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रेलू हिंसा मामलों में सुप्रीम कोर्ट सख्त: राज्यों को संरक्षण अधिकारी नियुक्त करने और महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता देने का निर्देश

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सख्त निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अधिनियम के तहत महिलाओं को मिलने वाले संरक्षण और सहायता को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाना अनिवार्य है। इसके लिए जिला व तालुका स्तर पर संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति, मुफ्त कानूनी सहायता की सुविधा, आश्रय गृहों की उपलब्धता और अधिनियम के प्रचार-प्रसार जैसे अहम कदम उठाने होंगे।

यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की खंडपीठ ने ‘We The Women of India’ नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश इस प्रकार हैं:

📌 6 हफ्ते में संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति:
सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को धारा 9 के तहत संरक्षण अधिकारी नियुक्त करें। जिन क्षेत्रों में यह नियुक्ति अब तक नहीं हुई है, वहां इसे 6 सप्ताह के भीतर पूरा करना होगा।

📌 घरेलू हिंसा कानून का व्यापक प्रचार:
सरकारें धारा 11 के तहत अधिनियम के प्रावधानों को आमजन तक पहुंचाने के लिए मीडिया और सार्वजनिक मंचों के माध्यम से प्रचार अभियान चलाएं। साथ ही, सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों में आपसी समन्वय हो।

📌 मुफ्त कानूनी सहायता की अनिवार्यता:
कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक पीड़ित महिला को मुफ्त विधिक सहायता मिलनी चाहिए। नालसा और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण इस बात का व्यापक प्रचार करें कि कानूनन सभी पीड़ित महिलाओं को मुफ्त कानूनी परामर्श और सहायता का अधिकार है।

📌 10 हफ्ते में सभी जिलों में आश्रय गृह सुनिश्चित करें:
राज्यों को आदेश दिया गया है कि वे 10 सप्ताह के भीतर प्रत्येक जिला व तालुका स्तर पर ‘नारी निकेतन’, वन स्टॉप सेंटर या अन्य आश्रय गृहों की व्यवस्था करें, ताकि पीड़ित महिलाओं को तात्कालिक राहत मिल सके।

“केवल काग़ज़ी प्रावधान नहीं, ज़मीनी हकीकत में बदलाव जरूरी है। महिलाओं को कानूनी सुरक्षा तभी मिलेगी जब प्रशासनिक मशीनरी सजग और सक्रिय होगी।”

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