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दिल्ली में एलजी हाउस के पास दीवार गिरने से मां-बेटे की मौत, लेकिन ‘राजभवन’ अब भी चुप — सियासी तापमान चढ़ा

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नई दिल्ली | रिपोर्टिंग डेस्क: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में मंगलवार सुबह तेज बारिश के दौरान निर्माणाधीन इमारत की दीवार गिरने से दो लोगों की मौत हो गई, जिनमें मां और 17 वर्षीय बेटा शामिल हैं। यह हादसा उपराज्यपाल (एलजी) आवास से कुछ ही मीटर की दूरी पर हुआ। मृतकों की पहचान मीरा (40) और गणपत (17) के रूप में हुई है, जबकि मीरा का बड़ा बेटा दशरथ (19) और नन्हे (35) गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

सूचना के अनुसार, सुबह 9:53 बजे दिल्ली फायर सर्विस को कॉल मिली, जिसके बाद राहत-बचाव का कार्य शुरू किया गया। लेकिन इस हादसे के बाद जिस बात पर सबसे अधिक सवाल उठ रहे हैं, वो है दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की चुप्पी


⚠️ मौतें राजभवन के साये में, मगर संवेदना नदारद

हैरत की बात यह है कि हादसा उपराज्यपाल आवास के निकट हुआ, लेकिन एलजी न तो मौके पर पहुंचे, न कोई बयान जारी किया, न ही सोशल मीडिया पर कोई संवेदना व्यक्त की गई।


🗣️ AAP का तीखा हमला: “अब दिल्ली की चिंता खत्म हो गई क्या?”

दिल्ली सरकार के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज ने एलजी पर तंज कसते हुए कहा:

“दिल्ली को याद है, कुछ महीने पहले तक एलजी साब दिल्ली के कौने-कौने में जाकर वीडियो बनाते, ट्वीट करते, चिट्ठियां लिखते थे। आज उनके राजभवन के सामने दीवार गिर गई, दो लोग मर गए, कई घायल हैं… मगर एलजी साब अब तक मिलने तक नहीं गए। ना ट्वीट, ना फोटो, ना चिट्ठी… अब क्या दिल्ली की चिंता खत्म हो गई?”


🏗️ प्रशासन की लापरवाही या नियति?

स्थानीय लोगों के अनुसार, यह इमारत निर्माणाधीन थी और दीवार की हालत काफी खराब थी। बावजूद इसके, न नगर निगम और न ही स्थानीय प्रशासन ने कोई समय पर कार्रवाई की। सवाल यह भी है कि उच्च सुरक्षा क्षेत्र में स्थित निर्माण स्थल की मॉनिटरिंग कौन कर रहा था?


ये सवाल अब उठने लगे हैं:

  1. क्या एलजी कार्यालय ने इस हादसे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी? नहीं।
  2. क्या राजभवन के सामने हादसे की जिम्मेदारी तय होगी?
  3. क्या संवेदनशील घटनाओं पर भी संवेदनाएं अब राजनीतिक सहूलियत पर निर्भर हैं?

💬 राजनीति बनाम संवेदनशीलता

एक तरफ जहां सत्ता और विपक्ष के बीच सियासी बयानबाज़ी तेज हो गई है, वहीं दिल्ली की जनता यह सोचने को मजबूर है कि —

“जब हादसा राजभवन के दरवाज़े पर हो और चुप्पी दीवार से ऊंची हो जाए, तो लोकतंत्र कहां खड़ा होता है?”

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