
नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा सिंधु जल संधि को लेकर लिए गए ऐतिहासिक निर्णय का देशभर के किसान संगठनों ने ज़ोरदार स्वागत किया है। केंद्रीय कृषि, किसान कल्याण एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज नई दिल्ली स्थित पूसा परिसर के शिंदे सभागार में किसान संगठनों के साथ एक अहम संवाद किया।
इस अवसर पर चौहान ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्षों पुराने ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त कर दिया है। सिंधु नदी का पानी अब देश और किसानों के हित में उपयोग होगा। यह निर्णय किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव लाएगा।”
देशभर से आए किसान नेताओं ने सरकार के इस फैसले का एक स्वर में समर्थन किया और कहा कि अब समय आ गया है कि सिंधु जल संधि को पूर्णतः समाप्त किया जाए। किसानों का कहना है कि 1960 में हुए समझौते के बाद भी पाकिस्तान ने कभी संधि का सम्मान नहीं किया, जबकि भारत ने हर बार इसका पालन किया।
किसान संगठनों ने मांग की कि सिंधु नदी के पानी का समान वितरण सुनिश्चित किया जाए ताकि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को भी वर्षों से रोके गए जल संसाधनों का लाभ मिल सके।
चौहान ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “भारत किसी को छेड़ता नहीं है, लेकिन अगर कोई छेड़ता है तो उसे छोड़ा भी नहीं जाता। हमारी लड़ाई पाकिस्तान से नहीं, बल्कि आतंकवाद से है और इसका करारा जवाब दिया गया है।”
इस अवसर पर पंजाब के किसान सरदार गोमा सिंह, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सेना के लिए अपना घर खाली कर दिया था, को केंद्रीय मंत्री ने विशेष रूप से सम्मानित किया।
किसानों ने सरकार को आश्वस्त किया कि वे इस निर्णय को ज़मीन पर लागू होते देखने के लिए हर संभव सहयोग देंगे। उन्होंने कहा कि “खेत को पानी और फसल को दाम” ही उनकी समृद्धि के आधार हैं, और सरकार इस दिशा में सही दिशा में कार्य कर रही है।
अशोक बालियान, धर्मेंद्र मलिक, सत्यनारायण नेहरा, श्रीकृपा सिंह नाथूवाला, सतविन्द्र सिंह कलसी, मानकराम परिहार, सतीश छिकारा, बाबा श्याम सिंह, बाबा मूलचंद सेहरावत, प्रो. वी.पी. सिंह, राजेश सिंह चौहान, सुशीला बिश्नोई, रामपाल सिंह जाट सहित कई प्रमुख किसान नेता इस संवाद में शामिल हुए।
सरकार और किसानों के बीच यह संवाद नई जल नीति की दिशा में एक मजबूत कदम है। सरकार के इस फैसले से न केवल किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है, बल्कि यह संदेश भी गया है कि भारत अब अपने संसाधनों का उपयोग अपने हित में करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।