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Uttarakhand: देश भर के संत समाज ने मुख्यमंत्री धामी को दिया ‘देवभूमि के धर्म-संरक्षक’ का आशीर्वाद

उत्तराखंड रजत जयंती वर्ष में आध्यात्मिक संगम — संतों ने सरकार के सांस्कृतिक संरक्षण और विकास दृष्टिकोण की सराहना की

देहरादून, 5 नवंबर। उत्तराखंड की रजत जयंती वर्ष के अवसर पर बुधवार को मुख्यमंत्री आवास एक अद्वितीय आध्यात्मिक संगम का केंद्र बन गया। देशभर के प्रतिष्ठित संतों, महामंडलेश्वरों और धर्माचार्यों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर राज्य के सांस्कृतिक संरक्षण, धार्मिक विरासत और आध्यात्मिक प्रगति के लिए उनके प्रयासों की सराहना की।

इस अवसर पर संत समाज ने मुख्यमंत्री को आशीर्वाद प्रदान करते हुए उन्हें “देवभूमि का धर्म-संरक्षक” की उपाधि दी और कहा कि उनके नेतृत्व में उत्तराखंड धर्म, संस्कृति और विकास की नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर है।


संतों का एकस्वर — धामी के नेतृत्व में सुरक्षित हुई देवभूमि की सांस्कृतिक आत्मा

कार्यक्रम में शामिल देशभर के प्रमुख संतों ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में सांस्कृतिक पुनर्जागरण, सामाजिक समरसता और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
संतों ने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य की नीतियों में आध्यात्मिक चेतना और सांस्कृतिक दृष्टि का संतुलन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वर महाराज, आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी, जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष स्वामी रविंद्रपुरी, बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण, प्रसिद्ध आध्यात्मिक वक्ता जया किशोरी और चिंतक डॉ. कुमार विश्वास सहित अनेक संत-महात्मा इस अवसर पर उपस्थित रहे।

सभी ने एक स्वर में कहा कि मुख्यमंत्री धामी ने देवभूमि उत्तराखंड को उसकी सनातन आत्मा से जोड़ते हुए विकास को आध्यात्मिक दिशा दी है।

“मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड ने धर्म, संस्कृति और प्रशासन — तीनों के संतुलन की एक मिसाल कायम की है,”
संतों ने कहा।


कुम्भ 2027 पर केंद्रित रहा संवाद — संत समाज और सरकार मिलकर देंगे विश्व को दिव्य संदेश

संतों ने मुख्यमंत्री धामी को आशीर्वाद देते हुए हरिद्वार कुम्भ 2027 को भव्य, दिव्य और विश्व-स्तरीय आयोजन के रूप में स्थापित करने का संकल्प दोहराया।
उन्होंने कहा कि यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सनातन परंपरा और वैश्विक आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक होगा।

संत समाज ने कहा कि कुम्भ की तैयारियों को लेकर राज्य सरकार का विज़न सराहनीय है।
सरकार द्वारा यातायात, अधोसंरचना, घाटों के सौंदर्यीकरण, स्वच्छता और तीर्थ विकास पर जो कार्य योजनाएँ बनाई जा रही हैं, वे आने वाले समय में हरिद्वार को विश्व आध्यात्मिक धरोहर केंद्र के रूप में स्थापित करेंगी।

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा,

“कुम्भ केवल स्नान का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह अवसर है दुनिया को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सन्देश देने का।”

वहीं संत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि सरकार और संत समाज के संयुक्त प्रयासों से हरिद्वार का कुम्भ इतिहास में “स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने वाला अध्याय” बनेगा।
संतों ने आश्वस्त किया कि वे आयोजन के हर चरण में सरकार के साथ खड़े रहेंगे — चाहे वह आध्यात्मिक मार्गदर्शन हो या जन-आस्था का प्रबंधन


‘धर्म-संरक्षक’ की उपाधि और आशीर्वाद

आध्यात्मिक संगम के दौरान संत समाज ने मुख्यमंत्री धामी को ‘देवभूमि का धर्म-संरक्षक’ बताते हुए विशेष आशीर्वाद दिया।
संतों ने कहा कि धामी सरकार ने मंदिरों, मठों और आश्रमों की देखरेख, धार्मिक स्थलों के संरक्षण और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में दूरगामी नीतियाँ लागू की हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड केवल हिमालय की भूमि नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक धड़कन है, और मुख्यमंत्री धामी ने इस पहचान को और मजबूत किया है।

“धामी जी का नेतृत्व न केवल प्रशासनिक रूप से सशक्त है, बल्कि अध्यात्म और संस्कृति के प्रति गहरी संवेदना से प्रेरित है,”
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा।


सरकार की नीतियाँ बनीं ‘संस्कृति और विकास’ का पुल

संतों ने इस अवसर पर राज्य सरकार की उन पहलों की भी सराहना की, जिनसे उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन, लोक संस्कृति और विरासत संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम पुनर्विकास परियोजना, तपोवन-गौमुख मार्ग उन्नयन, चारधाम यात्रा प्रबंधन प्रणाली, तथा धार्मिक स्थलों की स्वच्छता और सुरक्षा योजना को संत समाज ने “प्रेरणादायक पहल” बताया।

आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि उत्तराखंड आज योग, अध्यात्म और पर्यावरण संतुलन के आदर्श के रूप में उभर रहा है,

“मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में राज्य ने भौतिक विकास को आध्यात्मिक दृष्टि से जोड़ा है — यही आधुनिक भारत का मॉडल है।”


संत समाज का सामूहिक संकल्प

आशीर्वाद सत्र के दौरान संतों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि वे कुम्भ-2027 की तैयारियों में आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर योगदान देंगे।
उन्होंने कहा कि कुम्भ आयोजन में

“हर अखाड़ा, हर साधु-संत और हर धार्मिक संस्था एक परिवार की तरह मिलकर कार्य करेगी।”

संत समाज ने यह भी कहा कि इस आयोजन के माध्यम से उत्तराखंड विश्व को शांति, सहअस्तित्व और सद्भाव का संदेश देगा।


उत्तराखंड: उभरता वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र

कार्यक्रम के अंत में संत समाज ने इस बात पर एकमत राय व्यक्त की कि उत्तराखंड आज वैश्विक स्तर पर आध्यात्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन रहा है।
गंगा की निर्मलता से लेकर हिमालय की तपोभूमि तक, राज्य की पहचान एक “शांति और साधना के प्रदेश” के रूप में सशक्त हो रही है।

संतों ने कहा कि यह परिवर्तन केवल नीति का परिणाम नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी नेतृत्व और अध्यात्म के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
उन्होंने मुख्यमंत्री धामी को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि

“उत्तराखंड की रजत जयंती आध्यात्मिक रूप से स्वर्णिम बन रही है — और इसका श्रेय एक ऐसी सरकार को जाता है जिसने विकास और धर्म दोनों को समान मान दिया है।”


अंतिम भाव: संस्कृति और शासन का संगम

कार्यक्रम के समापन पर मुख्यमंत्री धामी ने सभी संतों का आभार व्यक्त किया और कहा कि

“आप सभी का आशीर्वाद हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। देवभूमि उत्तराखंड को हम सब मिलकर अध्यात्म, संस्कृति और विकास की दिशा में नए शिखर तक पहुंचाएंगे।”

मुख्यमंत्री आवास से प्रसारित यह आध्यात्मिक ऊर्जा केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा और दृष्टि का प्रतीक बन गई — एक ऐसा संदेश जिसने स्पष्ट किया कि ‘देवभूमि’ की पहचान उसकी संस्कृति, संत परंपरा और समरस समाज से ही जीवित है।

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