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देश की जेलों में प्रेग्नेंट हो रहीं महिला कैदियों के आंकड़ो पर, सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

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पश्चिम बंगाल: जेलों से कुछ दिनों पहले हैरान करने वाला मामला सामने आया था. ये था राज्य के जेलों में बंद कैदी महिलाओं का गर्भवती होना. बंगाल के कई जेलों में कुल मिलाकर करीब 196 बच्चों ने जन्म लिया है. दरअसल जस्टिस अमानुल्लाह की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसका मकसत भारतीय जेलों में बढ़ती कैदियों की भीड़ के संकट से निपटना है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गत माह निर्देश जारी कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया था. इसमें अन्य बातों के अलावा 2016 के मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार जेलों में मौजूदा बुनियादी ढांचे का मूल्यांकन करने और अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता का निर्धारण करने के लिए जिला-स्तरीय समितियों की स्थापना का आदेश दिया गया था.

इस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है और स्वतः संग्यान लिया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सभी राज्यों से इस मामले पर तुरंत कार्रवाई का आदेश दिया है. गुरुवार 8 फरवरी को पश्चिम बंगाल की जेलों में महिला कैदियों के गर्भवती होने का मुद्दा हाईकोर्ट में उठाया गया था.सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, जिन्हें जेल में भीड़भाड़ वाली जनहित याचिका के संबंध में एमाइकस क्यूरे नियुक्त किया गया था. एमाइकस क्यूरे ने इससे निपटने के लिए कुछ सुझाव दिए है. महिलाओं की जेल में पुरुष कर्मचारियों की एंट्री पर रोक लगाने को कहा है. सभी जिला न्यायाधीशों को उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र के तहत सुधार गृहों का दौरा करने को कहा है. ताकि पता लगाया जा सके कि सुधार गृहों में रहने के दौरान कितनी महिला कैदी गर्भवती हुई हैं.

कोर्ट ने ये भी कहा कि सुधार गृह भेजने से पहले हर महिला कैदियों का प्रेग्नेंसी टेस्ट कराना चाहिए. सभी जिलों के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को इसके लिए जरूरी निर्देश देने को भी कहा है. स्थिति की गंभीरता को स्पष्ट करने के लिए एमाइकस क्यूरे ने हाल ही में एक सुधार गृह के दौरे का हवाला दिया था. जहां एक गर्भवती महिला कैदी के साथ-साथ पंद्रह अन्य बच्चे भी अपनी जेल में बंद माताओं के साथ रह रहे थे. तब मामले की गंभीरता को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने भी चिंता व्यक्त की और मामले को तत्काल ध्यान देने योग्य माना. नतीजतन पीठ ने याचिका को आगे के विचार-विमर्श के लिए आपराधिक मामलों के लिए जिम्मेदार डिवीजन बेंच को भेजने का निर्देश दिया.

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