
लेह। लद्दाख के लेह जिले में बुधवार को भड़की हिंसा ने हालात बेहद तनावपूर्ण बना दिए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई झड़प में 4 लोगों की मौत हो गई और 22 पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 45 लोग घायल हो गए। हालात बिगड़ने के बाद प्रशासन ने पूरे जिले में कर्फ्यू लागू कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसक हो गया?
सरकार का आरोप: “सोनम वांगचुक ने भीड़ को भड़काया”
गृह मंत्रालय ने हिंसा के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है। मंत्रालय ने बयान में कहा कि वांगचुक ने भूख हड़ताल खत्म करने की अपीलों को ठुकरा दिया और “अरब स्प्रिंग स्टाइल” व नेपाल में Gen Z आंदोलनों का हवाला देकर भीड़ को भड़काया।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि उनके उत्तेजक बयानों के बाद भीड़ ने अनशन स्थल से निकलकर लेह में बीजेपी कार्यालय और सीईसी लेह के सरकारी दफ्तर पर हमला किया, जिसमें आगजनी और पथराव हुआ। भीड़ ने पुलिस वाहन को भी आग के हवाले कर दिया।
गृह मंत्रालय का विस्तृत बयान
- 10 सितंबर को सोनम वांगचुक ने छठी अनुसूची और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग पर भूख हड़ताल शुरू की थी।
- मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार पहले से ही लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस से उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) के जरिए बातचीत कर रही है।
- इस संवाद के जरिये लद्दाख के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले हुए हैं:
- अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% किया गया।
- परिषदों में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया।
- भोटी और पुर्गी भाषाओं को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया।
- 1800 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई।
- मंत्रालय ने दावा किया कि कुछ “राजनीतिक रूप से प्रेरित” लोग इस प्रगति से खुश नहीं थे और माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे।
- 24 सितंबर को लगभग 11:30 बजे वांगचुक के भाषण के बाद भीड़ ने हिंसक रूप ले लिया और पुलिस पर हमला कर दिया। आत्मरक्षा में पुलिस को गोली चलानी पड़ी, जिसमें मौतें हुईं।
उपराज्यपाल का आरोप: “हिंसा साजिश के तहत भड़काई गई”
लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने हिंसा को सुनियोजित साजिश बताया। उन्होंने कहा कि लद्दाख का शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ने के लिए हिंसा को अंजाम दिया गया। गुप्ता ने लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की और कहा कि अफवाहों पर ध्यान न दें।
कांग्रेस पर भी सवाल
सरकारी सूत्रों ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नेताओं के बयानों ने युवाओं को गुमराह किया। उनका कहना है कि युवाओं को ढाल बनाकर राजनीतिक स्वार्थ साधे जा रहे हैं। हालांकि विपक्ष का कहना है कि यह सरकार की विफलता है कि लंबे समय से उठाई जा रही मांगों पर अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
35 दिन का अनशन और 4 सूत्री मांगें
लद्दाख के आंदोलन की जड़ें गहरी हैं। 10 सितंबर से शुरू हुए 35 दिन के अनशन में चार मुख्य मांगें शामिल थीं:
- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
- लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
- लेह और कारगिल के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें दी जाएं।
- नौकरियों और संसाधनों में स्थानीय युवाओं को आरक्षण मिले।
मंगलवार को अनशन पर बैठे 15 में से दो लोगों की हालत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद लेह एपेक्स बॉडी की युवा शाखा ने लद्दाख बंद का आह्वान किया, जिसने हालात को और बिगाड़ दिया।
सोनम वांगचुक का बयान
हिंसा के बाद वांगचुक ने अपना अनशन खत्म करते हुए ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा:
- “हमारा आंदोलन अहिंसक है और रहेगा।”
- “जब शांति संदेशों को अनसुना किया जाता है तो ऐसी स्थितियां बनती हैं।”
- उन्होंने हिंसा की वजह युवाओं की हताशा और बेरोजगारी बताई।
- वांगचुक ने दावा किया कि लद्दाख में लोकतंत्र नहीं है और केंद्र ने छठी अनुसूची का वादा पूरा नहीं किया।
फिलहाल लेह में कर्फ्यू और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। केंद्र सरकार ने 6 अक्टूबर को लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ बैठक बुलाई है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि अगर बातचीत से समाधान नहीं निकला, तो आंदोलन और भड़क सकता है।