
देहरादून, 25 अगस्त 2025। देहरादून जिले में पहली बार एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक तत्परता और मानवीय संवेदनशीलता की मिसाल पेश की है। यहां एक असहाय विधवा मां की पुकार पर जिलाधिकारी (डीएम) सविन बंसल ने महज़ कुछ घंटों में कड़ा कदम उठाते हुए दो बिगड़ैल बेटों के खिलाफ गुंडा एक्ट 1970 के तहत कार्रवाई शुरू कर दी। यह फैसला न सिर्फ प्रशासन की सख्ती को दर्शाता है, बल्कि समाज में एक मजबूत संदेश भी देता है कि अब पीड़ित की आवाज़ अनसुनी नहीं रहेगी।
विधवा मां की दर्दभरी गुहार
भागीरथपुरम, बंजारावाला की निवासी विजयलक्ष्मी पंवार, जिनके पति का निधन हो चुका है, ने डीएम कार्यालय पहुंचकर अपनी करुण कहानी सुनाई। महिला ने बताया कि उनके दोनों बेटे नशे के आदी हैं और आए दिन उनसे पैसों की मांग करते हैं। पैसे न देने पर वे मारपीट करते हैं, डंडों और हाथ-पैर से पीटते हैं और यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी देते हैं।
महिला ने डरते-डरते यह भी कहा कि उन्हें आशंका है कि एक दिन उनके ही घर में उनके बेटे उनकी जान ले सकते हैं। कई बार मोहल्लेवालों और स्थानीय प्रतिनिधियों ने समझाने का प्रयास किया, लेकिन बेटे सुधरने के बजाय और बिगड़ते गए।
डीएम का त्वरित निर्णय: थाने और वकील को दरकिनार
22 अगस्त को जब विजयलक्ष्मी सीधे जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचीं, तो डीएम सविन बंसल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल संज्ञान लिया।
- महज़ दो घंटे के भीतर गोपनीय जांच कराई गई।
- पड़ोसियों और जनप्रतिनिधियों ने महिला की शिकायत की पुष्टि की।
- जांच रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि “दोनों बेटों को प्रार्थिनी से दूर रखना आवश्यक है”।
इसके बाद डीएम ने बिना किसी देरी के गुंडा एक्ट 1970 की धारा के अंतर्गत दोनों बेटों पर केस दर्ज करने का आदेश दिया।
26 अगस्त को होगी फास्ट-ट्रैक सुनवाई
डीएम ने दोनों बेटों को नोटिस जारी करते हुए 26 अगस्त को सुबह 10:30 बजे डीएम कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। यदि वे उपस्थित नहीं होते, तो प्रशासन फास्ट-ट्रैक कार्यवाही कर सीधे जिला बदर की कार्रवाई करेगा।
यह कदम इस मायने में भी खास है कि आमतौर पर ऐसे मामलों में थाने में रिपोर्ट, वकील और कचहरी की लंबी प्रक्रिया होती है, लेकिन यहां प्रशासन ने सीधे पीड़ित की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए प्रक्रिया को छोटा कर दिया।
कलेक्ट्रेट बना इंसाफ का मंदिर
इस घटना ने साबित कर दिया है कि देहरादून कलेक्ट्रेट अब केवल फाइलों का दफ्तर नहीं, बल्कि इंसाफ का मंदिर बन चुका है।
- भरण-पोषण से जुड़े विवाद हों,
- प्रताड़ना या शोषण से जुड़े मामले हों,
अब जिला प्रशासन ऐसे मामलों में फास्ट-ट्रैक सुनवाई कर सीधे फैसले देने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
पीड़ितों को मिली उम्मीद
जिलाधिकारी ने कहा है कि “जनसुनवाई में आने वाले प्रत्येक पीड़ित को न्याय दिलाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। समाज में असहाय, विधवा और उत्पीड़ित लोगों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं होगा। यदि कोई बेटा अपनी ही मां को प्रताड़ित करता है, तो यह सामाजिक अपराध भी है और कानूनी अपराध भी। ऐसे मामलों में प्रशासन पूरी सख्ती दिखाएगा।”
सामाजिक संदेश
यह घटना सिर्फ एक महिला की व्यथा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा संदेश है। माता-पिता की सेवा करना जहां नैतिक जिम्मेदारी है, वहीं उनकी उपेक्षा और प्रताड़ना को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। देहरादून प्रशासन की इस सख्त कार्रवाई से उन तमाम पीड़ित महिलाओं और बुजुर्गों को हिम्मत मिलेगी जो घरेलू हिंसा और प्रताड़ना के चलते चुप रहते हैं।
विजयलक्ष्मी पंवार की पुकार पर जिलाधिकारी की यह त्वरित कार्रवाई प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जाएगी। यह न सिर्फ कानून की शक्ति का उदाहरण है, बल्कि उस मानवीय संवेदनशीलता की झलक भी है, जिसकी अपेक्षा हर पीड़ित नागरिक अपने प्रशासन से करता है।