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मायावती का अखिलेश पर हमला: कांशीराम पर सपा के संगोष्ठी आयोजन को बताया ‘दलित विरोधी’

उत्तर प्रदेश में कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर राजनीति गरमाई, बसपा ने 9 अक्टूबर को लखनऊ में रैली की तैयारी की

नई दिल्ली:उत्तर प्रदेश में कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस (9 अक्टूबर) को लेकर सियासी तापमान बढ़ गया है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव पर हमला बोला है और उन्हें दलित विरोधी बताया है। इस दौरान सपा ने कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर संगोष्ठी आयोजित करने की घोषणा की थी, जिसे मायावती ने “घोर छलावा” और “वोट बैंक राजनीति” का प्रयास करार दिया।

बीएसपी अपने संस्थापक कांशीराम के सम्मान में 9 अक्टूबर को लखनऊ में विशाल रैली आयोजित करने जा रही है। यह कदम 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है।

मायावती ने सपा पर घेरा

मायावती ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट में लिखा कि समाजवादी पार्टी और अन्य विरोधी दलों का रवैया हमेशा से जातिवादी और द्वेषपूर्ण रहा है। उन्होंने कहा कि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों को सत्ता में लाने के लिए लगातार संघर्ष किया और बहुजन समुदाय का सम्मान बढ़ाया।

मायावती ने अपने पोस्ट में लिखा,
इसलिए आगामी नौ अक्टूबर को सपा द्वारा आयोजित संगोष्ठी घोर छलावा है। सपा ने ना केवल मान्यवर कांशीराम जी के पार्टी के साथ किए गए जीवनकालीन योगदान को नजरअंदाज किया, बल्कि यूपी में उनके नाम पर बनाए गए कई प्रतिष्ठानों और जिले के नाम को बदलने का कार्य किया।

कांशीराम के नाम पर बने जिले का नाम बदलने का आरोप

मायावती ने आरोप लगाया कि बीएसपी सरकार द्वारा 17 अप्रैल 2008 को कासगंज जिले को कांशीराम नगर के नाम से स्थापित किया गया था। इसके बावजूद सपा सरकार ने जातिवादी सोच के तहत इसका नाम बदल दिया। उन्होंने कहा कि यह केवल राजनीतिक द्वेष का प्रतीक है और इससे यह स्पष्ट होता है कि सपा का रवैया बहुजन आदर्शों के प्रति गंभीर नहीं है।

इसके अलावा, मायावती ने कहा कि कांशीराम के योगदान को यादगार बनाने के लिए यूपी में बनाए गए विश्वविद्यालय, कॉलेज, अस्पताल और अन्य संस्थानों के नाम भी बदल दिए गए। उन्होंने इसे “सपा की दलित विरोधी और संकीर्ण सोच” करार दिया।

कांशीराम के निधन पर राजकीय शोक की कमी

मायावती ने सपा और कांग्रेस दोनों पर आरोप लगाया कि कांशीराम के निधन के समय राजकीय या राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि पूरा देश और विशेषकर यूपी शोकाकुल था, लेकिन सत्ता में रहकर भी इन दलों ने कांशीराम को उचित सम्मान नहीं दिया।

मायावती ने अपने पोस्ट में स्पष्ट किया कि समय-समय पर सपा और कांग्रेस द्वारा कांशीराम को याद करना सिर्फ दिखावा और छलावा है। उनका कहना था कि ऐसी चालाकी केवल संकीर्ण राजनीति और वोट बैंक की स्वार्थपूर्ण रणनीति का हिस्सा है।

बसपा का शक्ति प्रदर्शन

बीएसपी अपने संस्थापक कांशीराम के आदर्शों और बहुजन समाज की शक्ति को दिखाने के लिए लखनऊ में 9 अक्टूबर को विशाल रैली आयोजित करेगी। रैली का उद्देश्य बहुजन समाज के संगठन और राजनीतिक एकता को मजबूत करना है।
पार्टी का मानना है कि 2027 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह कदम संपर्क और प्रचार का अहम जरिया होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर राजनीति हर बार गर्म रहती है, लेकिन इस बार स्थिति और भी संवेदनशील है। सपा की संगोष्ठी और बीएसपी की रैली दोनों ही दलों की जनसंपर्क रणनीति का हिस्सा हैं। मायावती के बयान ने यह साफ कर दिया कि बहुजन समाज की राजनीतिक ताकत को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है।

विश्लेषकों का कहना है कि सपा की यह कोशिश कि वह कांशीराम के आदर्शों के नाम पर अपने पीडीए वोट बैंक को मजबूत करे, मायावती के गहरे प्रतिरोध में फंस गई है। इससे उत्तर प्रदेश में बहुजन राजनीति और जातिगत समीकरणों पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस को लेकर चल रही राजनीति ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की आगामी चुनावी राजनीति में दलित वोटों की महत्ता अत्यधिक है। बीएसपी की रैली और सपा की संगोष्ठी दोनों ही दलों के लिए जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर हैं। मायावती के बयान और रैली आयोजन ने सपा को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि बहुजन समाज की राजनीतिक शक्ति को नजरअंदाज करना महंगा साबित हो सकता है।

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