
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित महिला से शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के आरोपी युवक को मिली अग्रिम जमानत को बरकरार रखते हुए महिला की याचिका खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता महिला स्वयं भी शादीशुदा होने के बावजूद विवाहेतर संबंध में थीं, जो कानूनी रूप से आपत्तिजनक हो सकता है।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पीड़िता एक परिपक्व महिला हैं, जिनके दो बच्चे हैं और वे अपने निर्णयों की गंभीरता समझने में सक्षम हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इस संबंध में दोनों पक्षों की सहमति थी और अब इसे पूरी तरह से ‘बलात्कार’ के दायरे में नहीं लाया जा सकता।
पीठ की तीखी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जब महिला के वकील ने यह दलील दी कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर बार-बार होटल बुलाकर यौन संबंध बनाए, तो कोर्ट ने सवाल उठाया—
“आप बार-बार होटल क्यों गईं? आप शादीशुदा थीं, आपने भी विवाहेतर संबंध बनाया। क्या यह भी अपराध की श्रेणी में नहीं आता?”
ये है मामला
जानकारी के मुताबिक, 2016 में सोशल मीडिया के माध्यम से दोनों की मुलाकात हुई थी और धीरे-धीरे उनका रिश्ता निजी होता गया। महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी के कहने पर उसने अपने पति से तलाक की प्रक्रिया शुरू की, जिसे 6 मार्च 2024 को फैमिली कोर्ट ने मंजूरी दी।
तलाक के तुरंत बाद जब महिला ने आरोपी से विवाह करने की बात की, तो उसने इंकार कर दिया। इसके बाद महिला ने बिहार पुलिस में मामला दर्ज कराते हुए आरोपी पर शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया।
पटना हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
पटना हाईकोर्ट ने जांच और रिकॉर्ड के आधार पर आरोपी को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी थी। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि तलाक के बाद किसी तरह की यौन गतिविधि का कोई सबूत नहीं है, जिससे बलात्कार का आरोप टिकता नहीं दिखता।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए जमानत रद्द करने का कोई उचित आधार नहीं बनता।
महिला को भी चेताया
कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि विवाहेतर यौन संबंध को लेकर महिला स्वयं भी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत आपराधिक दायरे में आ सकती हैं। हालांकि अब यह धारा 2018 में समाप्त कर दी गई है, लेकिन मामला नैतिकता और स्वैच्छिक सहभागिता पर आधारित है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय “शादी के झांसे में बलात्कार” से जुड़े मामलों की परिभाषा और कानूनी व्याख्या को और स्पष्ट करता है। कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि सहमतिपूर्ण और दीर्घकालिक संबंधों को स्वचालित रूप से बलात्कार की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता, विशेषकर जब महिला विवाहिता हो और संबंध उसकी जानकारी में बना हो।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि सहमतिपूर्ण संबंधों की जवाबदेही दोनों पक्षों पर होती है, और अदालत ऐसे मामलों में केवल भावनात्मक दलीलों के बजाय तथ्यों और कानूनी आधार को तरजीह देती है।