
मुंबई, 31 जुलाई | विशेष संवाददाता: 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में आज 17 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत फैसला सुनाने जा रही है। इस मामले में शामिल सभी 7 आरोपी गुरुवार सुबह कोर्ट में पेश हो गए हैं। अदालत द्वारा अंतिम सुनवाई 19 अप्रैल को पूरी कर ली गई थी, जिसके बाद से फैसला सुरक्षित रखा गया था।
📌 इन आरोपियों पर है मामला दर्ज
- साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (वर्तमान में भोपाल से सांसद)
- लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित
- रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय
- अजय राहिरकर
- सुधाकर धर द्विवेदी
- सुधाकर चतुर्वेदी
- समीर कुलकर्णी
इन सभी पर सांप्रदायिक साजिश रचने, बम तैयार करने, आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता, और RDX का अवैध उपयोग जैसे गंभीर आरोप हैं।
क्या है मामला?
- दिनांक: 29 सितंबर 2008
- स्थान: मालेगांव (महाराष्ट्र)
- घटना: एक मोटरसाइकिल में बम लगाकर विस्फोट किया गया, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक घायल हुए थे।
- बम: विस्फोटक सामग्री के तौर पर RDX और TNT का प्रयोग किया गया।
जांच का घटनाक्रम और साजिश की परतें
- पहली चार्जशीट 2009 में दाखिल की गई, जिसमें कुल 11 आरोपी और 3 फरार आरोपी शामिल थे।
- जांच में सामने आया कि जनवरी 2008 में फरीदाबाद, भोपाल और नासिक में इस साजिश को लेकर गुप्त बैठकें हुई थीं।
- ATS के अनुसार, बम को कर्नल पुरोहित द्वारा कश्मीर से लाया गया और देवलाली छावनी में तैयार किया गया था।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य: सुधाकर धर द्विवेदी के लैपटॉप से वॉयस रिकॉर्डिंग, मेल और अन्य डिजिटल सबूत अदालत में पेश किए गए थे।
- बम प्लांट करने वालों में प्रीवण टक्कलकी, रामजी कालसांगरा और संदीप डांगे का नाम आया, जो अभी भी फरार बताए जाते हैं।
⚖️ कोर्ट की प्रक्रिया और आज की सुनवाई
- 19 अप्रैल 2025 को अभियोजन एवं बचाव पक्ष की अंतिम दलीलें पूरी हुईं।
- इसके बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया जाएगा।
- सभी आरोपी अदालत में उपस्थित हैं, कोर्ट परिसर की सुरक्षा बढ़ाई गई है।
राजनीतिक हलकों में हलचल
इस मामले में मुख्य आरोपी रही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर वर्तमान में बीजेपी सांसद हैं, ऐसे में अदालत के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी अहम मानी जा रही है।
यह केस हिंदू चरमपंथ और आतंकी गतिविधियों के बीच कथित संबंधों को लेकर देशभर में वर्षों से बहस का केंद्र रहा है।
क्या होगा आगे?
मामले में साक्ष्यों की जटिलता, राजनीतिक पृष्ठभूमि और लंबे कानूनी संघर्ष के कारण फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है।
यदि आरोपी दोषमुक्त होते हैं या दोषी ठहराए जाते हैं — दोनों ही परिस्थितियों में मीडिया, राजनीतिक दलों और सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया पर राष्ट्रीय नजर टिकी रहेगी.