
नई दिल्ली। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 मौजूदा जजों ने चीफ जस्टिस को सामूहिक रूप से पत्र लिखते हुए सुप्रीम कोर्ट के 4 अगस्त के आदेश को लागू न करने की अपील की है। यह वही अभूतपूर्व आदेश है जिसमें एक न्यायाधीश से आपराधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार वापस ले लिया गया था।
पत्र में जजों ने कहा है कि इस मुद्दे पर तत्काल फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई जाए, ताकि यह तय किया जा सके कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का अनुपालन अनिवार्य है या नहीं। जजों का तर्क है कि यह केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि हाईकोर्ट की स्वायत्तता और संवैधानिक मूल्यों से जुड़ा हुआ मामला है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और पृष्ठभूमि
4 अगस्त को न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज से आपराधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार हटा दिया था। कारण— एक दीवानी विवाद में उन्होंने गलती से आपराधिक प्रकृति के समन को बरकरार रखा था। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक मामले में जमानत देने के तरीके पर उसी जज की कड़ी आलोचना की थी।
न्यायमूर्ति पारदीवाला की टिप्पणी
6 अगस्त को जारी आदेश में न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा—
“पहले विषय-वस्तु पर गौर करना जरूरी है, फिर मुद्दे पर विचार और अंत में वादी की दलीलों के आधार पर सही कानूनी सिद्धांत लागू करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए कहा कि यह स्थापित न्यायशास्त्र के प्रति उपेक्षा दर्शाता है.