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मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के बरी करने के फैसले पर लगाई रोक

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नई दिल्ली/मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा निर्णय लेते हुए बंबई उच्च न्यायालय द्वारा 12 आरोपियों को बरी करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।

शीर्ष अदालत ने यह निर्णय महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर सुनवाई के दौरान दिया। सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा पर्याप्त साक्ष्य और न्यायिक प्रक्रिया के आधार पर थी, जिसे एक झटके में खारिज कर देना उचित नहीं है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को सुनवाई करते हुए कहा,

“हम हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक लगाते हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है।”

साथ ही कोर्ट ने 12ों आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

बंबई हाईकोर्ट ने क्यों किया था सभी को बरी?

इससे पहले 2023 में बंबई हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषसिद्ध 12 आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि “ट्रायल कोर्ट का निर्णय संदिग्ध और अपूर्ण साक्ष्यों पर आधारित था।” हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि पुलिस जांच में कई प्रक्रियागत खामियां थीं और दोषियों के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश नहीं किए जा सके।

क्या था 2006 का ट्रेन ब्लास्ट मामला?

11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार 7 धमाके हुए थे। ये धमाके व्यस्त समय में पश्चिम रेलवे की उपनगरीय ट्रेनों में हुए थे। इसमें 189 लोगों की मौत हुई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसे देश के सबसे घातक आतंकी हमलों में से एक माना जाता है।

इस मामले में महाराष्ट्र एटीएस ने इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी से जुड़े 13 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें से 12 को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था। एक आरोपी को पहले ही बरी कर दिया गया था।

अगली सुनवाई कब?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह इस मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए जल्दी सुनवाई तय करेगा, ताकि न्याय की प्रक्रिया बाधित न हो। फिलहाल सभी 12 आरोपियों की रिहाई पर रोक लगी रहेगी।


📌 पृष्ठभूमि: यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से, बल्कि देश की आतंकी नीति और जांच एजेंसियों की साख से भी जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की यह रोक अब इस केस को एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ला सकती है।

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