरी नहीं किया जा सकता। यह उन परिवारों के साथ अन्याय है जिन्होंने इस विस्फोट में अपने अपनों को खोया।”
बॉम्बे हाई कोर्ट की पिछली टिप्पणी
16 सितंबर को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने कहा था कि किसी भी क्रिमिनल केस में बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील का अधिकार हर किसी को नहीं है। यह अधिकार केवल उन्हीं को है जो ट्रायल में गवाह रहे हों या सीधे तौर पर पीड़ित पक्ष से जुड़े हों। इस केस में चूंकि पीड़ित परिवार सीधे प्रभावित हैं, इसलिए उनकी याचिका पर सुनवाई बनती है।
31 जुलाई को बरी हुए थे सभी आरोपी
विशेष एनआईए कोर्ट ने 31 जुलाई को साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा। इसके बाद ही मामला फिर से हाई कोर्ट पहुंचा।
इस फैसले के बाद राजनीति भी गरमा गई थी। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि सरकार की दबाव में एनआईए ने केस को कमजोर किया, जबकि भाजपा नेताओं ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह “सच्चाई की जीत” है।
क्या था 2008 का मालेगांव विस्फोट मामला?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में विस्फोट हुआ था। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। जांच में सामने आया कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी। इसी आधार पर एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और अन्य को आरोपी बनाया।
बाद में मामला एनआईए को सौंपा गया। एनआईए ने कई गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर चार्जशीट दाखिल की थी, लेकिन ट्रायल के दौरान कई गवाह मुकर गए।
आरोपियों का पक्ष
आरोपियों ने कोर्ट में दावा किया कि वे राजनीतिक साजिश का शिकार हुए। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि उनकी छवि खराब करने के लिए झूठे केस में फंसाया गया। वहीं कर्नल पुरोहित ने कहा कि उन्हें फर्जी तरीके से जेल में डालकर सालों तक उत्पीड़न सहना पड़ा।
उनके वकीलों ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं दे पाया। सभी गवाहों के बयान विरोधाभासी थे और विस्फोट की साजिश का कोई ठोस लिंक स्थापित नहीं हो सका।
एनआईए की भूमिका और विवाद
इस केस में एनआईए की भूमिका लगातार सवालों के घेरे में रही। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि एजेंसी ने जानबूझकर कमजोर सबूत पेश किए ताकि आरोपी बरी हो सकें। हालांकि एनआईए ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि उसने जांच निष्पक्ष तरीके से की।
अब हाई कोर्ट ने जब एनआईए से जवाब मांगा है, तो यह एजेंसी के लिए भी बड़ी चुनौती होगी कि वह अपने फैसले का बचाव कैसे करती है।
कानूनी पहलू: क्यों जरूरी है हाई कोर्ट की सुनवाई?
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में जब भी किसी निचली अदालत से आरोपी बरी होते हैं, तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील की संभावना रहती है। लेकिन इसके लिए अपीलकर्ता का केस से जुड़ा होना जरूरी है।
इस मामले में पीड़ित परिवार सीधे प्रभावित पक्ष हैं, इसलिए उनकी अपील स्वीकार की गई है। हाई कोर्ट अब यह देखेगा कि क्या एनआईए कोर्ट का बरी करने का फैसला उचित था या नहीं।
राजनीतिक ऐंगल भी जुड़ा
मालेगांव ब्लास्ट केस हमेशा से राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भाजपा से लोकसभा सांसद हैं, जबकि कर्नल पुरोहित को सेना से निलंबित किया गया था। विपक्ष इस केस को “हिंदू आतंकवाद” से जोड़कर देखता रहा है, वहीं भाजपा इसे “झूठा नैरेटिव” बताती रही है।
हाई कोर्ट का यह कदम निश्चित रूप से राजनीतिक बहस को और तेज करेगा।
अगला कदम क्या?
हाई कोर्ट ने सभी पक्षों से छह हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके बाद अदालत तय करेगी कि विशेष एनआईए कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी या प्रक्रियात्मक कमी थी या नहीं।
अगर हाई कोर्ट को लगेगा कि बरी करने का फैसला गलत था, तो केस फिर से खुल सकता है और आरोपियों पर दोबारा मुकदमा चल सकता है।