
नई दिल्ली: देश की न्यायपालिका आज एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेंगे। वह जस्टिस बी.आर. गवई का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हुआ। नए सीजेआई का कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा।
राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले औपचारिक समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी। यह कार्यक्रम कई दृष्टियों से खास होगा, क्योंकि इसमें भारत सहित कई देशों के शीर्ष न्यायाधीश, वरिष्ठ विधि अधिकारी और न्यायपालिका से जुड़े गणमान्य लोग शामिल होंगे।
अंतरराष्ट्रीय न्यायपालिका की मौजूदगी बनाएगी समारोह को खास
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के नए प्रमुख की ताजपोशी का यह मौका वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शपथ ग्रहण समारोह में एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों के शीर्ष न्यायाधीश उपस्थित रहेंगे। इनमें शामिल हैं:
- भूटान के मुख्य न्यायाधीश ल्योंपो नॉर्बू शेरिंग
- ब्राजील के मुख्य न्यायाधीश एडसन फाचिन
- केन्या की मुख्य न्यायाधीश मार्था कूम, साथ में सुप्रीम कोर्ट की जज सुसान नजोकी
- मलेशिया के संघीय न्यायालय की जज जस्टिस नालिनी पाथमनाथन
- मॉरीशस की मुख्य न्यायाधीश बीबी रेहाना मुंगली-गुलबुल
- नेपाल के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत, सुप्रीम कोर्ट की जज सपना प्रधान मल्ला और पूर्व जज अनिल कुमार सिन्हा
- श्रीलंका के मुख्य न्यायाधीश पी. पद्मन सुरेसन, साथ में जस्टिस एस. थुरैराजा और जस्टिस ए.एच.एम.डी. नवाज
इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय भागीदारी यह दर्शाती है कि भारतीय न्यायपालिका का प्रभाव विश्व स्तर पर लगातार बढ़ रहा है।
सादगी से शुरू हुआ सफर, न्यायपालिका के शिखर तक पहुँचे
जस्टिस सूर्यकांत का जीवन संघर्ष, प्रतिबद्धता और निरंतर आत्मविश्वास का उदाहरण है।
उनका जन्म हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में 10 फरवरी 1962 को एक साधारण शिक्षक परिवार में हुआ। बचपन पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ न स्कूल की इमारत मजबूत थी और न बेंचें। वह बताते हैं कि उन्होंने पहली बार किसी बड़े शहर का नज़ारा तब देखा जब वे 10वीं की बोर्ड परीक्षा देने हिसार जिले के हांसी कस्बे गए थे।
देश के नए सीजेआई ने 1981 में हिसार के गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक और 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से एलएलबी किया।
उसी वर्ष उन्होंने हिसार की जिला अदालत से वकालत की शुरुआत की, लेकिन जल्द ही 1985 में वे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस के लिए चंडीगढ़ चले आए।
करियर में तेजी से बढ़ते कदम
जस्टिस सूर्यकांत की योग्यता और वकालत में सटीकता के कारण उन्हें जल्दी ही पहचान मिली।
- जुलाई 2000: हरियाणा के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बनाए गए
- मार्च 2001: सीनियर एडवोकेट का दर्जा
- जनवरी 2004: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के स्थायी जज नियुक्त
- 5 अक्टूबर 2018: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
- 24 मई 2019: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति
उनका करियर इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत और स्पष्ट दृष्टिकोण से कोई भी व्यक्ति सादगी भरे ग्रामीण जीवन से निकलकर देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्थाओं के शीर्ष तक पहुँच सकता है।
ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत उन न्यायाधीशों में शामिल हैं जिनके फैसलों ने भारतीय लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या को नई दिशा दी है।
उनके कई निर्णय वर्षों तक मिसाल के रूप में उद्धृत किए जाएंगे। इनमें शामिल हैं:
- अनुच्छेद 370 से जुड़ा महत्वपूर्ण फैसला
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया अधिकारों पर प्रमुख निर्णय
- भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून की कसौटी स्पष्ट करने वाले आदेश
- पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों के जिम्मेदार उपयोग पर टिप्पणियां
- लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर प्रगतिशील निर्देश
एक न्यायाधीश के रूप में वह न्यायिक स्वतंत्रता, पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के संरक्षण के दृढ़ समर्थक रहे हैं।
भारतीय न्यायपालिका के लिए आने वाला समय
नए सीजेआई के सामने कई अहम चुनौतियाँ होंगी —
- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में लंबित मामलों का बोझ
- न्यायिक प्रक्रियाओं में डिजिटल बदलाव
- अदालतों में पारदर्शिता और समयबद्ध सुनवाई सुनिश्चित करना
- कमजोर और हाशिये पर खड़े वर्गों की न्याय तक पहुंच को मजबूत करना
विशेषज्ञों की मानें तो जस्टिस सूर्यकांत अपने अब तक के कार्यकाल में दिखाए गए प्रगतिशील दृष्टिकोण और प्रशासनिक क्षमता के आधार पर न्यायपालिका में कई सकारात्मक सुधारों की जमीन तैयार कर सकते हैं।
न्यायपालिका के नए अध्याय की शुरुआत
जब जस्टिस सूर्यकांत आज भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे, तो यह न सिर्फ एक औपचारिक परिवर्तन होगा, बल्कि देश की न्याय व्यवस्था के भीतर एक नए युग की शुरुआत का संकेत भी होगा। एक ऐसे व्यक्ति का नेतृत्व, जिसने साधारण जीवन से उठकर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच बनाई, आने वाले वर्षों में न्यायपालिका को नई दिशा दे सकता है।



