अभिभावकों की मर्जी के खिलाफ शादी करने वालों को नहीं मिलेगी पुलिस सुरक्षा – इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए एक फैसले में कहा है कि यदि कोई युवक-युवती अपने अभिभावकों की सहमति के बिना विवाह करते हैं, तो उन्हें पुलिस से सुरक्षा की मांग करने का स्वतः अधिकार नहीं है। अदालत का कहना है कि ऐसे मामलों में यदि कोई वास्तविक खतरा न हो, तो सुरक्षा देने का कोई औचित्य नहीं बनता।
यह फैसला एक नवविवाहित दंपति की याचिका पर आया, जिन्होंने परिवार की नाराज़गी के चलते पुलिस सुरक्षा की मांग की थी।
🔸 कोर्ट की अहम टिप्पणी:
न्यायालय ने कहा कि यदि कोई कपल अपने अभिभावकों की मर्जी के खिलाफ विवाह करता है, तो उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने और एक-दूसरे के साथ खड़े रहने की सीख लेनी चाहिए। हर मामले में सुरक्षा की मांग करना अदालतों का काम नहीं है, खासकर तब जब जान-माल को कोई प्रत्यक्ष खतरा सामने न हो।
🔸 सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला
कोर्ट ने इस मामले में लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार केस का ज़िक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालतें हर उस युवा जोड़े को सुरक्षा नहीं दे सकतीं जो समाज या परिवार से अलग जाकर शादी करते हैं।
🔸 जान को कोई ठोस खतरा नहीं
याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि:
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दंपति को जान का कोई गंभीर खतरा नहीं है।
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कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि उनके रिश्तेदार उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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उन्होंने पुलिस को किसी भी प्रकार की आपराधिक धमकी या हमले के संबंध में कोई स्पष्ट शिकायत नहीं दी है।
🔸 कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:
“सिर्फ परिवार की नाराज़गी के आधार पर सुरक्षा नहीं दी जा सकती। जब तक कोई ठोस खतरे का प्रमाण सामने न आए, तब तक पुलिस सुरक्षा देने का सवाल नहीं उठता।”