
कश्मीर और भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ सामने आया है। तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की पेशकश करते हुए कहा है कि उनका देश “अगर अनुरोध किया जाए” तो मध्यस्थता की भूमिका निभाने को तैयार है। यह बयान ऐसे समय आया है जब हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से तनाव बढ़ गया है।
पहलगाम हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई: ऑपरेशन सिंदूर
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आत्मघाती आतंकी हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि की गई थी।
इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने जवाबी हमले में भारत के कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, और चौंकाने वाली बात यह रही कि इन हमलों में तुर्किए निर्मित ड्रोन का इस्तेमाल हुआ। इसके बाद भारत में तुर्किए के खिलाफ विरोध की लहर देखी गई।
एर्दोगन की ‘शांति’ पेशकश: पाकिस्तान से कश्मीर पर बातचीत
तुर्किए राष्ट्रपति एर्दोगन ने अपने हालिया बयान में कहा:
“हमने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ कश्मीर मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की है और तनाव घटाने के लिए संभावित सहायता की तलाश की है। हमारा मानना है कि संतुलित दृष्टिकोण से दोनों पक्षों को समाधान के करीब लाया जा सकता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर उनसे औपचारिक अनुरोध किया जाए, तो तुर्किए शांति वार्ता में सहयोग देने को तैयार है। साथ ही उन्होंने मानवाधिकार आधारित समाधान की बात कही और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी की भी वकालत की।
भारत का रुख साफ: ‘कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है’
भारत सरकार की ओर से अब तक बार-बार दोहराया गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवादित मुद्दे, खासकर कश्मीर, केवल द्विपक्षीय चर्चा से सुलझाए जाएंगे। भारत यह भी स्पष्ट कर चुका है कि किसी तीसरे देश या पक्ष की मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर भी तुर्किए द्वारा कश्मीर मसले को उठाने का विरोध किया है और इसे भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप माना है।
तुर्किए की भूमिका पर सवाल
विश्लेषकों का मानना है कि तुर्किए की यह पहल कूटनीतिक रूप से विरोधाभासी है क्योंकि एक ओर वह पाकिस्तान को सैन्य और रणनीतिक समर्थन दे रहा है, और दूसरी ओर वह खुद को ‘शांति निर्माता’ या ‘चौधरी’ के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।
इसके पीछे तुर्किए की वैश्विक भू-राजनीतिक भूमिका को पुनर्परिभाषित करने की मंशा देखी जा रही है – जैसा उसने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान वार्ता में दिखाई थी।
निष्कर्ष: भारत की कूटनीति का अगला कदम क्या होगा?
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि कश्मीर और भारत-पाक संबंधों के बहाने तुर्किए एक सक्रिय वैश्विक भूमिका निभाना चाहता है, लेकिन भारत का रुख इस दिशा में सख्त और स्पष्ट है।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या तुर्किए की यह पहल महज कूटनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रहती है, या यह दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक नई बहस की शुरुआत करती है।