 
						मोहाली | 1 अगस्त 2025 — पंजाब के चर्चित फर्जी मुठभेड़ मामले में 32 साल बाद आखिरकार न्याय की उम्मीदें पूरी हुईं। मोहाली स्थित CBI की विशेष अदालत ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए SSP, DSP और तीन अन्य सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को हत्या का दोषी करार दिया।
यह मामला 1993 में अमृतसर जिले के सिरहाली और वेरोवाल थानों से जुड़ा है, जिसमें निर्दोष लोगों को फर्जी मुठभेड़ों में मारने का आरोप था। अदालत अब 4 अगस्त 2025 को दोषियों की सजा पर फैसला सुनाएगी।
दोषी करार दिए गए अधिकारी:
- भूपिंदरजीत सिंह – तत्कालीन डीएसपी (अब सेवानिवृत्त SSP)
- देविंदर सिंह – तत्कालीन ASI (सेवानिवृत्त DSP)
- गुलबर्ग सिंह – तत्कालीन ASI (सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर)
- सुबा सिंह – तत्कालीन इंस्पेक्टर
- रघुबीर सिंह – तत्कालीन ASI (सेवानिवृत्त SI)
इन सभी पर सीबीआई जांच में हत्या, अपहरण और साजिश रचने के गंभीर आरोप साबित हुए।
1993 का काला अध्याय: जब कानून ने आंखें मूंद ली थीं
27 जून 1993 को सिरहाली थाना क्षेत्र में SPO शिंदर सिंह, सुखदेव सिंह और देसा सिंह को कथित तौर पर अगवा किया गया। उसी दिन बलकार सिंह उर्फ काला को भी पकड़ लिया गया। जुलाई में वेरोवाल थाना क्षेत्र से सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह को भी हिरासत में लिया गया।
CBI जांच में सामने आया कि
- 12 जुलाई 1993 को चार लोगों को फर्जी एनकाउंटर में मार दिया गया
- 28 जुलाई 1993 को तीन और लोगों की हत्या की गई
ये एनकाउंटर सुनियोजित तरीके से किए गए, जिनमें मारे गए सभी गैर-हथियारबंद, हिरासत में लिए गए व्यक्ति थे।
CBI की चार्जशीट और लंबा ट्रायल
1996 में सुप्रीम कोर्ट ने “परमजीत कौर बनाम पंजाब सरकार” केस में सीबीआई जांच का आदेश दिया।
- 30 जून 1999 को CBI ने केस दर्ज किया
- 31 मई 2002 को 10 पुलिस अधिकारियों पर चार्जशीट दाखिल की गई
- ट्रायल के दौरान 5 आरोपी अफसरों की मौत हो गई
ट्रायल के बीच जिनकी मौत हुई:
- इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह
- एसआई ज्ञान चंद
- एएसआई जगीर सिंह
- हेड कॉन्स्टेबल मोहिंदर सिंह
- हेड कॉन्स्टेबल अरूर सिंह
मानवाधिकारों की जीत, पुलिस सुधारों की पुकार
मानवाधिकार संगठनों और वकीलों का कहना है कि यह फैसला पुलिस अकाउंटेबिलिटी और न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर है।
तीन दशकों तक चली इस कानूनी लड़ाई में गवाहों का संरक्षण, सबूतों का रख-रखाव और पीड़ित परिवारों की हिम्मत सबकुछ परीक्षा में था।
अब सबकी नजरें 4 अगस्त 2025 पर हैं — जब अदालत इन दोषी अफसरों को मिलने वाली सज़ा का एलान करेगी।
यह मामला एक बार फिर इस बात की याद दिलाता है कि कानून का चक्का भले धीमा चले, लेकिन चलता जरूर है। न्याय देर से मिला, पर मिला — और यही लोकतंत्र की बुनियाद है।
 
				


