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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा: क्या हिंदू ट्रस्टों में भी गैर-हिंदुओं को शामिल करेंगे?

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वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार से कुछ अहम और तीखे सवाल पूछे। इस कानून की वैधता को कई संगठनों और नेताओं ने चुनौती दी है। अदालत आज (गुरुवार) इस पर दोबारा सुनवाई कर रही है।

🔸 वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की एंट्री पर विवाद

याचिकाकर्ताओं की आपत्ति है कि वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिमों को भी शामिल किया गया है, जबकि पहले यह प्रावधान नहीं था। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता में दखल है। उनका कहना था कि वक्फ बोर्ड का गठन मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के लिए होता है, ऐसे में इसमें गैर-मुस्लिमों को शामिल करना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।

🔸 अदालत का केंद्र से सीधा सवाल:

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र की दलील पर पलटवार करते हुए कहा:

“क्या सरकार इस तरह का कानून बनाएगी जिससे हिंदू धार्मिक संस्थाओं या ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं को भी शामिल किया जा सके?”

🔸 कपिल सिब्बल ने उठाए अहम मुद्दे:

  • सरकार कैसे तय करेगी कि कौन मुसलमान है और कौन नहीं?

  • यदि कोई व्यक्ति पिछले पांच साल से मुस्लिम धर्म नहीं मान रहा है, तो क्या वह वक्फ संपत्ति नहीं बना सकता?

  • 300 साल पुरानी वक्फ संपत्तियों से सेल डीड की मांग कैसे की जा सकती है, जब उस समय दस्तावेजीकरण की व्यवस्था ही नहीं थी?

🔸 कोर्ट की चिंता:

  • अदालत ने कहा कि “वक्फ बाय यूजर” प्रावधान को हटाने से ऐतिहासिक मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को रजिस्टर्ड करना मुश्किल हो जाएगा।

  • इससे लम्बे कानूनी विवाद जन्म ले सकते हैं, जो सामाजिक और धार्मिक तनाव को बढ़ा सकते हैं।

🔸 केंद्र सरकार की सफाई:

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी:

  • गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में नामित करने का उद्देश्य केवल प्रशासनिक सहकार्यता है।

  • यह बोर्ड की मुस्लिम संरचना को नुकसान नहीं पहुंचाता।

  • यदि आप केवल मुस्लिम सदस्यता की बात करते हैं, तो क्या गैर-मुस्लिम न्यायाधीश वक्फ मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते?

🔸 सुप्रीम कोर्ट का जवाब:

CJI ने स्पष्ट किया कि:

“जब हम न्याय की कुर्सी पर बैठते हैं, तब हमारा धर्म कोई मायने नहीं रखता। हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं। हमारे लिए सभी पक्ष समान हैं।”


❖ किसने दी चुनौती?

संगठन/नेता मुख्य आपत्ति
AIMIM (ओवैसी) संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन
AIMPLB मुस्लिम धार्मिक पहचान पर असर
जमीयत उलेमा-ए-हिंद कानून पर रोक की मांग
DMK मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
कांग्रेस (मोहम्मद जावेद) समुदाय के साथ भेदभाव

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