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उत्तराखंड वन विभाग में फिर बड़ा विवाद: वरिष्ठतम IFS अधिकारी को दरकिनार कर जूनियर को हॉफ नियुक्त, मामला हाईकोर्ट पहुँचा

देहरादून, 10 दिसंबर। उत्तराखंड के वन विभाग में शीर्ष पद पर एक बार फिर बड़ा प्रशासनिक विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (Head of Forest Force – HOFF) के पद पर वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए एक जूनियर अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद विभाग में तीखी नौकरशाही खींचतान शुरू हो गई है। यह पहली बार है जब हॉफ जैसे संवेदनशील और सर्वोच्च पद पर नियुक्ति वरिष्ठता सूची के विपरीत की गई है।

इस निर्णय के खिलाफ विभाग के सबसे वरिष्ठ IFS अधिकारी बीपी गुप्ता (1992 बैच) ने सीधे नैनीताल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।


1993 बैच के अधिकारी रंजन कुमार मिश्र बने नए HOFF

हाल ही में हुई DPC (Departmental Promotion Committee) बैठक के बाद राज्य सरकार ने 1993 बैच के भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी रंजन कुमार मिश्र को नया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) नियुक्त किया है।

जबकि विभाग में उनसे एक बैच वरिष्ठ 1992 बैच के IFS अधिकारी बीपी गुप्ता पहले से मौजूद हैं और वर्तमान में प्रमुख वन संरक्षक (प्रशासन) के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। रंजन मिश्र 1 दिसंबर को औपचारिक रूप से पदभार ग्रहण करेंगे।

इस नियुक्ति ने पूरे विभाग में हलचल मचा दी है, क्योंकि सामान्यत: हॉफ का पद विभाग के वरिष्ठतम IFS अधिकारी को दिया जाता है।


वरिष्ठ अधिकारी ने फैसला बताया वरिष्ठता सिद्धांत के खिलाफ, कोर्ट में चुनौती

बीपी गुप्ता ने राज्य सरकार के इस आदेश को वरिष्ठता नियमों का उल्लंघन बताते हुए नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उनकी याचिका में कहा गया है कि—

  • हॉफ का पद पारंपरिक रूप से वरिष्ठतम अधिकारी का अधिकार होता है।
  • सरकार बिना ठोस कारण बताए वरिष्ठता को बाईपास नहीं कर सकती।
  • नया आदेश उन्हें अपने से जूनियर अधिकारी को रिपोर्ट करने के लिए मजबूर करता है, जो सेवा नियमों के खिलाफ है।

सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में हुई सिविल सर्विस बोर्ड (CSB) की बैठक में बीपी गुप्ता को प्रशासनिक जिम्मेदारी से हटाकर बायोडायवर्सिटी विंग में भेजने की भी चर्चा हुई थी। इस संबंध में आदेश भी जारी किए गए हैं, जिससे विवाद और गहरा गया है।


पहली बार वरिष्ठता से हटकर नियमित नियुक्ति, वन विभाग में नई मिसाल

उत्तराखंड के वन विभाग में यह विवाद नई मिसाल पेश करता है।
हालांकि पूर्व में भी हॉफ पद को लेकर विवाद हुए हैं, जैसे—

🔹 राजीव भरतरी मामला

2021 में हॉफ राजीव भरतरी को पद से हटाकर उनके जूनियर विनोद कुमार को नियुक्त किया गया था। भरतरी हाईकोर्ट पहुंचे और अदालत ने उन्हें राहत देते हुए दोबारा हॉफ नियुक्त करने का आदेश दिया था।

लेकिन वर्तमान मामला इससे बिल्कुल अलग है।
यहां—

  • वरिष्ठतम अधिकारी मौजूद हैं,
  • वे सेवा में सक्रिय हैं,
  • और इसके बावजूद जूनियर अधिकारी को नियमित रूप से हॉफ बना दिया गया है

यह स्थिति राज्य के प्रशासनिक इतिहास में पहली बार उत्पन्न हुई है।


कानूनी पहलू: हाईकोर्ट सरकार से मांगेगा जवाब

बीपी गुप्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट संभवतः—

  • डीपीसी की सिफारिशों का पूरा रिकॉर्ड
  • वरिष्ठता नियमों को दरकिनार करने के कारण
  • सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया

की जानकारी मांगेगा।

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, अदालत यह भी पूछ सकती है कि सरकार ने IFS Cadre Rules के तहत “योग्यता, ईमानदारी, अनुभव और वरिष्ठता” के मानकों का पालन किया या नहीं।

कुछ मामलों में हाईकोर्ट ऐसे विवादों को CAT (Central Administrative Tribunal) में ले जाने की भी सलाह देता है, लेकिन हॉफ जैसी संवैधानिक जिम्मेदारी वाले पद की नियुक्ति पर हाईकोर्ट सीधी सुनवाई भी कर सकता है।


वन विभाग में लगातार विवाद, ट्रांसफर और पोस्टिंग पर पहले भी उठ चुके सवाल

उत्तराखंड वन विभाग पिछले कुछ वर्षों से चर्चा में बना हुआ है।

  • पंकज कुमार द्वारा उठाए गए ट्रांसफर विवाद में हाईकोर्ट ने शासन के आदेश पर रोक लगाई थी।
  • पदस्थापनाओं में मनमर्जी और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप कई बार सामने आए।
  • विभागीय समीकरण अक्सर कोर्ट के फैसलों पर निर्भर होते आए हैं।

अब हॉफ का मामला सामने आने से विभाग फिर से विवादों के केंद्र में है।


राज्य के प्रशासनिक ढांचे पर बड़ा प्रभाव?

हॉफ का पद न केवल वन विभाग बल्कि राज्य के पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी प्रबंधन से जुड़ा सबसे बड़ा पद है।
इस पद पर—

  • नीति-निर्माण
  • वन संरक्षण
  • बायोडायवर्सिटी प्रबंधन
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष
  • वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन

जैसे महत्वपूर्ण विषय सीधे निर्भर करते हैं।

वरिष्ठ अधिकारी को हटाकर जूनियर को नियुक्त करने से विभाग के भीतर—

  • प्रशासनिक असंतोष
  • नेतृत्व संकट
  • फील्ड फोर्स में भ्रम
  • निर्णय प्रक्रिया पर प्रभाव

जैसी स्थितियाँ पैदा होने का अंदेशा है।


अगली सुनवाई और सरकार की संभावित दलीलें

सूत्रों के अनुसार, सरकार हाईकोर्ट में यह दलील दे सकती है कि—

  • हॉफ केवल वरिष्ठता से तय नहीं होता
  • योग्यता, उपलब्धियां और प्रशासनिक रिकॉर्ड भी महत्वपूर्ण हैं
  • रंजन मिश्र इस पद के लिए अधिक उपयुक्त माने गए

वहीं बीपी गुप्ता का पक्ष यह रहेगा कि—

  • वरिष्ठता सर्वोच्च मानदंड है
  • सरकार ने “रिकॉर्ड आधारित” और विशेष कारणयुक्त आदेश जारी नहीं किया
  • प्रोमोशन और शीर्ष नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई

निष्कर्ष

वन विभाग में हॉफ की नियुक्ति को लेकर खड़ा हुआ यह विवाद सिर्फ दो अधिकारियों का टकराव नहीं है, बल्कि राज्य प्रशासनिक व्यवस्था, वरिष्ठता सिद्धांत और शासन की पारदर्शिता पर भी बड़े सवाल खड़ा कर रहा है।

अब सभी की निगाहें नैनीताल हाईकोर्ट की आगामी कार्यवाही पर टिकी हैं। अदालत का फैसला न केवल इस मामले की दिशा तय करेगा, बल्कि भविष्य में शीर्ष प्रशासनिक नियुक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल भी बनेगा।

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