
देहरादून, 11 सितम्बर 2025 — ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा एवं रोजगार के नए अवसर सृजित करने की दिशा में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बड़ा कदम उठाया है। नाबार्ड ने उत्तराखण्ड सरकार को ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (RIDF) के अंतर्गत ₹9,281.56 लाख (करीब ₹93 करोड़) की तीन परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की है। इनमें शिक्षा विभाग और डेयरी विकास विभाग की अहम परियोजनाएँ शामिल हैं।
इस वित्तीय सहयोग से जहां पहाड़ी इलाकों में आधुनिक विद्यालय और इंटर कॉलेज का निर्माण होगा, वहीं तराई क्षेत्र में अत्याधुनिक डेयरी प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इन परियोजनाओं से उत्तराखण्ड में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए द्वार खुलेंगे।
शिक्षा क्षेत्र को मिला बड़ा सहयोग
नाबार्ड ने शिक्षा विभाग को ₹4,460.36 लाख की स्वीकृति दी है। इस राशि से दो प्रमुख परियोजनाएँ पूरी की जाएंगी:
- राजीव गांधी नवोदय विद्यालय, बागेश्वर
- राजकीय इंटर कॉलेज (GIC) सिल्पाटा, चमोली
इन परियोजनाओं के पूरा होने से दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों के विद्यार्थियों को आधुनिक शिक्षा सुविधाएँ मिलेंगी। वर्तमान में इन जिलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। नए भवनों और अत्याधुनिक कक्षाओं के निर्माण से विद्यार्थियों को सुरक्षित, सुविधाजनक और प्रेरणादायी वातावरण मिलेगा।
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस निवेश से न केवल विद्यार्थियों को लाभ होगा, बल्कि शिक्षकों के लिए भी बेहतर कार्य-परिसर उपलब्ध होगा। इससे राज्य के शिक्षा मानकों में सुधार आएगा और ग्रामीण इलाकों से पलायन की समस्या में कमी आ सकती है।
डेयरी विकास परियोजना से मिलेगा रोजगार
डेयरी क्षेत्र में नाबार्ड ने ₹4,821.20 लाख की लागत से एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना को मंजूरी दी है। इसके तहत सितारगंज (ऊधमसिंह नगर) में एक बड़ा डेयरी प्रसंस्करण परिसर स्थापित होगा। इसमें शामिल होंगे:
- 10 एमटी क्षमता का मिल्क पाउडर संयंत्र
- 5,000 लीटर क्षमता का आइसक्रीम प्लांट
- 2 एमटी क्षमता का बेकरी यूनिट
यह परियोजना उत्तराखण्ड के डेयरी उत्पादकों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। अभी तक प्रदेश को मिल्क पाउडर तैयार करने के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था। इससे न केवल अतिरिक्त परिवहन लागत बढ़ती थी, बल्कि उत्पादकों को समय पर भुगतान और बाजार तक पहुँच में भी कठिनाई होती थी।
नई इकाई के संचालन से प्रदेश में ही मिल्क पाउडर, आइसक्रीम और बेकरी उत्पादों का उत्पादन संभव होगा। इससे स्थानीय डेयरी किसानों और दुग्ध उत्पादकों को सीधा लाभ मिलेगा और उन्हें बड़े बाजारों तक पहुँच आसान होगी।
BOT मॉडल पर होगा संचालन
इस डेयरी परियोजना का संचालन ‘निर्माण-संचालन-हस्तांतरण (BOT) मॉडल’ के तहत किया जाएगा। इसका मतलब है कि डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड आधारभूत ढांचा तैयार करेगा, जबकि संयंत्र का संचालन निजी भागीदारों द्वारा किया जाएगा। निश्चित समयावधि के बाद यह परियोजना सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि BOT मॉडल से न केवल पारदर्शिता बनी रहेगी बल्कि परियोजना के तेजी से क्रियान्वयन और कुशल संचालन में भी मदद मिलेगी।
उत्तराखण्ड को मिलेगा दोहरा लाभ
इन परियोजनाओं का असर केवल शिक्षा और डेयरी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर होगा।
- शिक्षा क्षेत्र → बेहतर विद्यालयों से नए अवसर, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा।
- डेयरी क्षेत्र → स्थानीय किसानों की आय बढ़ेगी और रोजगार सृजन होगा।
- अर्थव्यवस्था → राज्य में निवेश और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
- पलायन पर असर → पहाड़ों से हो रहे पलायन की गति कम हो सकती है क्योंकि स्थानीय स्तर पर शिक्षा और रोजगार दोनों उपलब्ध होंगे।
नाबार्ड की भूमिका और प्रतिबद्धता
नाबार्ड लंबे समय से ग्रामीण और कृषि आधारित अवसंरचना विकास के लिए देशभर में काम कर रहा है। आरआईडीएएफ (RIDF) स्कीम के तहत अब तक कई राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और सिंचाई जैसी परियोजनाओं में वित्तीय सहायता दी जा चुकी है।
उत्तराखण्ड में इस बार स्वीकृत परियोजनाएँ यह साबित करती हैं कि नाबार्ड केवल वित्तीय संस्थान ही नहीं बल्कि ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों के लिए विकास का साझीदार है।
विशेषज्ञों की राय
- शिक्षा विशेषज्ञ: “बागेश्वर और चमोली में नए विद्यालय बनने से हजारों विद्यार्थियों को फायदा होगा। यह राज्य की शिक्षा गुणवत्ता में ऐतिहासिक सुधार ला सकता है।”
- कृषि एवं डेयरी विश्लेषक: “सितारगंज परियोजना से डेयरी किसानों की आय दोगुनी करने का सपना और साकार हो सकता है। उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्य में स्थानीय स्तर पर उत्पाद प्रसंस्करण एक गेम-चेंजर साबित होगा।
नाबार्ड द्वारा स्वीकृत ₹93 करोड़ की परियोजनाएँ उत्तराखण्ड के ग्रामीण विकास की तस्वीर बदल सकती हैं। जहाँ पहाड़ों में शिक्षा के नए द्वार खुलेंगे, वहीं तराई क्षेत्र में डेयरी उद्योग को मजबूती मिलेगी।
यह पहल राज्य के विकास मॉडल को नई दिशा देगी और प्रधानमंत्री के “आत्मनिर्भर भारत” और उत्तराखण्ड सरकार के “समृद्ध ग्रामीण विकास” के विजन को मजबूती प्रदान करेगी।