धामी सरकार की बड़ी पहल: उत्तराखण्ड को बनाया जा रहा है ‘फार्मा हब’, गुणवत्ता पर जीरो टॉलरेंस नीति

देहरादून: उत्तराखण्ड को देश का अग्रणी फार्मा हब बनाने की दिशा में धामी सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के निर्देश पर देहरादून स्थित खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन मुख्यालय में एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक आयोजित की गई। बैठक का उद्देश्य था औषधि गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों की समीक्षा, अधोमानक औषधियों की स्थिति का विश्लेषण और राज्य की औद्योगिक प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ठोस रणनीतियों पर चर्चा।
बैठक की अध्यक्षता राज्य औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने की, जिसमें प्रदेश की 30 से अधिक दवा निर्माता इकाइयों, औषधि विनिर्माण एसोसिएशन और विभागीय अधिकारियों ने भाग लिया।
उद्योग की चिंता: बिना पुष्टि के ड्रग अलर्ट से बिगड़ती छवि
बैठक में उपस्थित निर्माताओं ने चिंता जताई कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा बिना जांच पूरी किए ड्रग अलर्ट सार्वजनिक कर दिए जाते हैं। इससे कंपनियों की ब्रांड छवि को नुकसान होता है और राज्य की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है।
एक उदाहरण में कूपर फार्मा के Buprenorphine Injection का उल्लेख हुआ, जिसे अधोमानक घोषित किया गया, लेकिन बाद में पता चला कि वह दवा बिहार में अवैध रूप से बनाई गई थी, उत्तराखण्ड से उसका कोई संबंध नहीं था।
कंपनियों ने यह भी कहा कि जब तक धारा 18(A) के तहत नमूने की वैधता की पुष्टि और धारा 25(3) के अनुसार रिपोर्ट को चुनौती देने का मौका न दिया जाए, तब तक जांच प्रक्रिया अधूरी मानी जानी चाहिए।
सरकार का स्पष्ट संदेश: गुणवत्ता से समझौता नहीं
राज्य औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने कहा, “सरकार उद्योग के साथ है, लेकिन औषधियों की गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं होगा।” उन्होंने सभी कंपनियों को GMP (Good Manufacturing Practices) का पालन करने, प्रत्येक उत्पादन चरण का रिकॉर्ड रखने और परीक्षण प्रक्रियाओं को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए।
फार्मा सेक्टर को मिलेगा संस्थागत समर्थन
दवा निर्माताओं ने मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड में उद्योग-समर्थक और पारदर्शी नीतियों की वजह से राज्य निवेशकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। अगर यही नीति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखण्ड देश का सबसे बड़ा फार्मा क्लस्टर बन सकता है।
अधोमानक दवाओं पर कड़ी कार्रवाई की तैयारी
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि गुणवत्ता से समझौता करने वाली इकाइयों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार की “जीरो टॉलरेंस नीति” के तहत एफआईआर और दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
स्वास्थ्य सचिव का रोडमैप: विश्वस्तरीय प्रयोगशालाएं, वैश्विक मान्यता
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि वर्तमान में राज्य में लगभग 285 फार्मा यूनिट्स कार्यरत हैं, जिनमें से 242 WHO से प्रमाणित हैं। उत्तराखण्ड देश की कुल दवा आपूर्ति का 20% उत्पादन करता है और 20 से अधिक देशों को निर्यात करता है।
उन्होंने बताया कि देहरादून में हाल ही में एक उच्च तकनीकी प्रयोगशाला का उद्घाटन हुआ है, जहां दवाओं के साथ-साथ मेडिकल डिवाइस और कॉस्मेटिक उत्पादों का भी परीक्षण होगा। यह लैब जल्द ही NABL मान्यता प्राप्त करेगी।
उत्तराखण्ड: उभरता हुआ वैश्विक फार्मा केंद्र
आज उत्तराखण्ड की फार्मा कंपनियां न केवल भारत के 15 राज्यों, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं भेज रही हैं। सरकार का फोकस केवल व्यवसाय बढ़ाने पर नहीं, बल्कि उत्पादों की वैश्विक मानकों के अनुरूप गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर भी है।
धामी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, पारदर्शिता और गुणवत्ता पर बल देने वाली नीतियों के चलते उत्तराखण्ड अब फार्मा उद्योग का भविष्य बनता नजर आ रहा है। राज्य सरकार और दवा उद्योग के बीच ऐसा तालमेल, राज्य को वाकई भारत का फार्मा पावरहाउस बना सकता है.