
नई दिल्ली: रियल एस्टेट सेक्टर में घर खरीदारों और बिल्डरों के बीच विवाद अब आम हो चुके हैं। लंबे इंतजार, कब्जे में देरी और अनुबंध की शर्तों के उल्लंघन के मामलों में उपभोक्ता आयोग से लेकर अदालत तक लगातार सुनवाई होती रहती है। ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने हजारों घर खरीदारों को बड़ी राहत दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई बिल्डर खरीदार से भुगतान में देरी होने पर 18 प्रतिशत ब्याज वसूल सकता है, तो उसे भी उतना ही ब्याज देना होगा अगर वह समय पर मकान या प्लॉट का कब्जा देने में विफल रहता है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि ऐसा कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है जिसके तहत बिल्डर द्वारा वसूला गया ब्याज खरीदार को वापस नहीं दिया जा सकता।
12 साल तक इंतजार करता रहा खरीदार
यह मामला वर्ष 2006 से जुड़ा है। अपीलकर्ता ने एक प्रतिष्ठित बिल्डर से प्लॉट बुक किया था और इसके लिए उसने 28 लाख रुपये से ज्यादा की राशि भी अदा कर दी थी। खरीदार को भरोसा था कि कुछ ही वर्षों में उसे अपने सपनों का प्लॉट मिल जाएगा।
लेकिन हकीकत बिल्कुल उलट रही। मई 2018 तक भी बिल्डर प्लॉट का कब्जा देने में असफल रहा। यानी, खरीदार को 12 साल तक इंतजार करना पड़ा। इतने लंबे इंतजार के बाद खरीदार ने थककर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) का दरवाजा खटखटाया और जमा राशि के साथ ब्याज वापसी की मांग की।
एनसीडीआरसी का आदेश और खरीदार की नाराज़गी
मामले की सुनवाई करते हुए एनसीडीआरसी ने खरीदार के पक्ष में फैसला सुनाया और बिल्डर को जमा राशि लौटाने के साथ 9 प्रतिशत सालाना ब्याज देने का आदेश दिया।
लेकिन खरीदार ने इस फैसले को अपर्याप्त माना। उसका कहना था कि बिल्डर ने वर्षों तक उसके पैसों का इस्तेमाल किया, मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न झेलना पड़ा, ऐसे में 9 प्रतिशत ब्याज पर्याप्त नहीं है। मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह शामिल थे, ने एनसीडीआरसी के आदेश की समीक्षा की। बेंच ने कहा कि इतने लंबे इंतजार के बाद केवल 9 प्रतिशत ब्याज देना न्यायसंगत नहीं है।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“अगर बिल्डर भुगतान में देरी होने पर खरीदार से 18 प्रतिशत ब्याज वसूल सकता है, तो उसे भी वही ब्याज चुकाना होगा जब वह खुद समय पर कब्जा देने में नाकाम होता है। कानून के समक्ष समानता का यही तकाजा है।”
खरीदारों के हक में ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को विशेष परिस्थितियों में न्याय और समानता के आधार पर देखा। बेंच ने माना कि अगर इस तरह के मामलों में खरीदार को कम ब्याज दिया जाए तो यह न केवल अन्याय होगा बल्कि बिल्डरों को गलत सौदों को बढ़ावा देने का लाइसेंस भी मिल जाएगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नियम हर मामले पर लागू नहीं होगा। लेकिन जहां बिल्डर खरीदार से अनुचित शर्तों पर ब्याज वसूलते हैं और खुद डिफॉल्ट करते हैं, वहां उन्हें भी वैसा ही ब्याज चुकाना होगा।
दो महीने की मोहलत, 18% ब्याज के साथ राशि लौटानी होगी
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बिल्डर को खरीदार द्वारा जमा की गई पूरी राशि 18 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ लौटानी होगी। कोर्ट ने बिल्डर को इसके लिए दो महीने की मोहलत दी।
न्यायालय ने माना कि खरीदार को एक दशक से ज्यादा इंतजार करना पड़ा, जिससे उसे मानसिक परेशानी, आर्थिक नुकसान और असुरक्षा झेलनी पड़ी। ऐसे हालात में केवल 9 प्रतिशत ब्याज न्यायपूर्ण नहीं था।
रियल एस्टेट सेक्टर पर असर
इस फैसले के बाद बिल्डरों के सामने बड़ा संदेश गया है। अब वे अनुबंध की शर्तों का पालन करने के लिए और अधिक जिम्मेदार होंगे। अगर वे खरीदार को समय पर कब्जा नहीं देते, तो उन्हें भी भारी आर्थिक दंड झेलना पड़ेगा।
यह फैसला रियल एस्टेट सेक्टर में नैतिकता और पारदर्शिता को बढ़ावा देगा। साथ ही, उन हजारों घर खरीदारों के लिए मिसाल बनेगा, जो वर्षों से अपने मकान और प्लॉट के कब्जे का इंतजार कर रहे हैं।
खरीदारों के लिए राहत, बिल्डरों के लिए सबक
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल एक मामले का निपटारा है बल्कि पूरे देश के लिए कानूनी दृष्टांत (legal precedent) भी है। यह दिखाता है कि अदालतें अब केवल बिल्डरों के दावों पर निर्भर नहीं रहेंगी, बल्कि खरीदारों के साथ बराबरी का व्यवहार करेंगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला आने वाले समय में उपभोक्ता आयोग और अन्य अदालतों के लिए भी मार्गदर्शक बनेगा।
कुल मिलाकर, यह फैसला घर खरीदारों के लिए गौरव और जीत का पल है। यह उन्हें विश्वास दिलाता है कि लंबे इंतजार और उत्पीड़न के बाद भी न्याय संभव है। वहीं, बिल्डरों के लिए यह एक सख्त चेतावनी है कि अगर उन्होंने अनुबंध का पालन नहीं किया, तो उन्हें भी खरीदारों की तरह कठोर ब्याज चुकाना होगा।