
नई दिल्ली/तियानजिन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह बैठक शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट से इतर चीन के छठे सबसे बड़े शहर तियानजिन में हुई। सात साल बाद दोनों नेताओं के बीच आमने-सामने की यह मुलाकात ऐतिहासिक मानी जा रही है। दुनिया की निगाहें इस मुलाकात पर टिकी थीं और विश्लेषकों का मानना है कि यह वार्ता भारत-चीन संबंधों के नए दौर की शुरुआत कर सकती है।
इस मुलाकात का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक नीतियां और टैरिफ की जंग ने दुनिया भर में चिंता पैदा की है। ऐसे समय में एशिया की दो महाशक्तियों का संवाद वैश्विक स्थिरता के लिए अहम माना जा रहा है।
PM मोदी के प्रमुख संदेश: विश्वास और सहयोग पर जोर
बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि भारत और चीन दोनों आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में सीमा पर स्थिति बेहतर हुई है और सैनिकों के पीछे हटने के बाद शांति एवं स्थिरता कायम हुई है।
प्रधानमंत्री ने बातचीत में कुछ प्रमुख बिंदु रखे—
- “हम द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
- “सैनिकों के पीछे हटने के बाद सीमा पर शांति एवं स्थिरता कायम है।”
- “सीमा प्रबंधन को लेकर हमारे विशेष प्रतिनिधियों के बीच सहमति बनी थी।”
- “भारत और चीन के बीच सीधी उड़ान सेवाएं फिर से शुरू हो रही हैं।”
- “मैं शंघाई सहयोग संगठन की चीन की सफल अध्यक्षता के लिए आपको बधाई देता हूं।”
55 मिनट तक चली मुलाकात
यह मुलाकात करीब 55 मिनट तक चली। पीएम मोदी ने कहा कि कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हो गई है, जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते और मजबूत होंगे।
उन्होंने जोर दिया कि भारत और चीन की आबादी मिलाकर लगभग 2.8 अरब है। ऐसे में दोनों देशों का सहयोग केवल द्विपक्षीय हितों तक सीमित नहीं है, बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
संबंधों में नई शुरुआत का संकेत
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर एशिया की शक्ति-संतुलन पर भी पड़ेगा। सीमा विवादों के समाधान की दिशा में यह कदम महत्वपूर्ण है।
भारत और चीन दोनों यह समझते हैं कि आर्थिक साझेदारी और व्यापारिक सहयोग से वे वैश्विक चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर सकते हैं। सीधी उड़ान सेवाओं की बहाली और धार्मिक-सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए आपसी रिश्ते मजबूत होंगे।
दुनिया की नजरें तियानजिन पर क्यों?
साल 2017 के डोकलाम गतिरोध और हाल के वर्षों में गलवान संघर्ष जैसी घटनाओं के बाद भारत-चीन रिश्तों में तनाव साफ दिखा था। लेकिन अब दोनों देशों ने धीरे-धीरे संवाद और सहयोग की राह पकड़ने के संकेत दिए हैं।
अमेरिका-चीन के बीच जारी आर्थिक और भू-राजनीतिक तनाव की पृष्ठभूमि में यह बैठक और भी अहम मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत-चीन आपसी सहयोग को बढ़ाते हैं तो यह एशिया की आर्थिक और रणनीतिक स्थिरता के लिए बड़ा कदम होगा।
तियानजिन में हुई पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह मुलाकात भारत-चीन संबंधों में नई ऊर्जा भरने वाली साबित हो सकती है। सीमा पर शांति, सीधी उड़ानों की बहाली, कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से शुरू होना और आपसी विश्वास पर जोर—ये सभी संकेत बताते हैं कि आने वाले समय में दोनों देशों के रिश्तों में गर्माहट लौट सकती है।