
नई दिल्ली: देश को हिला देने वाले निठारी हत्याकांड से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी सुरेंद्र कोली की क्यूरेटिव याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह याचिका कोली की उम्रकैद की सजा को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी। मुख्य न्यायाधीश सीजेआई बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिन्होंने एक बार फिर इस चर्चित मामले को सुर्खियों में ला दिया है।
🔹 क्या कहा सीजेआई बी.आर. गवई ने?
सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने कहा —
“यह मामला ऐसा है जिसमें शायद एक मिनट में अनुमति दी जा सकती है।”
उन्होंने आगे कहा कि जब कोली बाकी 12 मामलों में बरी हो चुका है, तो सिर्फ एक मामले में दोषसिद्धि बरकरार रखना न्यायसंगत नहीं लगता।
“अगर 12 मामलों में कोई दोष नहीं पाया गया और सिर्फ एक में सजा दी गई, तो यह न्याय के साथ असमानता जैसा होगा। क्या यह न्याय का उपहास नहीं होगा?”
सीजेआई की इस टिप्पणी ने अदालत कक्ष में मौजूद लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट इस बार इस मामले को गंभीर न्यायिक दृष्टिकोण से देख रहा है।
🔹 जस्टिस विक्रम नाथ का सवाल – रसोई के चाकू से हड्डियां कैसे कट सकती हैं?
सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने केस के साक्ष्यों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा —
“दोषसिद्धि मुख्य रूप से आरोपी के बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी पर आधारित है। लेकिन क्या यह संभव है कि रसोई के सामान्य चाकू से किसी इंसान की हड्डियाँ काटी जा सकें?”
यह टिप्पणी सीधे तौर पर उस वैज्ञानिक जांच और सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, जिनके आधार पर कोली को एक मामले में दोषी ठहराया गया था।
🔹 12 मामलों में बरी, 1 में उम्रकैद
सुरेंद्र कोली को निठारी हत्याकांड के 13 मामलों में आरोपी बनाया गया था।
इनमें से 12 मामलों में अदालतों ने सबूतों के अभाव में कोली को बरी कर दिया, जबकि एक मामले में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
उसने पहले अपनी पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
अब उसने क्यूरेटिव पिटीशन दायर की है — जो न्यायिक प्रणाली में किसी दोषसिद्ध व्यक्ति की आखिरी कानूनी उम्मीद होती है।
🔹 क्यूरेटिव पिटीशन क्या होती है?
क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में सबसे आखिरी न्यायिक उपाय है। जब पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाती है, तब कोई व्यक्ति अदालत से यह अपील कर सकता है कि न्याय की प्रक्रिया में किसी तरह की गंभीर त्रुटि या अन्याय हुआ है। इस याचिका को केवल बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में स्वीकार किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में अब कोली की यह आखिरी कानूनी कोशिश मानी जा रही है।
निठारी कांड क्या था?
निठारी हत्याकांड देश के सबसे भयावह अपराधों में से एक था। इस कांड की शुरुआत 7 मई 2006 को हुई, जब मोनिंदर सिंह पंढेर के नोएडा स्थित निठारी वाले घर में एक युवती के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई। बाद में 29 दिसंबर 2006 को पुलिस ने पंढेर की कोठी के पीछे नाले से 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल बरामद किए थे। यह खुलासा इतना सनसनीखेज था कि पूरे देश में दहशत और गुस्सा फैल गया था।
पुलिस जांच के बाद मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया गया। सीबीआई जांच में खुलासा हुआ कि 2005 से 2007 के बीच बलात्कार, हत्या और नरभक्षण जैसी भयावह घटनाएं हुई थीं। यह मामला धीरे-धीरे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छा गया था।
CBI जांच और अदालतों के फैसले
निठारी कांड के सभी मामलों को बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई ने अलग-अलग केस दर्ज कर चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने शुरुआती फैसलों में कोली और पंढेर दोनों को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी।
हालांकि, बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच में त्रुटियों का हवाला देते हुए दोनों को बरी कर दिया।
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और सरकार की ओर से दाखिल अपीलों को खारिज कर दिया।
इस तरह कोली और पंढेर 12 मामलों में निर्दोष माने गए।
लेकिन एक मामला — जिसमें 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कोली की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था — अभी भी लंबित है, और उसी पर यह क्यूरेटिव याचिका दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उठाए बड़े सवाल
तीन जजों की बेंच ने सुनवाई के दौरान कई गंभीर सवाल उठाए:
- अगर 12 मामलों में कोई दोष साबित नहीं हुआ, तो सिर्फ एक में सजा बरकरार रखना क्या उचित है?
- क्या सबूत इतने ठोस थे कि उस पर उम्रकैद जैसी कठोर सजा दी जाए?
- क्या न्याय के सिद्धांतों के साथ समानता का उल्लंघन नहीं हो रहा?
इन सवालों से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को केवल तकनीकी पहलू से नहीं, बल्कि न्याय के मौलिक सिद्धांतों के आधार पर भी परख रहा है।
अगले कदम की प्रतीक्षा
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर हैं।
अगर अदालत कोली की क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करती है, तो उसकी उम्रकैद की सजा पर पुनर्विचार हो सकता है। अन्यथा, यह सजा बरकरार रहेगी और निठारी कांड में कोली की अंतिम कानूनी कोशिश भी समाप्त हो जाएगी।
निठारी कांड भारत की न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा सवाल छोड़ गया था। सालों बाद भी इस मामले की परछाइयाँ अब तक न्यायालय के गलियारों में मंडरा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई न केवल एक आरोपी की सजा की समीक्षा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत का न्यायालय न्याय की गारंटी के लिए हर संभावित रास्ता खुला रखता है।