
काशीपुर/उधम सिंह नगर, 1 अक्टूबर 2025। उत्तराखंड के काशीपुर में हाल ही में हुए “आई लव मोहम्मद” विवाद और उसके बाद भड़के उपद्रव ने जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। प्रशासन ने अब सीमावर्ती वार्डों और घनी मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में गहन जांच शुरू कर दी है। इसी कड़ी में अलीखां वार्ड में बड़े पैमाने पर राशन कार्डों का सत्यापन किया गया, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
जांच के दौरान 1459 राशन कार्डों की छानबीन की गई, जिनमें से 348 कार्ड अवैध और अपात्र पाए गए। प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से इन्हें निरस्त कर दिया। इस कार्रवाई ने न सिर्फ इलाके में हड़कंप मचाया है बल्कि इस बात पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं कि इतने वर्षों से ये फर्जी कार्ड आखिर कैसे चलते रहे और किसकी लापरवाही से यह संभव हुआ।
घर-घर जांच में सामने आई हकीकत
अलीखां वार्ड में प्रशासन की टीम ने डोर-टू-डोर जाकर राशन कार्ड सत्यापन अभियान चलाया। जांच में पाया गया कि कई लोग दोहरी पहचान का लाभ उठा रहे थे।
- एसएफवाई श्रेणी के 26
- पीएचएच श्रेणी के 310
- एएवाई श्रेणी के 12
कार्ड अपात्र पाए गए और तुरंत निरस्त कर दिए गए। अधिकारियों का मानना है कि यह आंकड़ा सिर्फ एक वार्ड का है, जबकि पूरे शहर और जिले में अवैध कार्डों की संख्या हजारों तक पहुँच सकती है।
सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘दोहरी पहचान’ का खेल
काशीपुर और आसपास के इलाकों की सबसे बड़ी चुनौती है उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश सीमा का खुला स्वरूप। प्रशासन को संदेह है कि कई लोग दोनों राज्यों में अलग-अलग पहचान पत्र और राशन कार्ड बनवाकर सुविधाओं का दोहरा लाभ उठा रहे हैं।
जांच में यह भी सामने आया है कि कुछ परिवार आधार कार्ड और वोटर लिस्ट में अलग-अलग पतों से दर्ज हैं। यह न केवल राशन और सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी का कारण है बल्कि मतदाता सूची की शुचिता पर भी सवाल उठाता है।
प्रशासन और पुलिस की सख्ती
एडीएम पंकज उपाध्याय ने कहा कि यह कार्रवाई केवल अलीखां वार्ड तक सीमित नहीं रहेगी। “अब अन्य वार्डों में भी राशन कार्ड, एड्रेस प्रूफ, वोटर लिस्ट और आधार कार्ड्स की व्यापक जांच कराई जाएगी। किसी भी अपात्र को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने नहीं दिया जाएगा।”
उधम सिंह नगर के एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने स्पष्ट किया कि जिला प्रशासन और पुलिस अब “शून्य सहनशीलता” की नीति पर काम करेंगे। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती जिलों में कई लोग दोनों राज्यों की सुविधाओं का फायदा उठाते हैं और अपराधी तत्व भी सीमा का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे मामलों में अब कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सामाजिक-राजनीतिक असर
इस कार्रवाई का असर केवल राशन कार्ड धारकों तक सीमित नहीं है। यह मुद्दा अब सामाजिक और राजनीतिक बहस का केंद्र भी बन रहा है।
- कुछ लोगों का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और गरीबों तक सही लाभ पहुँचाने के लिए ज़रूरी है।
- वहीं, कुछ स्थानीय नेताओं ने आशंका जताई है कि कहीं यह कार्रवाई विशेष समुदाय को टारगेट करने के आरोपों में न घिर जाए।
हालांकि प्रशासन का कहना है कि जांच पूरी तरह निष्पक्ष होगी और इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
बड़ा सवाल: जिम्मेदारी किसकी?
इस कार्रवाई ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – आखिर इतने वर्षों से अवैध राशन कार्ड किसकी लापरवाही से चलते रहे?
- क्या स्थानीय स्तर पर राशन विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत थी?
- क्या वोट बैंक की राजनीति ने इस गड़बड़ी को बढ़ावा दिया?
- या फिर सिस्टम की निगरानी व्यवस्था ही कमजोर थी?
इन सवालों का जवाब अभी जांच पूरी होने के बाद ही मिल पाएगा। लेकिन इतना तय है कि यह मामला अब उच्च स्तर की समीक्षा की मांग कर रहा है।
भविष्य की योजना
सूत्रों के अनुसार, जिला प्रशासन आने वाले दिनों में काशीपुर ही नहीं बल्कि उधम सिंह नगर जिले के अन्य कस्बों और सीमावर्ती इलाकों में भी इसी तरह की कार्रवाई करने जा रहा है।
- डिजिटल सत्यापन और बायोमेट्रिक आधार मिलान के ज़रिए कार्डधारकों की पहचान की जाएगी।
- सभी अपात्र कार्ड रद्द कर दिए जाएंगे।
- गलत तरीके से फायदा उठाने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर भी विचार किया जा रहा है।
काशीपुर में 348 अवैध राशन कार्डों के निरस्त होने से यह स्पष्ट हो गया है कि वर्षों से बड़ी संख्या में लोग सिस्टम का दुरुपयोग कर रहे थे। प्रशासन ने अब सख्ती दिखाते हुए साफ कर दिया है कि यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।
यह केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं बल्कि एक चेतावनी भी है कि सरकारी योजनाओं का लाभ सिर्फ उन्हीं तक पहुँचेगा, जो इसके हकदार हैं। साथ ही यह घटना सिस्टम की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गहरे सवाल खड़े करती है।