
नई दिल्ली, 5 नवंबर। भारत में अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplant) के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक नीति बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि अब अंग दाता (Donor) और अंग प्राप्तकर्ता (Recipient) दोनों के इलाज, जांच और देखभाल से जुड़े सभी खर्चों को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में शामिल किया जाएगा।
अब तक केवल रोगी के ऑपरेशन और उपचार को ही बीमा कंपनियां कवर करती थीं, जबकि दाता की जांच, सर्जरी और रिकवरी से जुड़े खर्च अक्सर बीमा दायरे से बाहर रहते थे। यह बदलाव देश में अंगदान को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
नया बीमा मॉडल तैयार करने की प्रक्रिया शुरू
सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने हाल ही में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के साथ उच्चस्तरीय बैठक की है। बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि बीमा कंपनियां एक ऐसा समावेशी मॉडल तैयार करें जिसमें मरीज के साथ-साथ दाता की पूरी चिकित्सीय प्रक्रिया को भी बीमा कवर में लाया जाए।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि,
“सरकार चाहती है कि कोई भी व्यक्ति सिर्फ आर्थिक कारणों से अंगदान या प्रत्यारोपण से पीछे न हटे। इस नई नीति से अंगदान की संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा और मरीजों को भी राहत मिलेगी।”
वर्तमान स्थिति: केवल मरीज को मिलता था आंशिक कवरेज
अब तक भारत में अधिकांश बीमा योजनाएँ — चाहे सरकारी (जैसे आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) हों या निजी — केवल रोगी के ऑपरेशन और अस्पताल में भर्ती होने तक सीमित कवरेज देती थीं।
दाता के परीक्षण, सर्जरी और रिकवरी अवधि के दौरान आने वाले खर्चों का वहन व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता था। कई मामलों में यह खर्च 1.5 से 3 लाख रुपये तक पहुंच जाता है, जिससे अंगदान की प्रक्रिया आर्थिक रूप से कठिन हो जाती है।
एक निजी अस्पताल के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अनिल अग्रवाल ने बताया,
“किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर को भी कई जांचें, ऑपरेशन और रिकवरी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ये खर्च सामान्य बीमा में शामिल नहीं होते। नया प्रावधान इस असमानता को खत्म करेगा।”
देश में अंग प्रत्यारोपण की बढ़ती जरूरत
भारत में अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2024 में देशभर में लगभग 18,900 अंग प्रत्यारोपण किए गए, जिनमें सबसे अधिक किडनी, लिवर और कॉर्निया ट्रांसप्लांट शामिल हैं।
वहीं, सिर्फ किडनी ट्रांसप्लांट के लिए प्रतीक्षा सूची में 1.75 लाख से अधिक मरीज हैं।
लिवर ट्रांसप्लांट के लिए भी 50,000 से अधिक मरीज रजिस्टर हैं, जबकि उपलब्ध डोनरों की संख्या अभी भी बहुत कम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर डोनर की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, तो देश में अंगदान की दर में तेजी से सुधार हो सकता है।
आयुष्मान भारत योजना में भी शामिल करने पर विचार
केंद्र सरकार की योजना है कि इस नए बीमा मॉडल को आयुष्मान भारत योजना और अन्य राज्य स्तरीय स्वास्थ्य योजनाओं से जोड़ा जाए। इससे गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को भी प्रत्यारोपण की महंगी प्रक्रिया में वित्तीय सहारा मिल सकेगा।
वर्तमान में किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट का कुल खर्च 15 से 25 लाख रुपये तक पहुंच सकता है, जबकि डोनर से जुड़ा मेडिकल खर्च 2-3 लाख रुपये के बीच होता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा,
“हमारा उद्देश्य है कि किसी मरीज को अंगदान के लिए अपने परिवार या रिश्तेदार पर आर्थिक दबाव न डालना पड़े। नया बीमा मॉडल डोनर और रिसीपिएंट दोनों की जिम्मेदारी समान रूप से लेगा।”
अंगदान को प्रोत्साहन देने की दिशा में बड़ा कदम
भारत में अंगदान दर (Organ Donation Rate) अभी भी बहुत कम है — केवल 0.86 प्रति दस लाख आबादी। यानी, हर दस लाख लोगों में से एक से भी कम व्यक्ति अंगदान करता है।
यह दर अमेरिका (36 प्रति दस लाख) और स्पेन (46 प्रति दस लाख) की तुलना में बेहद कम है।
इसका मुख्य कारण सामाजिक झिझक और आर्थिक बोझ दोनों हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार डोनर को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, तो परिवारजन अंगदान के लिए अधिक सहजता से आगे आएंगे।
राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण समन्वय समिति के सदस्य डॉ. सुधीर नायक ने कहा,
“यह कदम न केवल डोनर की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि समाज में अंगदान को लेकर विश्वास भी बढ़ाएगा। लोग यह समझेंगे कि सरकार उनके योगदान को सम्मान दे रही है।”
निजी बीमा कंपनियों की भूमिका
IRDAI के सूत्रों के अनुसार, अब निजी बीमा कंपनियों को भी अपने मौजूदा स्वास्थ्य बीमा उत्पादों में सुधार करने के निर्देश दिए जाएंगे।
प्रत्येक कंपनी को डोनर कवरेज और रीहैबिलिटेशन खर्चों के लिए एक निश्चित सीमा तय करनी होगी। इसके साथ ही, बीमा दावों के निपटान की प्रक्रिया को भी सरल बनाया जाएगा ताकि प्रत्यारोपण जैसे संवेदनशील मामलों में मरीजों को लंबी प्रशासनिक देरी का सामना न करना पड़े।
बीमा विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से ट्रांसप्लांट सर्जरी में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और रेगुलेशन में सुधार
सरकार इस बीमा कवरेज के साथ-साथ अंगदान एवं प्रत्यारोपण के मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी सुदृढ़ करने की दिशा में काम कर रही है।
देश के विभिन्न हिस्सों में नए ट्रांसप्लांट सेंटर्स खोले जा रहे हैं। फिलहाल भारत में लगभग 520 मान्यता प्राप्त प्रत्यारोपण केंद्र हैं, जिनमें से अधिकांश महानगरों में स्थित हैं।
ग्रामीण और पहाड़ी राज्यों में ऐसी सुविधाओं की कमी के कारण कई मरीज इलाज के लिए महीनों प्रतीक्षा करते हैं।
सरकार का उद्देश्य है कि 2026 तक हर राज्य में कम से कम एक रीजनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट सेंटर स्थापित किया जाए।
भविष्य की दिशा
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहल केवल वित्तीय सुरक्षा तक सीमित नहीं है — यह भारत में ‘अंगदान से जीवनदान’ के अभियान को संस्थागत स्वरूप देगी।
बीमा कवर के दायरे में डोनर और मरीज दोनों के आने से देश में अंगदान दर में सुधार के साथ-साथ स्वास्थ्य समानता (Health Equity) भी मजबूत होगी।
अंग प्रत्यारोपण जैसी जीवनरक्षक प्रक्रिया लंबे समय से भारत में केवल संपन्न परिवारों की पहुंच में रही है। सरकार और बीमा नियामक की यह नई पहल उस असमानता को दूर करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
यदि यह मॉडल समय पर लागू हो गया तो आने वाले वर्षों में लाखों मरीजों को जीवनदान देने के साथ-साथ देश में अंगदान को लेकर एक नई सामाजिक जागरूकता का युग शुरू होगा।



