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कोलकाता में यूपी पुलिस और स्थानीय पुलिस आमने-सामने: जानिए क्या रही वजह?

धोखाधड़ी केस में तृणमूल के पूर्व नेता के फ्लैट पर छापेमारी, तलाशी को लेकर टकराव

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में बुधवार को एक चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया। यहां उत्तर प्रदेश पुलिस और कोलकाता पुलिस के अधिकारियों के बीच टकराव की स्थिति बन गई। मामला एक धोखाधड़ी केस से जुड़ा है, जिसमें तृणमूल कांग्रेस (TMC) के पूर्व नेता बिभास अधिकारी और उनके बेटे की गिरफ्तारी हो चुकी है। यूपी पुलिस नोएडा से आई थी और छापेमारी के दौरान तलाशी को लेकर विवाद हो गया।


क्या है पूरा मामला?

धोखाधड़ी से जुड़े इस केस में नोएडा पुलिस ने पिछले महीने फर्जी थाना बनाकर लोगों से ठगी करने के आरोप में बिभास अधिकारी और उनके बेटे को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि यह गिरोह कोलकाता से ही एक फ्लैट के जरिए फर्जी पुलिस स्टेशन संचालित कर रहा था।

जांच को आगे बढ़ाने के लिए यूपी पुलिस की टीम बुधवार को कोलकाता पहुंची और बेलियाघाटा थाने के ठीक सामने स्थित एक बिल्डिंग में बने फ्लैट की तलाशी लेने गई।


चाबी को लेकर खींचतान

यहीं से विवाद शुरू हुआ।

  • नोएडा पुलिस का दावा था कि फ्लैट की चाबी स्थानीय पुलिस के पास है।
  • वहीं बेलियाघाटा पुलिस का कहना था कि उनके पास कोई चाबी नहीं है।
  • फ्लैट बंद होने की वजह से यूपी पुलिस तत्काल तलाशी नहीं कर सकी।

सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान दोनों पुलिस बलों के बीच काफी देर तक बहस और खींचतान होती रही।


गिरफ्तारी का बैकग्राउंड

पिछले महीने नोएडा पुलिस ने बिभास अधिकारी और उनके बेटे को गिरफ्तार किया था।

  • आरोप है कि इस गिरोह ने फर्जी थाना बनाकर कई लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी की।
  • पीड़ितों को विश्वास दिलाने के लिए वे नकली पुलिस यूनिफॉर्म और स्टेशन सेटअप का इस्तेमाल करते थे।
  • शुरुआती जांच में पता चला कि इस गिरोह का नेटवर्क दिल्ली-एनसीआर से लेकर बंगाल तक फैला हुआ है।

यूपी और बंगाल पुलिस के बीच समन्वय पर सवाल

इस घटना ने एक बार फिर राज्य पुलिस और बाहर से आई टीमों के बीच तालमेल की कमी को उजागर कर दिया है।

  • अक्सर देखा गया है कि किसी राज्य की पुलिस जब दूसरे राज्य में कार्रवाई करती है तो स्थानीय पुलिस के साथ टकराव की स्थिति बन जाती है।
  • कानूनी रूप से कार्रवाई के लिए स्थानीय थाने को सूचित करना अनिवार्य है, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर सहयोग की कमी विवाद पैदा कर देती है।

राजनीतिक रंग भी चढ़ा

क्योंकि मामला तृणमूल कांग्रेस के पूर्व नेता से जुड़ा है, इसलिए इस पर राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो गई है।

  • बीजेपी नेता आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार पारदर्शी जांच में अड़ंगा डाल रही है।
  • वहीं, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है और यूपी पुलिस कोलकाता आकर कानून-व्यवस्था बिगाड़ रही है।

विशेषज्ञों की राय

कानून विशेषज्ञों का मानना है कि

  • किसी भी राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में कार्रवाई करने से पहले स्थानीय पुलिस का पूरा सहयोग लेना चाहिए।
  • अगर यह समन्वय न हो तो फेडरल स्ट्रक्चर पर सवाल उठ सकते हैं।
  • ऐसी घटनाओं से जनता में भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है और अपराधियों को फायदा मिल सकता है।

आगे की कार्रवाई

बेलियाघाटा पुलिस फिलहाल जांच कर रही है कि फ्लैट किसके नाम पर रजिस्टर्ड है और वहां से क्या गतिविधियाँ चल रही थीं।
वहीं यूपी पुलिस ने साफ किया है कि वे मामले की जड़ तक जाएंगे क्योंकि कई पीड़ितों ने सीधे नोएडा पुलिस से शिकायत की थी।

कोलकाता की इस घटना ने दिखा दिया है कि जब अपराध का नेटवर्क राज्यों की सीमाओं से बाहर निकलकर फैलता है, तो पुलिस बलों के बीच बेहतर समन्वय और भरोसे की जरूरत और बढ़ जाती है। फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि बिभास अधिकारी से जुड़ी यह जांच किस दिशा में जाती है और यूपी-बंगाल पुलिस के बीच सहयोग की नई मिसाल बनती है या विवाद और गहराता है।

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