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देशफीचर्ड

दिल्ली में घर होते हुए डाक्टर मनमोहन सिंह की सियासी एंट्री असम से

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का राजनीति में प्रवेश भले ही ‘एक्सीडेंटल’ रहा हो, लेकिन उसके बाद अपने काम, नीति और व्यवहार से उन्होंने राजनेता के तौर पर भी लोगों के दिल में अपनी जगह बनाई. असम से उनका एक खास नाता रहा. 1991 से 2019 तक लगातार 5 बार असम से राज्यसभा सदस्य के रूप में उन्होंने लोगों का दिल और सम्मान जीता. मनमोहन सिंह के रूप में ही असम ने अपने प्रदेश से प्रधानमंत्री भी देखा. भारत के आर्थिक सुधारों के जनक माने जाने वाले मनमोहन सिंह का गुरुवार को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. वो 92 वर्ष के थे.

असम के गुवाहाटी में उनका आवासीय पता सरूमोटोरिया इलाके में असम के पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया के घर में किराए का भूतल अपार्टमेंट था. 1991 में जब मनमोहन सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया और असम से राज्यसभा सदस्य बने, वहां कांग्रेस की सरकार थी. 30 जुलाई 2019 तक राज्यसभा में उनका पांचवा कार्यकाल खत्म होने तक मकान नं. 3989, नंदन नगर, सरूमोटोरिया, गुवाहाटी डॉक्टर साहब का पता बना रहा.

बाद में मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी ने अपने मतदाता सूची का नाम नई दिल्ली से असम के दिसपुर इलाके में मतदान केंद्र में स्थानांतरित करवा लिया. असम के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हितेश्वर सैकिया की पत्नी हेमोप्रवा सैकिया ने कहा, “जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, डॉ. मनमोहन सिंह को राजनीति में लाना चाहते थे और उन्हें वित्त मंत्री बनाना चाहते थे, उस समय उन्होंने मेरे पति, जो उस समय असम के सीएम थे, उनके साथ विचार साझा किया था और उन्होंने पेशकश की थी कि डॉ. सिंह को राज्यसभा भेजा जा सकता है.” हेमोप्रवा सैकिया खुद असम सरकार में मंत्री रह चुकी हैं.

सैकिया ने कहा, “कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्हें डॉ. मनमोहन सिंह का असम आना पसंद नहीं आया, वो फिर अदालत में भी इसको चुनौती देने चले गए कि उनके पास असम का कोई स्थायी पता नहीं है, तभी हमने उन्हें एक 2 बीएचके अपार्टमेंट किराए पर लेने की पेशकश की, जो 1991 से उनका निजी पता बन गया. ये 700 रुपये के किराये पर लिया गया था. असम से राज्यसभा सांसद के रूप में मनमोहन सिंह ने प्रदेश में कई प्रमुख परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने असम में एनआरसी अद्यतन की प्रक्रिया को मंजूरी दी, जो एक लंबे समय से चली आ रही मांग थी और 80 के दशक के असम समझौते का नतीजा थी.

 

 

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