
जयपुर: राजस्थान की राजधानी जयपुर की रात अचानक चीखों, धुएं और आग की लपटों से दहक उठी। रविवार देर रात करीब 11 बजकर 50 मिनट पर सवाई मान सिंह (SMS) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू वॉर्ड से अचानक धुआं उठने लगा। कुछ ही मिनटों में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया — मॉनिटरों की बीप बंद हो गई, बिजली की लपटें चमकीं और हवा में घुटन फैल गई। रातभर चला यह मंजर किसी भयावह फिल्म से कम नहीं था।
सबसे पहले अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड से चीखें सुनाई दीं, उसके बाद तेज धुएं ने पूरे कॉरिडोर को ढक लिया। डॉक्टर और नर्सें मरीजों को निकालने की कोशिश में जुट गए, लेकिन स्थिति इतनी तेज़ी से बिगड़ी कि कई लोग भीतर फंस गए। इसी अफरातफरी के बीच तीन पुलिस जवान — कांस्टेबल वेदवीर सिंह, हरि मोहन, और ललित — ने बिना किसी सुरक्षा उपकरण के धुएं से भरे वॉर्ड में घुसकर लोगों की जान बचाई।
जान की परवाह किए बिना किया रेस्क्यू
अस्पताल में मौजूद गवाहों के अनुसार, जब धुआं फैलने लगा, तो पुलिसकर्मियों ने सबसे पहले ऑक्सीजन वार्ड की ओर दौड़ लगाई। वहां कई गंभीर मरीज लाइफ-सपोर्ट पर थे। बिना ऑक्सीजन मास्क और बिना सुरक्षात्मक किट के तीनों जवानों ने बारी-बारी से मरीजों को उठाया और स्ट्रेचर या गोद में लेकर बाहर तक पहुंचाया।
करीब दस मिनट तक लगातार धुएं में रहने के बाद उनकी सांसें उखड़ने लगीं, आंखों से आंसू निकलने लगे, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक-एक कर उन्होंने दस से अधिक मरीजों और परिजनों को सुरक्षित बाहर निकाला। जब आखिरी मरीज को बाहर लाया गया, तब तक कांस्टेबल ललित वहीं बेहोश होकर गिर पड़े। उनके साथी वेदवीर और हरि मोहन ने भी बाहर निकलते ही खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की।
वर्तमान में तीनों का इलाज एसएमएस अस्पताल के ही विशेष वॉर्ड में चल रहा है। डॉक्टरों ने बताया कि फिलहाल उनकी हालत स्थिर है, लेकिन धुएं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों पर असर हुआ है।
अब तक छह की मौत की पुष्टि
अब तक इस भीषण हादसे में छह लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। मृतकों की पहचान सीकर के पिंटू, आंधी के दिलीप, भरतपुर के श्रीनाथ, रुक्मणि, खुश्मा, और सांगानेर के बहादुर के रूप में हुई है। अधिकारियों का कहना है कि कुछ और गंभीर मरीजों की स्थिति नाजुक है, जिससे मृतकों की संख्या बढ़ सकती है।
जयपुर के पुलिस आयुक्त बीजू जॉर्ज जोसेफ ने बताया कि, “घटना के तुरंत बाद रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया। सबसे पहले मरीजों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। फायर ब्रिगेड की टीम ने करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया।”
संभावित कारण: विद्युत शॉर्ट सर्किट
प्रारंभिक जांच में अनुमान लगाया जा रहा है कि आग किसी विद्युत उपकरण में शॉर्ट सर्किट के कारण लगी। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही की जाएगी। अस्पताल प्रशासन ने कहा है कि घटना के समय आईसीयू में करीब 18 मरीज भर्ती थे, जिनमें से अधिकांश को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
घटना के बाद पूरे अस्पताल परिसर में फायर सेफ्टी सिस्टम और बिजली कनेक्शन की जांच शुरू कर दी गई है। राज्य सरकार ने इस हादसे की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं।
चश्मदीदों ने बताया ‘डर का वो पल’
एक मरीज के परिजन पुरण सिंह ने घटना का भयावह दृश्य बयान करते हुए कहा, “जब चिंगारी उठी तो उसके पास ऑक्सीजन सिलेंडर रखा था। देखते-ही-देखते धुआं पूरे आईसीयू में फैल गया। सब लोग अपने-अपने मरीजों को उठाकर भागने लगे। कई लोग बाहर तक पहुंच गए, लेकिन कुछ अंदर ही फंस गए। जैसे ही गैस और फैल गई, अस्पताल प्रशासन ने सुरक्षा के लिए गेट बंद कर दिए।”
दूसरी ओर, अस्पताल स्टाफ की एक नर्स ने बताया, “बिजली चली गई थी और बैकअप तुरंत काम नहीं कर रहा था। कुछ उपकरण स्पार्क करने लगे। कुछ ही सेकंड में पूरा वॉर्ड धुएं से भर गया।”
सरकारी प्रतिक्रिया और कार्रवाई
घटना की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने देर रात ही शीर्ष अधिकारियों को मौके पर भेजा और रेस्क्यू कार्य की निगरानी करने का निर्देश दिया। सोमवार सुबह उन्होंने अस्पताल जाकर घायलों से मुलाकात की और कहा कि “राज्य सरकार हर पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है। घटना की निष्पक्ष जांच होगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
मुख्यमंत्री ने तीनों पुलिसकर्मियों की बहादुरी की सराहना करते हुए कहा कि “ये राजस्थान पुलिस की असली पहचान हैं — कर्तव्य, साहस और मानवीय संवेदना।”
फायर सेफ्टी सिस्टम पर उठे सवाल
यह घटना एक बार फिर सरकारी अस्पतालों की फायर सेफ्टी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। सूत्रों के मुताबिक, ट्रॉमा सेंटर में लगे स्मोक डिटेक्टर और स्प्रिंकलर सिस्टम उस वक्त काम नहीं कर रहे थे। कई फायर एग्जिट दरवाजे भी जाम पाए गए। जयपुर नगर निगम फायर विभाग ने अस्पताल प्रशासन को पिछले वर्ष भी फायर ऑडिट रिपोर्ट में सुधार के निर्देश दिए थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पताल जैसी संवेदनशील इमारतों में नियमित रूप से फायर ड्रिल और सेफ्टी चेकअप होना आवश्यक है। लेकिन कई बार ये सिर्फ कागजों में सीमित रह जाते हैं।
जनता में आक्रोश, सोशल मीडिया पर सवाल
घटना के बाद से सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। नागरिकों ने अस्पताल प्रशासन की लापरवाही पर नाराजगी जताई और घायल पुलिसकर्मियों की सराहना की। ट्विटर (X) और फेसबुक पर कई लोगों ने लिखा, “जिन्होंने दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली, वे असली हीरो हैं।”
एसएमएस अस्पताल हादसा केवल एक आग की घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी किस तरह जानलेवा साबित हो सकती है। इस हादसे में जहां छह निर्दोष लोगों की जान चली गई, वहीं तीन पुलिसकर्मियों ने अपने साहस से यह साबित कर दिया कि इंसानियत और कर्तव्यबोध सबसे बड़ी ताकत हैं।