आज यहाँ एक बहुआयामी कार्यक्रम हुआ जिसमें राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB), वेस्ट से वेल्थ की अवधारणा को सजीव करने के लिए गोबरधन योजना की शुरुआत करने जा रही है, इसमें गुजरात सरकार भी अपना योगदान दे रही है
सहकारिता आंदोलन ने भारत को न केवल दूध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है बल्कि देश की आने वाली पीढ़ियों को पोषणयुक्त बनाकर कुपोषण की समस्या हल करने में भी अमूल्य योगदान दिया है
अगर सरदार पटेल, मोरारजी देसाई और त्रिभुवन दास ने दूध के सहकारिता आंदोलन से देश के एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की कल्पना नहीं की होती तो आज पोषण के मामले में हम कहाँ होते ऐसा सोचते ही एक भयावह चित्र हमारे सामने खड़ा हो जाता
कोई भी संस्था जब 50 साल की हो जाती है तो ऐसा कहते हैं कि वह कालबाह्य हो जाती है क्योंकि समय बदलता है और संस्था जस की तस चलती है और धीरे-धीरे समय उसको अनुपयोगी बना देता है
इसलिए स्वर्ण जयंती अच्छे कामों को याद कर गौरव महसूस करने का अवसर तो है ही साथ ही आज संस्था में किस परिवर्तन की ज़रूरत है उस पर भी विचार करने का समय होता है
यह दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक होकर संतोष करने का समय नहीं है, अभी भी कुछ राज्यों में बहुत संभावनाएं हैं जिनका दोहन करना बाक़ी है, NCDFI को इन सभी संभावनाओं के दोहन का काम करना चाहिए और राज्य सरकारों के साथ मिलकर सभी बाधाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए
उत्पादन बढ़ने पर दुनिया में स्पर्धा के साथ उसे बेचना होगा और उसके लिए दूध उत्पादन लागत को नीचे लाने पर काम करना होगा
अच्छी नस्ल के पशुओं पर काम करना, प्रोसेसिंग कॉस्ट को नीचे लाना और इसका सजगता के साथ रिव्यू करना और पशुओं के पोषण आहार की लागत को भी नीचे लाना होगा
किसानों को डेयरी के साथ ही मधुमक्खी पालन और प्राकृतिक खाद के उत्पादन से जोड़ने के विकल्पों पर भी विचार करना होगा और अगर एक पूरा संपुट बनाकर किसान की आय को मज़बूत कर सकें तो हमें इसका फ़ायदा ज़रूर मिलेगा
मधुमक्खी पालन की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं और हम भारत से विश्वभर में बहुत अच्छा शहद भेज सकते हैं
इसके लिए गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और बिहार में बहुत अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क बना हुआ है और अगर इसे मधुमक्खी पालन के साथ जोड़ देते हो तो आप ही की व्यवस्था से कलेक्ट होकर एक्सपोर्ट हो सकता है
डेयरी के क्षेत्र में भारत ने जो चमत्कार किया है उसके लिए इससे जुड़े लोगों को मैं बहुत बधाई देता हूं, महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान आई है और उनका सशक्तिकरण डेयरी से ज़्यादा शायद किसी ने नहीं किया
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वेस्ट टू वेल्थ का कॉंसेप्ट सिर्फ़ स्वच्छता के साथ ही जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को भी इससे जोड़ना होगा और स्वच्छता इसी में समाहित है
अब समय आ गया है कि प्राकृतिक खेती की दिशा में भारत को आगे बढ़ाया जाए और विश्वभर में ऑर्गेनिक फ़ूड की डिमांड को अगर भारत पूरा कर दे तो हमारे अर्थतंत्र का कायाकल्प हो जाएगा
इसमें डेयरी सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, क्योंकि प्राकृतिक खेती के लिए मूल चीज़ गोबर है, अगर हर गांव में 2 या पांच गोबर गैस के प्लांट लग गए तो देखते देखते 5-10 साल में हर घर में लग जाएगा
नस्ल सुधार और देसी नस्लों के रखरखाव के लिए और अधिक काम किए जाने की ज़रूरत है क्यंकि देसी नस्ल के गोबर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की सबसे ज़्यादा क्षमता है
ई-मार्केट के व्यवसाय में इस क्षेत्र में 2015 में 267 करोड़ रूपए का लेन-देन था और अब 2021-22 में ये बढ़कर 4827 करोड़ रूपए हो गया है
कोविड महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान मुझे दूध की सप्लाई चेन के बिखरने की बहुत चिंता थी लेकिन 130 करोड़ के देश में कोऑपरेटिव सेक्टर के माध्यम से लॉकडाउन में भी किसी का बच्चा दूध के बिना ना रह जाए, इसकी व्यवस्था इस फ़ेडरेशन ने की है
डेयरी क्षेत्र में कई संभावनाएं हैं और 1.94 लाख गांवों का जो नेटवर्क बना हुआ है, इसमें लगभग 17 करोड़ से ज़्यादा किसान अपना दूध हर रोज़ कोऑपरेटिव को बेचते हैं
वर्ष 2020-21 में लगभग 65,000 करोड़ रूपए का भुगतान इन संघों के माध्यम से किसानों को हुआ है, कोऑपरेटिव क्षेत्र में अमूल, इफ़्को और महिलाओं द्वारा स्थापित लिज्जत पापड़ बहुत बड़ी सक्सेस स्टोरी हैं
सहकारिता मंत्रालय ने बहुत सारे इनीशिएटिव लिए हैं, इस सेक्टर के लिए बजट में 900 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है, सरकार ने सहकारी समितियों की टैक्स की समस्याओं को भी ऐड्रेस किया है, सहकारी चीनी मिलों की समस्याओं को रेट्रोस्पेक्टिव इफ़ेक्ट से दूर किया है
350 करोड़ रूपए की लागत से सभी की सभी 65000 Primary Agriculture Cooperative Society (PACS) को हम कम्प्यूटराइज़्ड करेंगे
1.94 लाख ग्रामीण दुग्ध उत्पादक मंडियों को कम्प्यूटराइज़्ड किया जाए और सहकारी नीति के लिए भी हम मसौदा तैयार कर रहे हैं
राष्ट्रीय सहकारी डेटा बैंक बनाने की शुरूआत भी हो चुकी है और मुझे उम्मीद है कि मार्च, 2023 तक ये डेटाबेस तैयार कर देश के सामने हम रखेंगे
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज गुजरात की राजधानी गांधीनगर में नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCDFI) के स्वर्ण जयंती समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया।कार्यक्रम में सहकारिता मंत्रालय के सचिव समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
श्री अमित शाह ने कहा कि आज यहाँ एक बहुआयामी कार्यक्रम हुआ जिसमें राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB), वेस्ट से वेल्थ की अवधारणा को सजीव करने के लिए गोबरधन योजना की शुरुआत करने जा रही है। इसमें गुजरात सरकार भी अपना योगदान दे रही है। उन्होंने कहा कि आज डेयरी के क्षेत्र में किसानों तक उनका अधिकार और रूपया पहुँचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था के साथ अच्छा कार्य करने वालों को पुरस्कार भी दिए गए हैं। साथ ही आज डेयरी संघ के स्वर्ण जयंती का अवसर भी है। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर मैं NCDFI से संबद्ध 223 ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ, 27 राज्य संघ और अनेकानेक ग्रामीण दूध उत्पादन सहकारी समितियों को बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि इस सहकारिता आंदोलन ने भारत को न केवल दूध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है बल्कि देश की आने वाली पीढ़ियों को पोषणयुक्त बनाकर कुपोषण की समस्या हल करने में अमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर सरदार पटेल, मोरारजी देसाई और त्रिभुवन दास ने दूध के सहकारिता आंदोलन से देश के एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की कल्पना नहीं की होती तो आज पोषण के मामले में हम कहाँ होते ऐसा सोचते ही एक भयावह चित्र हमारे सामने खड़ा हो जाता। श्री शाह ने कहा कि दलहन और तिलहन के मुक़ाबले आज दूध के क्षेत्र में कोई समस्या नहीं है क्योंकि दूध के क्षेत्र में सहकारिता आंदोलन ने मज़बूत होकर अनेक राज्यों में अच्छा काम किया है और इसमें NCDFI की बहुत बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा कि करोड़ों लोगों ने बूँद बूँद करके देशभर में दूध की धारा बहाई है और इसमें सहकारिता क्षेत्र का सबसे बड़ा योगदान है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि कोई भी संस्था जब 50 साल की हो जाती है तो ऐसा कहते हैं कि वह कालबाह्य हो जाती है क्योंकि समय बदलता है और संस्था जस की तस चलती है और धीरे-धीरे समय उसको अनुपयोगी बना देता है। इसलिए स्वर्ण जयंती अच्छे कामों को याद कर गौरव महसूस करने का अवसर तो है ही साथ ही आज संस्था में किस परिवर्तन की ज़रूरत है उस पर भी विचार करने का समय होता है। अगर यह आत्मचिंतन नहीं होता तो संस्थाएं ग़ैर प्रासंगिक और कालबाह्य हो जाती हैं क्योंकि समय परिवर्तनशील है। इसलिए संस्थाओं में परिवर्तन करने के लिए स्वर्ण जयंती से अच्छा अवसर नहीं होता।
श्री अमित शाह ने कहा कि यह दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक होकर संतोष करने का समय नहीं है, अभी भी कुछ राज्यों में बहुत संभावनाएं हैं जिनका दोहन करना बाक़ी है। उन्होने कहा कि NCDFI को इन सभी संभावनाओं के दोहन का काम करना चाहिए और राज्य सरकारों के साथ मिलकर सभी बाधाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया (NCDFI) का सबसे पहला काम सभी राज्यों की संभावनाओं को तलाश कर जो बाधाएं हैं उन्हें दूर करना, दूसरा उत्पादन बढ़ने पर दुनिया में स्पर्धा के साथ उसे बेचना और उसके लिए दूध उत्पादन लागत नीचे लाने का काम करना होगा। साथ ही गोबर का उपयोग और इससे अतिरिक्त आय कैसे हो, इस पर सोचना होगा। इसके अलावा अच्छी नस्ल के पशुओं पर काम करना, प्रोसेसिंग कॉस्ट को नीचे लाना और इसका सजगता के साथ रिव्यू करना तथा पशुओं के पोषण आहार की लागत को भी नीचे लाना होगा। इन चार चीज़ों के लिए हमें दूध उत्पादन की लागत को नीचे लाना होगा और निर्यात के लक्ष्यों को ऊंचा कर दुनियाभर में भारत का दूध और इसके उत्पाद भेजने की तैयारी करनी होगी। उन्होने कहा कि जब दूध उत्पादन बढ़ेगा तो दुनिया में इसे बेचने के प्रयास करने के लिए इन चार क्षेत्रों में हमें लागत नीचे लाने का प्रयास करना होगा।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि किसानों को डेयरी के साथ ही मधुमक्खी पालन और प्राकृतिक खाद के उत्पादन से जोड़ने के विकल्पों पर भी विचार करना होगा। अगर एक पूरा संपुट बनाकर किसान की आय को मज़बूत कर सकें, तो हमें इसका फ़ायदा ज़रूर मिलेगा। मधुमक्खी पालन की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं और हम भारत से विश्वभर में बहुत अच्छा शहद भेज सकते हैं। इसके लिए गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और बिहार में बहुत अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क बना हुआ है और अगर इसे मधुमक्खी पालन के साथ जोड़ देते हो तो आप ही की व्यवस्था से कलेक्ट होकर एक्सपोर्ट हो सकता है। गोबर कलेक्शन के लिए भी कोई नई व्यवस्था करने की ज़रूरत नहीं है। श्री शाह ने कहा कि डेयरी के क्षेत्र में भारत ने जो चमत्कार किया है उसके लिए इससे जुड़े लोगों को मैं बहुत बधाई देता हूं। महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान आई है और उनका सशक्तिकरण डेयरी से ज़्यादा शायद किसी ने नहीं किया।
श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वेस्ट टू वेल्थ का कॉंसेप्ट सिर्फ़ स्वच्छता के साथ ही जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को भी इससे जोड़ना होगा और स्वच्छता इसी में समाहित है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि प्राकृतिक खेती की दिशा में भारत को आगे बढ़ाया जाए और विश्वभर में ऑर्गेनिक फ़ूड की डिमांड को अगर भारत पूरा कर दे तो हमारे अर्थतंत्र का कायाकल्प हो जाएगा। इसमें डेयरी सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, क्योंकि प्राकृतिक खेती के लिए मूल चीज़ गोबर है। अगर हर गांव में 2 या पांच गोबर गैस प्लांट लग गए तो देखते देखते 5-10 साल में हर घर में गोबर गैस प्लांट लग जाएगा, इससे प्राकृतिक खेती के लिए बहुत बड़ा रॉ मैटेरियल भी मिलेगा।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि नस्ल सुधार और देसी नस्लों के रखरखाव के लिए और अधिक काम किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि देसी नस्ल के गोबर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की सबसे ज़्यादा क्षमता है। ई-मार्केट के व्यवसाय में इस क्षेत्र में 2015 में 267 करोड़ रूपए का लेन-देन था और अब 2021-22 में ये बढ़कर 4827 करोड़ रूपए हो गया है। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान मुझे दूध की सप्लाई चेन के बिखरने की बहुत चिंता थी। 130 करोड़ के देश में कोऑपरेटिव सेक्टर के माध्यम से लॉकडाउन में भी किसी का बच्चा दूध के बिना ना रह जाए, इस फ़ेडरेशन ने इसकी व्यवस्था की।
श्री अमित शाह ने कहा कि डेयरी क्षेत्र में कई संभावनाएं हैं और 1.94 लाख गांवों का जो नेटवर्क बना हुआ है, इसमें लगभग 17 करोड़ से ज़्यादा किसान अपना दूध हर रोज़ कोऑपरेटिव को बेचते हैं। वर्ष 2020-21 में लगभग 65,000 करोड़ रूपए का भुगतान इन संघों के माध्यम से किसानों को हुआ है। कोऑपरेटिव क्षेत्र में बहुत सारे लोगों ने काफ़ी कुछ किया है। इस क्षेत्र में अमूल, इफ़्को और महिलाओं द्वारा स्थापित लिज्जत पापड़ बहुत बड़ी सक्सेस स्टोरी हैं।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकारिता मंत्रालय ने बहुत सारे इनीशिएटिव लिए हैं। इस सेक्टर के लिए बजट में 900 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है, सरकार ने सहकारी समितियों की टैक्स की समस्याओं को भी ऐड्रेस किया है, सहकारी चीनी मिलों की समस्याओं को रेट्रोस्पेक्टिव इफ़ेक्ट से दूर किया है। 350 करोड़ रूपए की लागत से सभी की सभी 65000 Primary Agriculture Cooperative Society (PACS) को हम कम्प्यूटराइज़्ड करेंगे। पैक्स का सॉफ़्टवेयर ही ज़िला बैंक, राज्य बैंक और नाबार्ड का होगा और इससे पूरी व्यवस्था ऑनलाइन और पार्दर्शी हो जाएगी। 1.94 लाख ग्रामीण दुग्ध उत्पादक मंडियों को कम्प्यूटराइज़्ड करने और सहकारी नीति के लिए भी हम मसौदा तैयार कर रहे हैं। राष्ट्रीय सहकारी डेटा बैंक बनाने की शुरूआत भी हो चुकी है और मुझे उम्मीद है कि मार्च, 2023 तक ये डेटाबेस तैयार कर हम देश के सामने रखेंगे।