
कोयंबटूर/नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में आयोजित दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन में किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि किसान “वन एकड़, वन सीज़न” मॉडल से शुरुआत करें। प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि प्राकृतिक खेती न केवल भूमि की उर्वरता बढ़ाती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जैव विविधता को सुरक्षित रखने का भी मार्ग है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देशभर के किसानों को चाहिए कि वे एक सीज़न में अपनी भूमि के एक एकड़ हिस्से पर प्राकृतिक खेती का अनुभव लें। “जब किसान अपने खेत में सिर्फ एक कोने में भी प्राकृतिक खेती करेंगे, तो प्राप्त परिणाम उन्हें अगले साल अपने क्षेत्र को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे,” उन्होंने कहा।
“नैचुरल फार्मिंग हमारी परंपरा और आज की जरूरत”— पीएम मोदी
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने रसायन-आधारित खेती के बढ़ते दुष्प्रभावों और मिट्टी के लगातार कमजोर होते स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती भारतीय परंपरा से उपजा स्वदेशी मॉडल है, जिसे हमारे पूर्वजों ने सदियों के अनुभव से विकसित किया।
उन्होंने कहा—
“मिट्टी की उर्वरता और पोषण पुनरुद्धार के लिए प्राकृतिक खेती एक अनिवार्य कदम है। यह हमें मौसम परिवर्तन की चुनौतियों, क्लाइमेट चेंज और अनियमित मौसम का सामना करने में मदद करती है।”
प्रधानमंत्री ने रसायन-युक्त खेती के जोखिमों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती से लोगों को नुकसानदायक केमिकल्स से भी बचाया जा सकता है।
देशभर में तेजी से बढ़ रहा नैचुरल फार्मिंग का दायरा
भारत सरकार ने पिछले वर्ष National Mission on Natural Farming की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक किसानों को रसायन-रहित खेती की ओर प्रेरित करना है।
अधिकारियों के अनुसार, इस मिशन से अब तक लाखों किसान जुड़ चुके हैं। तमिलनाडु में ही करीब 35,000 हेक्टेयर भूमि पर ऑर्गैनिक और प्राकृतिक खेती की जा रही है।
शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा—
“दक्षिण भारत के किसान पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और आच्छादन जैसी प्राकृतिक तकनीकों को निरंतर अपनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों को मजबूत करने का कार्य कर रहे हैं।”
किसानों के खर्च में बड़ी बचत और मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर
प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक तकनीकों के लाभ बताते हुए कहा कि यह खेती न केवल मिट्टी की सेहत में सुधार करती है, बल्कि इनपुट कॉस्ट को भी बहुत कम कर देती है।
इससे किसानों के लिए खेती अधिक लाभप्रद और टिकाऊ बन सकती है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से—
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है
- जैव विविधता सुरक्षित रहती है
- केमिकल्स पर निर्भरता घटती है
- फसलें अधिक पोषक और स्वास्थ्यवर्धक बनती हैं
भविष्य की खेती का मॉडल: “नेचर-फ्रेंडली एग्रीकल्चर”
पीएम मोदी ने किसानों से आह्वान किया कि वे प्राकृतिक खेती को अपने भविष्य की रणनीति में शामिल करें।
उन्होंने कहा—“प्राकृतिक खेती भारत का भविष्य है और यही मॉडल हमारी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित, पोषक और स्थायी खाद्य प्रणाली दे सकता है।”



