देशफीचर्ड

संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान संरचना का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला

युद्ध, आतंकवाद, जलवायु संकट और डिजिटल खतरे—नई चुनौतियों के बीच वैश्विक सुधारों की मांग तेज

नई दिल्ली, 19 नवंबर: विश्व राजनीति के तेजी से बदलते समीकरणों, बढ़ते संघर्षों, तेजी से विकसित हो रही तकनीक और जलवायु आपदाओं के दौर में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) प्रणाली में व्यापक और समयबद्ध सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि आज का विश्व जिस जटिल दौर से गुजर रहा है, उसके समाधान के लिए मौजूदा वैश्विक संरचनाएँ अपर्याप्त साबित हो रही हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान संरचना का पुनर्मूल्यांकन और सुधार अब टाले जाने योग्य मुद्दा नहीं रहा।

लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, बिरला बुधवार को मुख्य न्यायाधीशों के 26वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इस सम्मेलन में दुनियाभर से आए मुख्य न्यायाधीशों, वरिष्ठ विधि-विशेषज्ञों और न्यायिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।


वैश्विक परिदृश्य में तनाव बढ़ा—UN सुधारों पर फिर जोर

ओम बिरला ने अपने संबोधन में कहा कि संयुक्त राष्ट्र और उससे जुड़े निकायों का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया के हिसाब से किया गया था। उस समय की प्राथमिकताएँ और वैश्विक संतुलन आज की परिस्थितियों से बहुत भिन्न थे।

आज विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनमें प्रमुख हैं—

  • भू-राजनीतिक संघर्ष और युद्ध,
  • आतंकवाद का विस्तृत नेटवर्क,
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट,
  • डिजिटल दुनिया और साइबर सुरक्षा के नए खतरे,
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में असंतुलन,
  • आपूर्ति श्रृंखला और ऊर्जा सुरक्षा के संकट

बिरला ने कहा कि मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए विश्व को अधिक प्रतिनिधित्वकारी, पारदर्शी और त्वरित निर्णय लेने वाली संस्थाएँ चाहिए, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की संरचना अभी भी पुरानी भू-राजनीतिक व्यवस्था पर आधारित है।

उन्होंने कहा, “आज का समय संवाद, सहयोग और नवाचारपूर्ण समाधान की मांग करता है। वैश्विक संस्थाएँ तभी प्रभावी हो सकती हैं जब वे 21वीं सदी की हकीकतों और सदस्य देशों की मौजूदा जरूरतों के अनुरूप हों।”


भारत की भूमिका और ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज

लोकसभा अध्यक्ष ने इस संदर्भ में भारत की भूमिका पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत आज आतंकवाद विरोधी अभियानों, डिजिटलीकरण, जलवायु कार्रवाई और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में दुनिया को प्रभावी मॉडल उपलब्ध करा रहा है।

उन्होंने कहा कि “ग्लोबल साउथ” के देशों की आकांक्षाएँ, चिंताएँ और विकास संबंधी प्राथमिकताएँ अक्सर वैश्विक नीति निर्धारण में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं की जातीं। बिरला ने कहा कि समय आ गया है जब इन देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) एवं अन्य वैश्विक निकायों में सार्थक प्रतिनिधित्व मिले।

उन्होंने कहा,
“भारत विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति है। भारत के पास जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, तकनीकी नवाचार, आतंकवाद से लड़ने की क्षमता और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता जैसी वो सभी योग्यता है, जो उसे वैश्विक निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है।”


न्यायपालिका की भूमिका और तकनीकी परिवर्तन पर भी व्यापक चर्चा

अपने संबोधन में ओम बिरला ने न्यायपालिका के महत्व पर भी विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि एक आधुनिक, विकसित और संवेदनशील लोकतंत्र की नींव मजबूत न्यायिक प्रणाली पर टिकी होती है। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों में न्यायपालिका तकनीकी बदलावों के साथ स्वयं को मजबूत और सक्षम बना रही है, और भारत भी इस दिशा में लगातार प्रगति कर रहा है।

उन्होंने ई-कोर्ट्स, डिजिटल केस मैनेजमेंट, ऑनलाइन फाइलिंग और तकनीकी समाधान के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और तेज बनाने की भारत की पहल का उल्लेख किया।

बिरला ने कहा,
“न्यायपालिका की उपलब्धता जितनी व्यापक होगी, लोकतंत्र उतना ही सशक्त होगा।”


जलवायु संकट और डिजिटल खतरों पर अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का आह्वान

बिरला ने अपने वक्तव्य में दो और महत्वपूर्ण विषयों—जलवायु परिवर्तन और डिजिटल सुरक्षा—का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और मानवीय संकट भी है।

डिजिटल दुनिया में बढ़ती साइबर खतरों, फर्जी सूचनाओं और डेटा सुरक्षा संबंधी समस्याओं को लेकर उन्होंने कहा कि इनके समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर साझा ढांचा और सहयोग आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि यदि विश्व समुदाय इन नई चुनौतियों का सामूहिक समाधान नहीं खोजता, तो समस्या और गहराती जाएगी।


“विश्व को सहयोग, संवाद और समान भागीदारी वाली नई व्यवस्था की जरूरत”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बिरला ने कहा कि आज की दुनिया पारंपरिक शक्ति समीकरणों से बहुत आगे निकल चुकी है। आर्थिक और तकनीकी शक्तियों का उदय, छोटे देशों की बढ़ती वैश्विक भूमिका, गैर-राज्य अभिनेताओं का प्रभाव और नागरिकों की बढ़ती अपेक्षाएँ—इन सबने विश्व व्यवस्था को नया स्वरूप दिया है।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सहित वैश्विक संस्थाएँ तभी प्रभावी और विश्वसनीय बन सकेंगी जब वे—

  • समान प्रतिनिधित्व
  • तेज निर्णय क्षमता
  • पारदर्शी प्रक्रियाएँ
  • वास्तविक वैश्विक सहभागिता
    सुनिश्चित करें।

उन्होंने कहा, शांति, स्थिरता और विकास के लिए वैश्विक नेतृत्व को आज एक नई सोच और परिवर्तनशील संरचना की आवश्यकता है। दुनिया बदल रही है, और वैश्विक संस्थाओं को भी बदलना होगा।


सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय न्यायिक समुदाय की मौजूदगी

बिरला के संबोधन के दौरान विश्व के विभिन्न देशों से आए मुख्य न्यायाधीशों, प्रतिष्ठित न्यायविदों और वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों ने वैश्विक विधिक परिदृश्य पर अपने विचार रखे। सम्मेलन में न्यायिक सुधार, वैश्विक न्याय तक पहुंच, पर्यावरणीय न्याय, मानवाधिकार और तकनीकी नवाचार जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों ने भी माना कि बदलती दुनिया में न्यायिक और वैश्विक शासन संरचनाओं को अधिक समावेशी और आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।

ओम बिरला का यह संबोधन केवल भारतीय दृष्टिकोण नहीं, बल्कि उभरती वैश्विक आवश्यकता को भी अभिव्यक्त करता है। आज जब दुनिया अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है, तब संयुक्त राष्ट्र और उससे जुड़ी संस्थाओं का समयबद्ध और व्यापक पुनर्गठन ही वैश्विक शांति, न्याय और स्थिरता की दिशा में निर्णायक कदम साबित हो सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button