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हरियाणा ज़मीन घोटाले में रॉबर्ट वाड्रा से ईडी की लगातार पूछताछ, जानिए क्या है पूरा मामला

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कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा से प्रवर्तन निदेशालय (ED) हरियाणा के चर्चित ज़मीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूछताछ कर रही है। गुरुवार को लगातार तीसरे दिन वाड्रा से करीब 6.5 घंटे तक सवाल-जवाब किए गए। मंगलवार और बुधवार को भी करीब 6-6 घंटे की लंबी पूछताछ हो चुकी है।

ईडी दफ्तर में पेश होने से पहले रॉबर्ट वाड्रा ने मीडिया से बात करते हुए केंद्र सरकार पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि “हम जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं, चाहे जितनी बार बुलाया जाए, हम आएंगे। सभी सवालों के जवाब दे दिए हैं। इनमें कुछ भी नया नहीं है।”

क्या है हरियाणा ज़मीन सौदे का मामला?

साल 2008 की बात है, जब हरियाणा में कांग्रेस सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री के पद पर थे। इसी दौरान वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में 3.5 एकड़ ज़मीन खरीदी थी। यह ज़मीन उन्होंने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज नामक कंपनी से करीब 7.5 करोड़ रुपये में खरीदी थी।

तेज़ी से हुआ म्यूटेशन और लाइसेंस मंज़ूरी

इस सौदे को लेकर आरोप है कि ज़मीन का म्यूटेशन चंद घंटों में ही पूरा हो गया, जबकि यह प्रक्रिया आमतौर पर कई दिनों में पूरी होती है। इसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने वाड्रा की कंपनी को उस ज़मीन पर कमर्शियल कॉलोनी बनाने की अनुमति भी दे दी। यही से इस डील पर सवाल खड़े होने लगे।

चंद महीनों में करोड़ों का फायदा

कुछ ही महीनों के भीतर स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने वही ज़मीन डीएलएफ यूनिवर्सल को करीब 58 करोड़ रुपये में बेच दी। यानि कंपनी ने महज कुछ महीनों में लगभग 50 करोड़ रुपये का भारी मुनाफा कमाया।

एफआईआर, जांच और अफसरों का ट्रांसफर

साल 2018 में सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र शर्मा की शिकायत पर वाड्रा, हुड्डा, डीएलएफ और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ गुरुग्राम में एफआईआर दर्ज की गई। आरोपों में धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश जैसे गंभीर धाराएं जोड़ी गईं।

इस केस में एक बड़ा मोड़ तब आया जब आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस डील को फर्जी बताया और म्यूटेशन रद्द कर दिया। लेकिन इसके तुरंत बाद उनका तबादला कर दिया गया, जिससे विवाद और गहरा गया।

ढींगरा आयोग की जांच

2015 में हरियाणा की खट्टर सरकार ने मामले की जांच के लिए जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया। आयोग ने कई ऐसे ज़मीनी लाइसेंस की जांच की जो तत्कालीन सरकार द्वारा दिए गए थे। हालांकि, इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया क्योंकि भूपेंद्र हुड्डा ने इसे कोर्ट में चुनौती दी है।

चेक भुगतान पर भी सवाल

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को दिया गया भुगतान सिर्फ चेक में दिखाया गया, लेकिन वह चेक कभी बैंक में जमा ही नहीं हुआ। इससे इस सौदे की विश्वसनीयता पर और सवाल उठे।

रॉबर्ट वाड्रा ने अपने बचाव में कहा है कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है और वह जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले भी इन सभी सवालों के जवाब दिए जा चुके हैं और दोबारा पूछताछ में कुछ भी नया नहीं है।

 

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