
लेह/नई दिल्ली। लद्दाख में बुधवार को भड़की हिंसा के बाद हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस झड़प में चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि 90 से अधिक लोग घायल हुए। हिंसा फैलने के बाद लेह ज़िले में कर्फ्यू लगा दिया गया है और सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती कर दी गई है। इस बीच, पुलिस ने कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टैनजिन त्सेपाग के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। वहीं, केंद्र सरकार ने खुलकर सोनम वांगचुक को हिंसा भड़काने के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
भाजपा कार्यालय और काउंसिल सचिवालय को आग के हवाले
बुधवार को प्रदर्शनकारियों ने उग्र होकर भाजपा के जिला कार्यालय और लद्दाख हिल काउंसिल सचिवालय में आगजनी कर दी। कई सरकारी वाहनों और संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा। भाजपा ने इस हिंसा के पीछे कांग्रेस का हाथ बताते हुए कहा कि हिंसक भीड़ में कांग्रेस पार्षद त्सेपाग शामिल थे। भाजपा नेताओं ने मीडिया के सामने त्सेपाग की कथित तस्वीरें दिखाईं और कहा कि यह कांग्रेस की “सोची-समझी साज़िश” थी।
उपराज्यपाल बोले- हिंसा के पीछे साज़िश
लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने इस घटना को गंभीर साज़िश बताते हुए कहा, “शांति भंग करने की कोशिश करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।” प्रशासन ने साफ किया है कि हिंसा फैलाने वालों की पहचान कर उन्हें जल्द गिरफ्तार किया जाएगा।
सोनम वांगचुक पर गृह मंत्रालय का निशाना
हिंसा के राजनीतिक मायने तब और गहराए जब गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर गंभीर आरोप लगाए। मंत्रालय ने कहा कि कई नेताओं द्वारा भूख हड़ताल खत्म करने की अपील के बावजूद वांगचुक ने अपना अनशन जारी रखा और अरब स्प्रिंग जैसी आंदोलन शैली अपनाते हुए भीड़ को भड़काया।
बयान के अनुसार, “सोनम वांगचुक के उत्तेजक भाषणों के बाद भीड़ अनशन स्थल से निकलकर भाजपा कार्यालय और सरकारी इमारतों पर हमला करने पहुंची। यह साफ है कि हिंसा को उकसाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है।”
मांगों को लेकर लंबे समय से simmering गुस्सा
लद्दाख के लोगों में लंबे समय से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा को लेकर असंतोष simmer कर रहा है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला था, लेकिन बिना विधानसभा के। इसके बाद से यहां के राजनीतिक और सामाजिक संगठन लगातार स्थानीय पहचान और संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर आंदोलनरत हैं।
स्थानीय संगठनों का आरोप है कि बिना संवैधानिक गारंटी के लद्दाख की जनसंख्या, संसाधन और संस्कृति बड़े कॉर्पोरेट हितों और बाहरी दबावों से प्रभावित होगी। इसी मांग को लेकर सोनम वांगचुक पिछले कई महीनों से भूख हड़ताल और आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं।
कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने
इस पूरे घटनाक्रम ने लद्दाख की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। भाजपा ने हिंसा को कांग्रेस की “सोची-समझी रणनीति” करार दिया है, जबकि कांग्रेस नेताओं का कहना है कि भाजपा लोगों की जायज़ मांगों को दबाने के लिए विपक्ष पर झूठे आरोप लगा रही है।
कांग्रेस का कहना है कि भाजपा केंद्र में अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए हिंसा का दोष विपक्ष पर डाल रही है। वहीं भाजपा ने कांग्रेस पार्षद पर एफआईआर दर्ज होने के बाद पार्टी से उनका इस्तीफा मांगने की योजना बना ली है।
हालात काबू में, लेकिन तनाव बरकरार
लेह ज़िले में कर्फ्यू लागू होने के बावजूद कई इलाकों में तनाव का माहौल बना हुआ है। बाजार और स्कूल बंद हैं। इंटरनेट सेवाओं पर भी पाबंदी लगाई गई है। सुरक्षा बलों ने प्रमुख स्थलों पर नाकेबंदी कर दी है।
कारगिल में भी बंद और धारा 144 लागू की गई है ताकि हिंसा दूसरे हिस्सों में न फैले। पुलिस का कहना है कि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, लेकिन एहतियात के तौर पर सुरक्षा बल तैनात रहेंगे।
लद्दाख आंदोलन का भविष्य
हिंसा के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या लद्दाख आंदोलन अब और उग्र रूप लेगा। सोनम वांगचुक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगर लद्दाख की मांगों को नजरअंदाज किया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का कहना है कि हिंसा और आगजनी के रास्ते पर चलने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना लद्दाख की राजनीति को राष्ट्रीय पटल पर ला सकती है। एक तरफ भाजपा विपक्ष पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष जनता की असली मांगों को केंद्र की उपेक्षा बता रहा है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा न केवल लद्दाख बल्कि दिल्ली की राजनीति में भी गूंज सकता है।
लद्दाख हिंसा ने न केवल क्षेत्र की शांति को हिला दिया है, बल्कि केंद्र और विपक्ष के बीच टकराव को भी तेज कर दिया है। कांग्रेस पार्षद पर दर्ज एफआईआर और सोनम वांगचुक पर गृह मंत्रालय के आरोपों ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या सरकार लद्दाखियों की संवैधानिक मांगों को संबोधित कर सकेगी या फिर यह आंदोलन और हिंसक रूप लेगा।